Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 123
________________ सिरीमहेसरसूरिविरइयाओं [८, २७-५५ ३५ ३७ भंडारियस्स नाउं चरणेहिं रयणनिग्गमं सरलो । कुविओ चलणच्छेयं कारेइ जणाण पचक्खं ॥ २७ अह मरिऊणं सरलो भमिऊणं नरय- तिरियजोणीसु । लहिऊण चरणछेयं सव्वत्थ वि दुक्खिओ बहुहा ॥२८ मणिव गुणवणिओ सिरिया नामेण भारिया तस्स । वीरो पुत्तो जाओ कमेण सो सरलजीवो उ ॥ २९ तस्स य आमूलाओ तत्ते दुद्धम्मि पडिय सहर्स त्ति । दोन्नि वि पाया दड्ढा सडिएहिँ य पंगुलो जाओ ॥ ३० भमतो पइदियहं पंगुलओ तत्थ चेव नयरीए । जाओ जोवणवंतो कमेण सो पुन्नजोएणं ॥ ३१ तावय तपिउभाया समणो नाणी ये आगओ" तत्थे । उवसमलद्धिसमेओ चेइयभवणम्मि उवविट्ठो ॥ ३२ पंगू वि जणेण समं पण मिय गंतूण तं" मुणिमुहाओ " । पंचमिफलकित्तणयं सुणेइ सो सुहु निधिन्नो ॥ ३३ सोऊण बहुपयारं पंचमिफलवन्नणम्मि गयचित्तो । गिण्हइ मुणिणो मूले पंगू सिरिपंचमी तइया ॥ ३४ पुन्ने वयम्मि पच्छा कालकमेणं करेइ उज्जर्वणं । चिंतइ मणेण एयं चलणाभावेण निचिन्नो || जइ सचं किर एवं पंचमिकरणाओं इच्छियं होइ । तो चरणविणासो वि हु तहभावो चेव मे" होजा ॥ ३६ एयं काऊ मणे मरिणं एत्थ मरहमज्झम्मि । कुसुमपुरे नरवइणो कोसलनामस्स गेहम्मि ॥ घरणीऍ" धणवईऍ धरणो नामेण सो सुओ जाओ । वड्ढइ वड्डियतेओ" विणयाइसमन्निओ सुहओ ॥ ३८ अन्ना वि देवमइया कोसलनिवभारिया तया आसि । तीसे य सुओ महणो अणुजेट्टो धरणकुमरस्स ॥ ३९ धरण महणो दो विहु अन्नोन्नं सुहु नेहपडिबद्धा । सवं पि हु करणीयं कुणंति ते एगचित्तेणं ॥ ४० वयण-पणामाईयं दो वि मायाण दो वि ते पुत्ता । कुवंति भत्तिजुत्ता पइदियहं तत्तबुद्धी ॥ ४१ उचियं चिय होइ इमं जणणीए पूयणं तु संसारे । तीऍ समाणो जेणं न हु अन्नो हियकरो तेण ॥४२ भट्ठिएं वि तणए माया चित्तेण आउला होई । तबुडिरक्खणत्थं सुछु उवाए वि चिंतेइ ॥ बालत्ते वि हु निञ्चं रोगाइनिवारणाय मोहेणं । ओसह - तिस - भुक्खाओ सहंति जत्तेण मायाओ ॥ ४४ बालाणं फेडती असुईमाईणि कुच्छणिज्जाई । सकयत्थं चिय मन्नइ जणणी अप्पाणयं सुड्डु ॥ ४५ जह जह वड्डइ तणओ तह तह जणणीऍ वट्ट (ड) ए नेहो" । तणयाणं पुण थोवो" ताणं उवरिम्मि सो होइ ॥ ४६ आगन्भाओ दुहओ” जइ वि हु तारुन्ननासओ तह य । तह वि हु तणओ इट्ठो जुवईणं होइ पयईए ॥ ४७ माया - पिई" - गुरूणं" उवयारो नेय तीरए काउं । विहवेण सरीरेण वि किं बहुणा एत्थ भणिएणं १ || ४८ धरण-महणाण दोण्हें वि जिणवरधम्मम्मि सुठु रत्ताणं । ईसाएँ विमुक्काणं कइवयवरिसाणि” वोलिंति।। ४९ अन्नदियहम्मि पत्ते कोसलराया वि लोयपञ्चक्खं । जुवरज्जे* गुणजुत्तं धरणं अहिसिंचए तुट्ठो ॥ ५० अहिसित्तं जुवरजे" धरणं सोऊण जणवओ सवो । वयणं जंपइ एयं अज साहा इहं पुहई ॥ ५१ महणजणणीऍ हियए चिंता अइदारुणा इमा जाया । मह तणयस्स न रज्जं सुविणे हु अत्थि मन्ने हं ॥ ५२ जेणं सहोयरे वि हु रजं न हुँ चिंतयंति" नरवइणो । मुत्तणं नियतणयं किं पुण सावत्तएँ अणुएँ ? ॥ ५३ कारणवसेण धरणो मज्झं तणयंमि" वलई नेहेण । मा कुणउ एस रुट्ठो डिंभं" रजस्स कज्जम्मि ॥ ५४ उवयारेणं मारइ सत्तुं जो होइ जाणओ" लोएँ । उवयारमयाण जओ पुण उट्ठाणं फुडं नत्थि ॥ ५५ ४३ ५० 18 C 'देहो | 19 B 1 B °निग्गमो । 2 AD चरण 3 B दुक्खितो । 4 AC मुणिवइए। 5 A वीरा । 6 B सहसोति । 7 B C सडिएहिँ य । 8B जोगेणं । 9-10 B समागओ । 11 B एन्ध | 12-13 B मुणिवरं ताहे । 14 C उजमणं | 15 C मह । 16 B वरिणीए; C घणवइए । 17 C घरणीए । दोन । 20 A D जुत्तीए। 21 A C D जेणं | 22 B गए। 23 B विहु । मोहो । 26 A थोओ । 27 B दुहतो | 28 AD °पिउ' । 2 AD गुरुवाणं; य । 31 B दोनि । 32 B ईसाय; C ईसाइ । 33B ' वरिसाई । 34 C जुयरजे । 36A य । 37 B C देंति । 38 B सावत्थए । 39B जणु । 40 A तणयमि । 41 B वलय; CD 42AD विद्धं । 43 B जनए 44 C लोभो । Jain Education International For Private & Personal Use Only 24 C सुछु । 25 B गुरुवयणं । 30A 35 C जुयरज्जे । www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162