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विधवाविवाह और जैनधर्म!
आक्षेपों का मुंह तोड़ उत्तर
सबसे पहिली और मुद्दे की बात में पाठकों से यह कह दना चाहता हूँ कि मेरे ख़याल से जैनधर्म पारलौकिक उन्नति के लिये जितना मर्वोत्तम है उतना ही लोकिक उन्नति के लिये सुविधाजनक है । समाज की उन्नति के लिय और समाज की रक्षा के लिय ऐसा कोई भी रीतिरिवाज नहीं है जाकि जैनधर्म के प्रतिकुल हो । जैनधर्म किसी घुसखोर व अन्यायी मजिस्ट्रेट की तरह पक्षपात नहीं करना जिसस पुरुषों के साथ वह रियायत करे और स्त्रियों को पीस डाले । स्त्रियों के लिये
और शुद्रा के लिये उसने वही सुविधा दी हैं जो कि पुरुषा के लिये और द्विजों के लिये । जैनधर्म की अनक खबियों में ये
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इस पैगमाफ़ के प्रत्येक वाक्य को मैं अच्छी तरह विचार कर लिख रहा हूँ। इसमें मैंने उत्तेजना या अतिशयोक्ति से काम नहीं लिया है। इसके किसी वाक्य या शब्द के लिये अगर कोई नया श्रान्दोलन उठाना पडे तो मैं उसके लिये भी तैयार हूँ। अगर कोई महाशय श्राक्षेप करने का कष्ट करें तो बड़ी कृपा होगी, क्योंकि इस बहाने से एक आन्दोलन को खड़ा करने का मौका मिल जायगा।
-लेखक