Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 138
________________ १०, १८८ - २१७ ] नाणपंचमीकहाओ- १०. भविस्सयत्तकहा ६५ जो उवयारसमत्थो दुक्खं तस्सेव होइ कहणीयं । जो वा सोउं दुहिओ अन्नस्स न किं पि कहिएण॥ १८८ जो पुण दुक्खं पयडइ पुरओ लोयाण कुडिलचित्ताणं । सो ताणं हसणीओ एयं दुक्खं च अहिययरं ॥ ८९ जक्खाहियेण भणियं किं सावय ! जंपिएणे बहुएणं ? । कजेण फुडं होही मह वयणं रयणिसमयमिं ॥१९० वयणं कजविहूणं धम्मविहूणं च माणुसं जम्मं । निरवच्चं च कलत्तं तिन्नि वि लोए ण अग्घंति ॥ ९१ वोलीणे तम्मि दिणे भविस्सदत्तम्मि पाविए निदं । रइयं दिवविमाणं जक्खाहिवमाणिभद्देणं ॥ ९२ बहुरयणेहिँ समेयं ठविय विमाणम्मि कमलसिरितणयं । संपत्तो सहस चिय सो जक्खो हत्थिणपुरम्मि ॥ ९३ कमलसिरीघरदारे दद्दूण विमाणयं च अवयरियं । नायं च सुब्वयाए भविस्सदत्तस्स आगमणं ॥ ९४ कहियं कमलसिरीए तीए सयमेव तत्थ सच्चवियं । पडिबुद्धेण य नायं भविस्सदत्तेण नियनयरं ॥९५ पुच्छिय भविस्सदत्तं सो जक्खो जाइ निययठाणम्मि । सो वि हु उठेऊणं पणमइ नियजणणिपयकमलं ॥९६ सवं पि हु ठविऊणं गुत्तं तं रयणमाइयं सो उ । अन्नाउ चिय अच्छइ वारेउं जणणिमाईयं ॥ ९७ कहियं कमलसिरीए पुत्तय ! तुह भाउणा इहाणीयं । पत्तं कन्नारयणं कत्थ वि दीवम्मि अइरम्मं ॥९८ पहाणु-वट्टणरहिया सवेणिदंडा य मोणवयकलिया । थोवासणा वि कन्नों केण वि कज्जेण सा पुत्त !॥९९ होही पाणिग्गहणं तीए किर पंचमम्मि दियहम्मि । सोऊण कन्नचरियं भविस्सदत्तो वि परितुहो ॥ २०० जाए पभायसमए गहिऊणं रयण-वत्थमाईयं । दिट्ठो भूपालनिवो तेण य गंतूण विणएणं ॥ १ दिनासणेण भणियं सामिय ! तुह पालणं मुणेऊण । तुह पाय-छायसेवं काउं दूराओं पत्तो" ह ॥ २ भूपालेण" वि" भणिओ अच्छसु तुह संतियं इमं नयरं। धन्नं चिय मह रजं तुह सरिसा जत्थ निवसति ॥३ नियगेहे संपत्तो भणिओ जणणीऍ पुत्त ! किं करिमो ?। तत्थ वि विवाहकज्जे हक्कारइ बंधुदत्तो त्ति ॥४ चिंतइ भविस्सदत्तो अन्ना मज् आगमं सौं उ" । कंता अइदुहियमणा चएज जीयं पि हु कयाइ ॥५ सजाणणानिमित्तं तम्हा पेसेमि जणणियं तत्थ । इय चिंतिऊण तेणं संकेयं कारिया जणणी ॥ ६ माए ! मह सा कन्नी मज्झागमणं कहेसु तं तीए । एयं च नाममुदं तीसे हत्थम्मि देजासु ॥ ७ तत्थ गया कमलसिरी पविसइ जा निम्मलेण वेसेणं । ताव य धणवइणा वि हु एयं खलु चिंतियं हियए ॥ ८ चिरकालपमुक्का वि हु पइणा पुत्तेण तह वि सच्छाया । कमलसिरी इह दीसइ ता पुण किं कारणं एत्थ ?॥९ कमलसिरी संपत्ता भविसणुरूवाएँ अंतियं जाव । ताव य जाणियवत्ता सा तीए कुणइ पडिवत्ती ॥ २१० भणिया य मज्झ पुत्तो तुह भत्ता एत्थ आगओ नियमा। एसा य नाममुद्दा साभिन्नाणं च तुह सुयणु!॥११ संठावेऊण तयं गंतूणं कहइ निययपुत्तस्स । सो वि हु पुणरवि पुत्तो गंतूणं रायगेहम्मि ॥ १२ भणिओ य तेण राया सामिय ! जोएK भविउ मज्झत्थो।धणवइपुत्तेण समं अस्थि विवाओ महंगरुओ १३ भूपालेण वि सिग्धं धणवइपमुहा य तत्थ आणीया । तेसिं कहेइ वत्तं भविस्सदत्तो वि जहवत्तं ॥ १४ दडे भविस्सदत्तं लजियभीओ य" बंधुदत्तो वि । जणयस्स कन्नमूले सव्वं पि य" अक्खए कजं ॥१५ सक्खीहिँ तओ कहियं सामिय ! नियमेण सच्चयं एयं । जं तुम्हं परिकहियं सव्वं पि भविस्सदत्तणं॥१६ नरवइणा वि य"सिग्धं पुत्त-कलत्ताइसंजुओ तइया । छुद्धो गुत्तीहरए धणवइसेही वि कुवियेणं ॥२१७ 1C बोल्लिएण। 2 C°विरय (म) म्मि। 3 B स°14 C तीऍ वि। 5C कस्स। GB थोया। 7 B C सन्ना। 8 B C कंत। 9 A पत्ता। 10 A उ। 11-12 A D भूपालेणं । 13 B कत्था C कत्थ। 14 B अन्नायं । 15-16 B सोउं। 17 B चइज । 18 Cता। 19 D जणणिजं। 20 BC कता। 21 B दिजासु। 22 B भविसणुरूयाय; C भविस्सरूवा। 23 C तओ। 24 B सामि!। 25 B निजोडेस। 26 B भविय। 27 BCवि। 28-29 B चिय। 30-32 B अन्नो वि ह। 33 Bछढो। नाणपं०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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