Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 22
________________ प्रास्ताविक वक्तव्य ६११ ५देशमा तेम ज राज्यमां, जैन गृहस्थ वर्गनी आ रीते आर्थिक अने सामाजिक बन्ने दृष्टिये, सुस्थिति होवाथी जैन त्यागी वर्गनो पण सर्वसाधारण प्रजामा सारो प्रभाव हतो अने जेनेतर समाज पण तेने आदर अने उच्चभावथी सत्कारतो. राजदरबारमा पण जैन आचार्यो अने विद्वानोना त्यागी जीवननी अने ते साथे विद्योपासनानी पण सारी प्रतिष्ठा मनाती अने तेथी अनेक राजवंशी जनो पण एमना भक्त अने उपासक थवामा पोतान कल्याण समजता. जनसमूहमा जैन यतिवर्ग तरफ आ रीते सद्भाव अने सन्माननी लारणी वधवाथी, ए यतिवर्गने पण पोतानी आन्तरिक शक्तिने विशेषभावे वधारवानी अने व्यक्तित्वने विकसाववानी भावना बलवती थवा लागी. 'विद्वान् सर्वत्र पूज्यते' ए उक्तिनी सत्यता समजातो, तेमणे पोतानी विद्याविषयक समृद्धि वधारवा तरफ सविशेष लक्ष्य आपवा मांड्यं. जैन सिद्धान्तोना अध्ययन-अध्यापन उपरांत, अन्य दार्शनिक साहित्यर्नु; तेम ज व्याकरण, काव्य, अलंकार, छन्दःशास्त्र अने ज्योतिःशास्त्र आदि सार्वजनिक साहित्यर्नु पण; विशेषभावे तेमणे आकलन करवा मांब्यु अने तत्तद्विषयोना नवा नवा ग्रन्थो पण रचवा मांड्या. अने ए रीते जैन विद्वानोनी विद्यासमृद्धि वधवा लागी. ए विद्वान् यतिवर्ग- मुख्य कर्तव्य धर्मोपदेश आपवानुं होवाथी, ए कार्यमा विशिष्ट साहायक थाय तेवा प्रकारना साहित्यनीअर्थात् कथात्मक ग्रन्थोनी-रचना तरफ पण तेमनुं सविशेष लक्ष्य खें वायु. ७ एम तो जैन वाजायमां, धर्मकथानुयोग नामे एक साहित्यिक विभाग, भगवान् महावीरना प्रवचनोना एक अंग तरीके, छेक प्राचीन कालथी ज चाल्यो आवे छे अने तेना आधार अने अनुसन्धानरूपे अनेक पूर्वाचार्यों द्वारा समये समये, नाना मोटा एवा अनेक धर्मकथाविषयक स्वतंत्र ग्रन्थोनी केटलीये रचनाओ थती रही छे; परंतु जे समयने अनुलक्षीने, आ वर्णन करावामां आवे छे ते समयमां, आ प्रकारना धर्मकथाविषयक साहित्यनी सृष्टि घणा ज विशाल अने विविध प्रमाणमां थवा लागी हती. विक्रमना दशमा सैका पूर्वेना जैन कथाग्रंथोनी संख्या, ज्यारे मात्र हाथनी आंगळीनी रेखाथी गणी शकाय तेटली नानी हती त्यारे आ पछीना २-३ सैकामां एटले के वि. सं. १०५० थी लई वि. सं. १३५० वञ्चेना ३०० वर्षोमा ए संख्या वधीने सेंकडोनी संख्याथी गणी शकाय तेटली मोटी थई. ८ पूर्वकालीन वसुदेवहिंडी, तरंगवती, पउमचरिय, हरिवंसचरिय, समराइच्चकहा, कुवलयमालाकहा, चउपन्नमहापुरिसचरिय, णेमिणाहचरिय विगेरे केटलांक मुख्य चरित्रग्रन्थो तेम ज उपदेशमाला, उपदेशपद, धर्मोपदेशमाला आदि थोडाक कथासंग्रहात्मक ग्रन्थोमांनां कथासूत्रोना आधारे, ए समयमा विद्वानोए भिन्न भिन्न प्रकारना अनेक स्वतंत्र चरित्रग्रन्थो तेम ज