________________
दूसरी बात के उत्तर में मेरा निवेदन है कि विधवाओं ने मेरे पास दरख्वास्त नहीं भेजी है। श्राम तौर पर भारतवर्ष में विवाह के लिये दरख्वास्त भेजने का रिवाज भी नहीं है । मैं पूछता हूँ कि हमारे देश में जितनी कन्याओं के विवाह होते हैं उनमें से कितनी कन्या विवाह के लिये दरख्वास्त भेजती हैं यदि नहीं भेजती तो उनका विवाह क्यों किया जाता है ? क्या कन्याओं का विवाह करना अनावश्यक दया है ? यदि नहीं तो विधवाओं का विवाह करना भी अनावश्यक दया नहीं है।
दुसरी बात यह है कि दरख्वास्त सिर्फ कागज पर लिख कर ही नहीं दी जाती-यह कार्यों के द्वारा भी दी जाती है । विधवा समाज ने भ्र ण-हन्या, गुप्त व्यभिचार आदि कार्यों से समाज के पास ज़बर्दस्त से ज़बर्दस्त दरख्वास्ते भेजी हैं । इस लिये उनका विवाह क्यों न करना चाहिये ? कन्याएँ न तो कागजों पर दरख्वास्त भेजती है, न भ्रण हत्या आदि कुकार्यों मे: फिर भी उनका विवाह एक कर्तव्य समझा जाता है । तब विधवाओं का विवाह कर्तव्य क्यों न समझा जाय ?
कुछ दिनों से कुछ महापुरुषों ( ? ) ने स्त्रियों के द्वारा भी विधवाविवाहकं विरोध का म्वाँग कराना शुरूकर दिया है, परंतु कुमारी विवाह के निषेध के लिये हम कुमारियों को खड़ा कर सकते हैं । फिर क्या कल्याणीदेवी, कुमारियों के विवाह को भी अनुचित दया का परिणाम समझेगी ? बात यह है कि शताब्दियों की गुलामी ने स्त्रियों के शरीर के साथ श्रात्मा और हृदय को भी गुलाम बना दिया है। उनमें अब इतनी हिम्मत नहीं कि वे हृदय की बात कह सके। अमेरिका में जब गुलामी की प्रथा के विरुद्ध प्रवाहमलिकन ने युद्ध छेड़ा तो स्वयं गुलामों