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समाधान-स्त्रीवेद के उदय से विवाहादि की सूझती है-आक्षेपक की यह बात पाठक ध्यान में रक्खें क्योंकि आगे इसी वाक्य के विरोध में स्वयं आक्षेपक ने बकवाद किया है। और, स्त्रीवेद के उदय से विवाह की नहीं, सम्भोग की इच्छा होती है। सम्भोग की इच्छा होने पर अगर अप्रत्याख्याना. धरण का उदयाभावी क्षय होता है तो वह अणुव्रत धारण कर किसी कुमारी से या विधवा से विवाह कर लेता है। अगर अप्रत्याख्यानाधरण का उदयाभावी क्षय न होकर उदय ही होता है तो वह व्यभिचारी होने की भी पर्वाह नहीं करता । भेद का उदय तो विवाह और व्यभिचार दोनों के लिये समान कारण है, परन्त अप्रत्याख्यानावरण का उदयक्षय, अथवा प्रत्याख्यानावरण का उदय, व्यभिचार से दूर रख कर उसे विवाह के बन्धन में रखता है। इसलिये विवाह के लिये अप्रत्या. ख्यानावरणके उदयाभावी क्षय का नाम विशेष रूप में लिया जाता है। बेचाग आक्षेपक इतना भी नहीं समझता कि किस कर्म प्रकृतिका कार्य क्या है ? फिर भी सामना करना चाहता है ! आश्चर्य !
आक्षेप (ऋ)-गजवातिकके विवाह लक्षण में जैसे कन्या का नाम नहीं हे वेसे ही स्त्री पुरुषका नाम नहीं है । फिर स्त्री पुरुष का विवाह क्यों लिखा ? स्त्री स्त्री का क्यों न लिखा ?
समाधान-राजवार्तिक के विवाह लक्षणमें चारित्रमोह के उदय का उल्लेख है ! चारित्र माह में स्त्रीचंद पुरुषवंद भी है । स्त्रीवेद के उदय से स्त्री, स्त्री को नहीं चाहती-पुरुष की चाहती है। और पुरुपवेद के उदय से पुरुष, पुरुष कोनहीं चाहता-स्त्री को चाहता है । इसलिय विवाह के लिये स्त्री और पुरुष का होना अनिवार्य है। योग्यता की दुहाई देकर यह नहीं कहा जा सकताकि स्त्रीवेद के उदय से कुमार के हो साथ रमण