Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अजीव की पर्यायें ही काल हैं । विशेषावश्यकभाष्य में कहा गया है कि वर्तना अर्थात् परिणमन या परिवर्तन से भिन्न कोई काल द्रव्य नहीं है । इस प्रकार जीव और अजीव द्रव्य की परिवर्तनशील पर्यायों को ही काल कहा गया है । कहीं-कहीं काल को पर्याय रूप द्रव्य कहा गया है। इन सब विवरणों से ऐसा प्रतीत होता है कि काल कोई स्वतन्त्र द्रव्य नहीं है। चूँकि आगम में जीव-काल और अजीव - काल ऐसे काल के दो वर्गों के उल्लेख मिलते हैं अतः कुछ जैन विचारकों ने यह माना कि जीव और अजीव द्रव्यों की पर्यायों से पृथक् काल द्रव्य का स्वतन्त्र अस्तित्त्व नहीं है । प्राचीन स्तर के आगमों में सर्वप्रथम उत्तराध्ययनसूत्र में काल का स्वतन्त्र द्रव्य के रूप में उल्लेख पाया जाता है। जैसा कि हम पूर्व में संकेत कर चुके हैं कि न केवल उमास्वामि के युग तक अर्थात् ईसा की तृतीय - चतुर्थ तक अपितु चूर्णिकाल अर्थात् ईसा की सातवीं शती तक काल स्वतन्त्र द्रव्य है या नहीं - इस प्रश्न पर जैन दार्शनिकों में मतभेद था। इसीलिए तत्त्वार्थसूत्र के भाष्यमान पाठ में उमास्वामि को यह उल्लेख करना पड़ा। कि कुछ विचारक काल को भी द्रव्य मानते हैं ( कालश्चेत्येगे तत्त्वार्थसूत्र 5/38)। इसका फलितार्थ यह भी है कि उस युग में कुछ जैन दार्शनिक काल को स्वतन्त्र द्रव्य नहीं मानते थे । इनके अनुसार सर्व द्रव्यों की जो पर्यायें हैं, वे ही काल हैं।. इस मान्यता के विरोध में दूसरे पक्ष के द्वारा यह कहा गया कि अन्य द्रव्यों की पर्यायों से पृथक् काल स्वतन्त्र द्रव्य है क्योंकि किसी भी पदार्थ में बाह्य निमित्त अर्थात् अन्य द्रव्य के उपकार के बिना स्वतः ही परिणमन सम्भव नहीं होता है। जैसे ज्ञान आत्मा का स्वलक्षण है, किन्तु ज्ञानरूप पर्यायें तो अपने ज्ञेय विषय पर ही निर्भर करती हैं। आत्मा को ज्ञान तभी हो सकता है जब ज्ञान के विषय अर्थात् ज्ञेय वस्तु तत्त्व की स्वतन्त्र सत्ता हो । अतः अन्य सभी द्रव्यों के परिणमन के लिए किसी बाह्य निमित्त को मानना आवश्यक है, उसी प्रकार चाहे सभी द्रव्यों में पर्याय परिवर्तन की क्षमता स्वतः हो, किन्तु उनके निमित्त कारण के रूप में काल द्रव्य को स्वतन्त्र द्रव्य मानना आवश्यक है । यदि काल को स्वतन्त्र द्रव्य नहीं माना जायेगा तो पदार्थों के परिणमन (पर्याय परिवर्तन) का कोई निमित्त कारण नहीं होगा । परिणमन के निमित्त कारण के अभाव में पर्यायों का अभाव होगा और पर्यायों के अभाव में द्रव्य का भी अभाव हो जायेगा क्योंकि द्रव्य का अस्तित्त्व भी पर्यायों से पृथक् नहीं है । इस प्रकार सर्वशून्यता का प्रसंग आ जायेगा । अतः पर्याय परिवर्तन (परिणमन) के निमित्त कारण के रूप में काल को स्वतन्त्र द्रव्य मानना ही होगा । काल को स्वतन्त्र तत्त्व मानने वाले दार्शनिकों के द्वारा इस तर्क के विरोध में यह प्रश्न उठाया गया कि यदि अन्य द्रव्यों के परिणमन (पर्याय परिवर्तन) के हेतु के
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
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