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( २६ ) दुबाग विवाह नहीं होता' । यशस्तिलक में लिखा है कि 'एक. बार जो कन्या स्त्री बनाई जाती है वह विवाह द्वारा फिर दुबारा मंत्री नहीं बनाई जाती'। श्रादिपुगण में अर्ककीर्ति कहते हैं कि मैं उस विधवा सुलोचना का क्या करूंगा'। नीतिवाक्यामृत में श्रेष्ठ शुद्रों में भी कन्या का एकबार विवाह माना जाता है।
समाधान-जैनगज़ट में श्लोक नहीं छपते, इस की प्रोट लेकर पण्डित लोग खूब मनमानी गप्पं हाँक लिया करते हैं। अगर श्लोक देने लगे तो मारी पोल खुल जाय । खैर, प्रबोध. मार में तो किमी भी जगह के ४४ नम्बर के श्लोक में हमें विधवाविवाह का निषेध नहीं मिला । यशस्तिलक के श्लोक के अर्थ करने में श्राक्षेपक ने जान बूझकर धोखा दिया है । ज़रा वहाँ का प्रकरण और वह श्लोक देखिये।
किस तरह की मूर्ति में देवकी स्थापना करना चाहिये, इसके उत्तर में सोमदेव लिखते हैं कि विष्णु श्रादिकी मूर्ति में अरहन्त की स्थापना न करना चाहिये । जैसे-जब तक कोई म्त्री किसी की पत्नी है तब तक उस में ( परपरिग्रहे ) स्वस्त्री का सङ्कला नहीं किया जा सकता। कन्याजन में स्वम्त्री का सङ्कल्प करना चाहिये।
शुद्धवस्तूनि सङ्कलाः कन्याजन इवोचितः । नाकारान्तर संक्रान्ते यथा परपरिग्रहे ।।
मतलब यह कि मर्ति का आकार दूसग हो और स्थापना किसी अन्य की की जाय तो वह ठीक नहीं । हनुमान की मूर्ति में गणेश की स्थापना और गणेश की मूर्ति में जिनेन्द्र की स्थापना अनुचित है । परन्तु मूर्ति का आकार बदलकर अगर स्थापना के अनुरूप बना दिया जाय तब वह स्थापना के प्रनिकूल नहीं रहती। अन्य धर्मावलबियों में तो पत्थरों के ढेर और पहाड़ों तक को देवता की मूर्ति मान लेते हैं । इसलिये ज्या