Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
________________
८, ५६ - ८२ ]
नाणपंचमीकहाओ ८. धरणकहा
५१
६५
घाण हणिअं तो हणई ये सो चेव दिवजोएणं । उवयारेणं पहओ हत्थं पि न चालए नियमा ॥ ५६ सावत्तयाण नेहो कज्जविहूणो नं एत्थ नियमेण । जलं -अणलाणं' संगो न हु होइ अणंतरो' जेर्णं ॥ ५७ मह तणओ वि अणेणं तह गहिओ कवड - नेहक लिएणं । जह सुविणे वि न चिंतड़ मणयं पि हु मंगुलमिमस्स ५८ केणावि उवाएणं धरणं मारेमि जइ वि अन्नाया । नियमा मरेज नेही महणो वि हु धरण विरहेण ।। ५९ एयाणं च विओए राया वि मरेज एत्थ नियमेण । * तं चिय फिट्टइ नियमा जं लग्गं नवर पिंजणए ॥ ६० तुम्ही तं" चिये करिमो" जेणं वाही इमस्स इह होइ । एवं कयम्मि नियमा मह पुत्तो राणओ होइ ॥ ६१ इय चिंतिऊण ताएँ कारेउं जोगपाणहीयाओ । रयणविचित्ताओं दढं फंसेणं चरणनिहणाओ || ६२ हक्कारेउं धरणं पभणइ सा पुत्त ! मज्झ एयाओ । केर्ण वि अन्नाएणं" नरेण ढोयणिय दिन्नाओ ॥ ६३ तस्स य तुट्ठाऍ मए भुंजाविय अंगछित्तयं दिनं । दीणाराण य लक्खं दिव्वं तह अस्सजुयलं च ॥ ६४ एयाओं मए पुत्तय ! तुम्हं चलणाण सोहजणयाओ । अवंगाओं" तह चिर्यं धरियाओ सुहु जत्तेणं ॥ अन्नं पि पुत्त ! मज्झं जं किं चि" वि अत्थि गेहमज्झम्मि । लट्ठयरं मणइटुं तं तु दाऊण इच्छामि ॥ ६६ मायाऍ एस पयई जं कत्थइ पावई मणोण्णं तु । तं सर्व्वं तणयकए संचइ दूरे वि निवसती ॥ ६७ अन्नं च पुत्त ! लोए सिंगारो विद्धयाण हसणिजो * । तेण इमाणं तुम्हे" परिभोओ जुज्जए काउं ॥ ६८ धरणो वि भइ माए ! किं पडिवजाविएर्ण बहुएणं" ? | तुम्हच्चं अम्हाणं गेण्हेउं जुज्जए जेण ॥ ६९ सुड्डु वितन्नाण ओतणयाणं भोयणेहिँ बहुएहिं । मायाकवलेण विणा निवाणं" नेयें हिययम्मि ॥ ७० परिहेऊणं ताओ जाव य धरणो घरम्मि संपत्तो । ताव यै झत्ति” विलीणों दोन्नि वि चलणा उ जोएणं * ॥७१ रायाईओ” लोओ” मिलिओ सहस त्तिविम्हिओ हियए । दुक्खत्तो भणइ इमं किं एयं दारुणं जायं ? ॥ ७२ दिदोसो एसो भइ जणो नत्थि एत्थ संदेहो । एरिसियाओ" जेणं पाणहियाओ न दीसंति ॥ ७३ देवमई विभणियं मज्झं दोसेण पावकम्माए । अइदारुणं महंतं वसणं धरणस्स संजायं ॥ अनो वि जणो" भणिही " ईसाए एरिसं कयमणाए । ता पज्जालह जलणं जेणाहं पविसिमो तत्थ ॥ ७५ उबयारत्थं पि कथं जायं अइसस्से कारणं मज्झं" । संती वि करंताणं वेयालो उट्ठएँ अहवा ॥ ७६ अह धरणो भणइ तयं" अंबे ! मा एरिसं पय॑पे । दुप्पुत्तो हवइ जओ कह वि दुमार्यौण लोयम्मि॥७७ पुवज्जियं च पावइ सच्चो वि हु माऍ ! एत्थ लोयम्मि । अन्नस्स देइ दोसं जो होइ अयाणओ" सुड्डु ॥ ७८ धरणाइएहिँ एवं मरणाओं नियत्तियाऍ ताए वि । पाणहियाओ" लेउं पक्खित्ता जलणमज्झम्मि ।। ७९ मारेउं मरइ सयं वसणं दाऊण रोयएँ अलियं । इत्थी कवडेण जुया तं नस्थि ह जं न विरएंई ॥ ८० इत्थीवीसासेणं वसणं पावेइ नियमओ पुरिसो । चलचित्ता दयरहिया साहसकलिया य जेणेसा ॥ ८१ अलियं पि सच्चतुलं जंपंती कवडसंजुया इत्थी" । विउसाण वि हिययाई रंजेई किमिह अन्नेसिं१॥ ८२
७४
24 A
1 C हई | 2 it is not to be found in this Ms. 3 B C विहीणाण | 4 B C it is not found in these Mss. 5 B अनल' । 6 B जलाणं । 7 B अनंतरं । 8 B जेणं । 9B मणगं । 10 B एसो । * The whole latter half is to be found thus in C: - एवं च तस्थ फिड्डू जं किर लगं च पिंजणए । 11 B वम्हा । 12 Bणं । 13-14 B चियंकंरिमो | 15 B तीए । 16 ACD केणा । 17 A CD अणाएणं । 18-20 B अत्तन्वंगाओ निचं । 21 Cपि | 22 B तह | 23 C पाए। D हसणीओ । 25 A D तुब्भं । 26 A पडिजामिएण; B पंडितजाए एत्थ । 27 B बहुयाए । 23 B तुम्हे | 29 B न निब्बुई | 30 B - होइ । 31-32 B झडति । 33 B विलीणो । 34 B जाएण । 35B सब्वो वि राय? | 36 B लोगो । 37 B एरिसयाओ । 38B देवमइयाए । 39 B भणेड़ | 40B जणो । 41 C अयतस्स | 42 B मज्झ । 43 B उडिओ | 44 C इवं 45 C जयंपेह । 46 A CD हु माया । 47 B अयाणुओ । 48B पाणाहियाओं । 49AD रोवए । 50AD अहियं । 51 B बिबरेह | 52 B एभ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162