Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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१०, २४६ - २७३ ] नाणपंचमीकहाओ-१०. भविस्सयत्तकहा अणुहूयं पि अउव्वं भावइ हिययम्मि तस्स मिहुणस्स । अहवा रमणीयत्ते एसो चिय होइ सम्भावो॥२४६ परिभमिऊणं नयरं पुणरवि पत्ता जिणस्स भवणम्मि । पेच्छंति साहुजुयलं उवविलु' एगदेसम्मिं ॥ ४७ अहिवंदिऊण सव्वे उवविठ्ठा महियलम्मि अईमुइया।ते वि हु पियवणणेणं धम्मासीसं पयच्छंति ॥ ४८ तत्थ जयणंदनाम केवलनाणेण संजुयं साहुं । पुच्छइ भविस्सदत्तो विज्झाहरआगमं पणओ ॥ ४९ अह भणइ जयाणंदो कंपिलं अत्थि पुरवरं" एत्थे । तत्थ य राया णंदो आसी सुयणाण आणंदो॥२५० उवरोहिओ" वि तस्स वि" नामेणं वासवो तहिं आसि । तस्स य मणवल्लहिया नामेण सुकेसिया भज्जा॥५१ तीए य दोन्नि पुत्ता सुवक्क-दुव्वक्कैनामयाँ तइयो । दुहिया वि य संतिमई अग्गीमित्तो य तीऍपई ॥ ५२ सो पेसिजइ सययं नरवइगेहेसु णंदनाहेण । पाहुडणयणाणयणं अविणासी एस नाऊणं ॥ ५३ अह अन्नया कयाई सिंघलदीवम्मि पाहुडं दाउं । अन्ने वि हु बहुरयणे" सो विप्पो पेसिओ तेण ॥ ५४ नेऊण तस्सै सवं सिंघलैवइणों" तहाँ समप्पेइ । तह सवं पि हु अक्खइ जं जं नंदेण आइटें ॥ ५५ दिन्नं सिंघलैंवइणा बहुदवं तस्स पाहुडनिमित्तं । अद्धपहे चिय तेणं तं दविणं विलसियं सवं ॥ ५६ नाऊण चिरायंत अवसेरि" कुणइ तस्स नरनाहो । पुणरवि संठवइ मणं दूरपएसो त्ति काऊणं ॥ ५७ मंती सुगुत्तमंतो जोइससत्थस्सै गहियपरमत्थो । वायम्मि सुवक्केणं पराजिओ लोयमज्झम्मि ॥ ५८ सो जोयइ छिद्दाइं वासवलोयाण निच्चकालं पि । अहवा विवायकुविओ मरणं पि हु देइ कालेण ॥ ५९ सुक्कच्छायविवाया धम्मविवाओं य तिन्नि सवे वि।दोन्नि अहम्मा पढमा सोहणओ तत्थ अंतिल्लो ॥२६० दोण्हं चिय अन्नोन्नं सुक्कच्छाओ इहं विणिहिट्ठो। होइ सहायविवाओ दुण्हं अहिणेस" जुत्ताणं ॥ ६१ अन्नोन्नं धम्मीणं उवसमजुत्ताण पक्खरहियाणं । सत्थवियारो सत्थो सो भन्नइ धम्मवाओ ति ॥ ६२ नाऊणं चारजणा नरवइणो जहँ कहेंति अहिययरं । पच्छा कुविओराया अग्गीमित्तस्स उवरिम्मि" ॥६३ अन्नदियहम्मि पत्तो निर्णचंगो त्तिवेईभत्तारो । नरवइवंचणकजे देइ इमं उत्तरं दीणो॥ ६४ पहियं सिंघलवइणा तुम्ह कए उत्तमं च बहुदत्वं । अद्धपहे चोरोहिं गहियं अम्हाण पासाओ ॥ ६५ एत्तियकालं सामिय! अहं पि गोत्तीऍ घल्लिडं धरिओ। दंडकए दुद्वेहिं छलेण अह निग्गओ एण्हि ॥६६ राया वि णायतत्तो अहिययरं तस्स उवरि आरुढो । गोत्तीहरम्मि रोद्दे झत्ति समजं धरावेइ ॥ ६७ दोनयणो वंचिज्जइ जणेण कुसलेण नस्थि संदेहो । नरवइ पुण सहसक्खी कह तीरइ वंचिउं ? भणह ॥ ६८ वासवपमुहा सवे दट्टणं अग्गिमित्तवित्तंतं । निय-नियचारेण गया गंजण-मरणाण अइभीया ॥ ६९ गहिया सुकेसिणीए तष्भयमुक्काएँ देसविरइ त्ति । तीऍ* बलेणं जणणी रविपहनामो सुरो जाओ॥ २७० सो चविऊणं तत्तो उववन्नो तुज्झ घरिणिगन्मम्मि । मरिऊण सुवक्को वि हु उववन्नो सुरवरो ताव ॥७१ पच्छा चविऊण तओ मणवेगो विजधारओ एस । जाईसरणवसेणं जणणीनेहेण इह पत्तो ॥ ७२ दुबक्को वि हु मरि संसारे भमडिऊण अइबहुयं । एण्हि अमरगिरिवरे उववन्नो अयगरो घोरो॥२७३
1B उवविट्ठा। 2 B फासुयपएसे। 3 B अभि। 4 AD तो। 5 B°वयणाणं । 6-7 B C य जयनंदणयं । 8 Bसुमुर्णि। 9-11 B नाम पुरवरं अस्थि । 12 B उपरोहिओ; Cउवरोहियओ। 13 B य; Cit is not to be found in this Ms. 14 B य। 15-17 B तह दुवक्कनामाणो [?]। 18 A D रयणा । 19 B नेऊणो य। 20 B तं। 21 B सिंहल। 22 B°वाइणो य । 23 B तं । 24B सिंहल। 25B दिन; C दवं। 26 A D चिरावंत। 27 B अवसेरी। 28 B°सस्थरथ । 29 B सुधम्मवाओ; Cधम्मावाओ। 30 BC दुण्ह । 31 A अहिणे। 32 A ससुत्ताणं। 33 B
35 C तह। 36 C कहेह। 37 B उवरम्मि। 38 A निद्धवण। 39 B निवेश। 40 Cगुत्तीऍ। 41 C अहि। 42 Bइम्हि। 43 A°याविट्ठो; D आविहो। 44 B तीय । 45B°कुछीए। 46 B बज।
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