कथाग्रन्थोनी घणा विशाल प्रमाणमा रचनाओ करवानो प्रखर प्रयास आदर्यो हतो. ९ए नूतन रचनाओमां, ऋषभादि २४ तीर्थकरोना हजारो ग्रंथाय प्रमाणवाळा जुदां जुदा अनेक नवां चरित्रो; भरत, सनत्कुमार, ब्रह्मदत्त, राम, कृष्ण, पांडव, नल विगेरे चक्रवर्ति के तेमना जेवा प्रसिद्धिवाळा राजाओनां विविध जातिनां आख्यानो; ते उपरांत अन्यान्य अनेक साधु अने साध्वी जनोना,राजा ओ अने राणीयोना, ब्राह्मणो अने श्रमणोना, सेठो अने सेठाणीयोना, धनिको अने दरिद्रोना, चौरो अने जुगारियोना, धूर्तो अने गणिकाओना, धर्मशील अने अधर्मियोना, पुण्यवान् अने पापात्माओना-- इत्यादि नाना प्रकारना मनुष्योना जीवनने उद्देशीने लखाएला अनेकानेक कथाग्रन्थोनो समावेश थाय छे. जैन विद्वानोमा जाणे ए समयमा कथासाहित्यनी रचना करवामां परस्पर मोटी स्पर्धा थई रही हती. अमुक गच्छवाला, अमुक विद्वाने, अमुक नामनो कथाग्रंथ बनायो छे, ए जाणी-वांचीने बीजा गच्छवाला विद्वानो पण, एज प्रकारना बीजा कथाग्रन्थो रचवा उत्सुक थता. आ रीते चन्द्रगच्छ, नागेन्द्रगच्छ, राजगच्छ, चैत्रगच्छ, पूर्णतल्लगच्छ, वृद्धगच्छ, धर्मघोषगच्छ, हर्षपुरीयगच्छ आदि भिन्न भिन्न गच्छो, के जे ए बे सैकाओमा विशेष प्रसिद्धि पाम्या हता अने प्रभावशाली थया हता, ते दरेक गच्छमांना विशिष्ट विद्वानोए, आ प्रकारना चरित्रो अने कथाग्रन्थोना प्रणयनमाटे प्राणवान् प्रयत्र को हतो. ऋषभादि तीर्थंकरो, भरतादि चक्रवर्तियो, राम कृष्णादि अर्धचक्रियो आदि शलाकापुरुष तरीके गणाती केटलीक व्यक्तियोना चरित्रप्रसंगोने अवलंबीने तो, बब्बे प्रण त्रण विद्वानो द्वारा, एक ज पेढी दरम्यान, बब्बेत्रण ब्रण चरित्रोनी रचनाओ सम-समयमा निर्मित थई. १० आ रीते पुराण-प्रसिद्ध व्यक्तियोनां चरित्रो सिवाय, जैन धर्मना सिद्धान्तो, आचारो अने विचारोना प्रचारने उद्देशीने नाना-मोटा अनेक कथाग्रन्थोनी सृष्टि थई. ए कथाग्रन्थोमां, जैन सिद्धान्त प्रतिपादित ज्ञान, दर्शन अने चारित्रस्वरूप मोक्षमार्गना ए व्रण मूल तत्वो, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अने अपरिग्रह स्वरूप पांच सार्वभौम व्रतो; दान, शील, तप अने भाव एम चतुर्विध आचरणीय धर्मो-इत्यादि विषयोना स्वरूप अने गुणवर्णनने . उद्देशीने अनेक स्त्री-पुरुषोनी नाना प्रकारनी जीवनघटनाओ आलेखती कथाओनी संकलना थएली छे. ए बधी कथाओनी संख्या हजारोनी गणतरीथी गणाय तेटली विशाळ छे. ए ग्रथोन्मां केटलाक तो एवा संग्रहग्रन्थो पण छे जेमा सो, बसो, त्रणसो, के तेथी य वधारे पांचसो-पांचसो जेटली कथाओ एकत्र ग्रथित करवामां आवेली छे, मा संक्षिप्त निर्देश उपरथी वाचकने कल्पना आवी वाकशे के जैन कथासाहित्य केटलं विशाळ अने वैविध्यवाळ छे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162