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पूर्ण अहङ्कार के ये लोग शिकार हो रहे हैं, जब कि विधवा. विवाह के समर्थक इस विषय में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार देना चाहते हैं। विधवाविवाह के समर्थक, पुरुष होने पर भी अपने विशेषाधिकार, बिना स्त्रियों की प्रेरणा के, छोड़ना चाहते है । स्त्रियों के दुःख से उनका हृदय द्रवित है; इसीलिये स्वार्थी पुरुषों के विरोध करने पर भी वे इस काम में लगे हैं। अपमान तिरस्कार आदि की बिलकुल पर्वाह नहीं करते। विधवाविवाह समर्थकों की इस निस्वार्थता, उदारता, त्याग, दया, सहनशीलता, कर्तव्यपगयणता और धार्मिकता को विधवाविवाह के विरोधी कोटिजन्म तप तपने पर भी नहीं पा मकने । ये स्वार्थ के पुतले जब विधवाविवाह समर्थकों को स्वार्थी कह कर "उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे" की कहावत चरितार्थ करते हैं तब इनकी धृष्टता की पराकाष्ठा हो जाती है। शैतान जब उलट कर ईश्वर से ही शैतान कहने लगता है तब उस की शैतानियत की सीमा प्राजाती है। विधवाविवाह के विगंधी शैतानियत को ऐसी ही सीमा पर पहुंचे हैं।
समाज के भीतर छिपी हुई हम शैतानियत को दूर करने के लिये मैंन विधवाविवाह के समर्थन में बैरिष्टर चंपतरायजी के प्रश्नों के उत्तर दिये थे। उसके खंडन का प्रयास जैनग़ज़ट द्वारा दो महाशयों ने किया है-एक तो पं० श्रीलाल जी अलीगढ़, दूसरे पं०विद्यानन्दजी रामपुर । उन दोनों लेखों को अनावश्यक रूपसे बढ़ाया गया है । लेख में व्यक्तित्व के ऊपर बड़ी सभ्यता के साथ आक्रमण किया गया है। प्रसभ्यता से पेश आने में कोई बहादुरी नहीं है । इसलिए असभ्य शब्दों का उत्तर में इस लेख में न दूंगा।
___ उन दोनों लेखकों से जहां कुछ भी खंडन नहीं बन पड़ा है वहाँ उन्होंने “छिछि.", "धिक धिक", "यह तो घृणित है",