Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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-८०
१९९९
९११
२,१०५
लोक
व्यसन निहोस पिहलोओ
१,३५५ | पोकारह व्व भीओ वर्णमेद
व्याधि अहं च वनभेओ
१७४३२ दुकलत्तं दालिई विदेशगमन
शकुन
अंधो कुट्ठी पंगू माणुचयाण धणवजियाण
६:३३
तुहे पडिपुग्नंगे विफलवस्तूनि (भासनमृत्यूणाम्
शत्रु रयणाई बंधुयणो
१,११२
जइ न वि गहेइ दुक्खं विभव
सो चेव हवइ बंधू जं जं कुणंति ताओ
३,११३
शील विहवेणं गरुयत्तं
१००१२ | असहायाण वि कह वि वियोग
सपत्नी एकवसिओं सिनेहो
१९७२ | वरि गम्भम्मि विलीणा विरलवस्तूनि
सम्यग्दृष्टि अहप्पं पंडिच्चं
१,३९७ विहवेणं न वि मजद विरलवस्तूनि (चिंतातुराणाम्)
संयोग (मिथुनानां) निहा भुक्खा तुही
१,१०८ मिहुणाणं संजोगो वैद्यक
स्पृश्यतास्पृश्यता भइसंतो पढम चिय
६:३९ सरिसे वि हु मणुयत्ते वैधव्य
स्वामिन् एकवसिओं सिनेहो
१७७२/इहलोए चिय सुहओ
१७,१६५
१०,३९४
१४०६
२,१७
२२१०७
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