Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 134
________________ १०, ८०-९९ ] नागपंचमीकहाओ - १०. भविस्सयत्तकद्दा ६१ ८२ ८८ ८९ (a) पूएउं भत्तीए अभिवंदिय देवए य अणुपुत्रिं । उवविट्ठो पढइ इमं कुलयं हरिसेण संजुत्तो ॥ ८० चउरासीलक्खपरिट्ठियाण जीवाण सुहु भीयाण । अभयं देसि तुमं चिय (b) अन्नो पुण नाममेत्तेणं ॥ ८१ (c) संसारोयहि निब्बुड्याण जंतूण अहियदुहियाण । हत्थालंबो परमो होसि तुमं चेव मन्ने हं ॥ (d) कम्मारिवग्गपरिवेढियाण भवियाण ताससहियाणं । होसि जयम्मि सहाओ तं चैव य नत्थि संदेहो ॥ ८३ (e) को हाइताव संतावियाण अइरितं - सिढिलगत्ताणं । धम्मोदयसेएणं तं चेव य कुणसि नेवाणं ॥ ८४ दालिकंद निरुकंदियाण अवमाणकंदर्लिजुयाणं । (f) तं चेव माणजणओ' सवोत्तमविवदाणणं ॥ ८५ अइरोद्दवाहिपरिपीडियाण (g) किच्छेहिँ कह वि मुक्काण । नीरोगत्तं परमं तं (b) चेव य कुणसि लोयाणं ॥ ८६ इह चंदप्पहसामिय ! नाऊणं' तुम्ह सरणमल्लीणो । अहमवि भवभयभीओ तम्हा मह (i) भवखयं कुणसु ॥ ८७ पुवविदेहे काउं केवलिम हिमं जसोहरजइस्स । पुच्छित्ता वित्तंतं भविस्सदत्तस्स जं भावि ॥ अच्चुयकप्पमहिंदो' भविस्सदत्तस्स पुवनेहेण । सिरिचंदप्पहभवणे दिव्वक्खरपंतियं लिहइ ॥ अह तत्तो उट्ठेउं भविस्सदत्तो वि बाहिरुद्देसे । पेच्छइ वरभित्तीए रुइरक्खरपंतियं लिहियं ॥ एतो पंचमगेहे बहुविहरयणेहिँ भूसियदुवारे । कन्ना भविस्संरूपा अच्छइ वररुवसंज्डता ॥ सीए होही भत्ता भविस्सदत्तो त्ति" नस्थि संदेहो । धणवइणो" घरिणीए कमलसिरीर सुबो सुहवो # 33 पुणरुतं भाविंतो अत्थं तत्थैक्खराण लिहियाणं । चिंतइ भविस्सदत्तो विम्हिग्रचित्तो य तुट्टो य विष्णाणन्नू पणओ पिउ-जणणीणं च नामगणाओ । केण वि मज्झ निमित्तं लिहिया वन्नावली नियम ॥ ३४ इय निच्छिऊण हियए पत्तो गंतूण तत्थ गेहम्मि । गहिऊण तीऍ नाम सो जंपइ अतिहि बारि" त्ति" ॥ ९५ सोऊण तस्स सद्दं सावि मणे चिंतवेइ अइभीया | मणुयाणे इहं" भावो न वि विज्जेई ताव नियमेण ॥ ९६ असुरो को वि हु पत्तो मज्झ विणासाय नत्थि संदेहो | इयरह पुण मह नामं को जाणइ माणुसो एत्थ ? ॥ ९७ इय चिती तुट्ठी जयंती जाव पेच्छए कन्ना । तावै सयं" चिय दारं उग्घडियं" तस्स पुन्नेहिं ॥ ९८ दहूण तयं एंत निम्मलवररूवसंजुयं सोम्मं । हरिस भएहिँ समेया उट्ठित्ता आसणं देइ ॥ ९० ९१ ९९ (a) The following stanza is found in B in its place: पूएऊण विहीए सम्मं तह वंदिऊण भावेणं । उवविहो जिणपुरओ भत्तिपरो थुणइ जिणइंदं ॥ ८० ॥ (b) B संसारपिसायभीयाणं ॥ ८१ ॥ (c) In its place, the following stanza is found in B:भवजल हिबुडुमाणाण नाह ! तिरि-नरयदुक्ख भी याणं । अभयं देसि तुमं चिय को अन्नो तारणसमस्थो ? ॥ ८२ ॥ (d) The following stanza is found in B in its place:कम्मरिउतावियाणं भवदुक्खत्ताण भव्वसत्ताणं । परमपयमग्गदेसय ! परमं ताणं तुमं एगो ॥ ८३ ॥ (e) The following stanza is found in its place in B:को हाइकसात्तायाणं बहुदुक्खतावतवियाणं । सिंचयसि तेसि देहं धम्मामयसीयलजलेण ॥ ८४ ॥ 1 C इमेत° | 2 B दारिद्द | 3 C कंदिय° । (f) The following latter half is found in B:तं चिय माणूद्धरणं करेसि नियवयणविहवेण ॥ ८५ ॥ 4 A चैव य । 5AD 'जओ । (g) B बहुदुक्खतत्तदेहाणं । (h) B छेण नवरि मुयाणं । 6 A माऊणं । (i) B°व कुणेसि भव्वाणं । 7 B दुतं । 8 AD महिड्डी । 9AD भविसणु; B भविस्णणु । 10 Bवि । 11 B श्वयणों । 12 B तरस 13 A D विण्णाण-नाण° । 14 B एसा । 15 B वारं । 16 Bति । 17 AB मणुभाण; मणुयाणं । 18 B इह C इह भ | 19 C नज्जइ । 20 A C तट्ठा | 21 B C ता । 22 B C पढमं । 23 B उघाडियं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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