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( ४६ ) ग्रन्थों में कुमारी-विवाह का उल्लेख सिर्फ वहीं हुआ है जहाँ पर कि विवाह का सम्बन्ध किसी महत्वपूर्ण घटना से हो गया है। जैसे सुलोचना के विवाह का सम्बन्ध जयकुमार अर्ककीर्ति के युद्ध मे है, सीता के विवाह का सम्बन्ध धनुष चढ़ाने और भामंडल के समागम से है इत्यादि । बाकी विवाहों को कुछ पता ही नहीं लगता; सिर्फ स्त्रियों की गिनती से उनका अनुमान किया जाता है।
प्रचीन समय में कुमारी विवाहों में किमी किसी विवाह का सम्बन्ध किसी महत्वपूर्ण घटना से हो जाता था इस लिये उनका उन्न ख पाया जाता है। परन्त विधवा विवाह में ऐली महत्वपूर्ण घटना की सम्भावना नहीं थी या घटना नहीं हुई इस लिये उन का उल्लेख भी नहीं हुआ ।
शास्त्रों में सिर्फ महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख मिलता है। महत्वपूर्ण घटनाएं अच्छी भी हो सकती हैं
और बुरी भी हो सकती हैं। इसीलिये परस्त्रीहरण आदि दुरी घटनाओं का भी उल्लेख है । बुरे कार्यों को निन्दा ओर उनका बुग फल बतलाने के लिये यह चित्रण हुया है। अगर विधवाविवाह भी बुरी घटना हाती तो उसका पाप फल बत. लाने के लिये क्या एक भी घटना का उल्लेख न होता। इससे माफ़ मालूम होता है कि विधवाविवाह का अनुल्लेख उसकी बुराई को नहीं, किन्तु साधारणता को बतलाता है । जब शास्त्रों में परस्त्रीहरण और बाप बेटी के विवाह का उल्लेख मिलता है (देखा कार्तिकेय स्वामी की कथा-आराधना कथाकोष में ) और उनकी निन्दा की जाती है,किन्तु विधवाविवाह का उल्लेख उसकी निन्दा करने और दुष्फल बताने को भी नहीं