Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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१०, ३०१ - ३२७ ]
नाणपंचमीकहाओ - १०. भविस्सयन्तकहा
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दोह विजईण कमसो नमिऊणं पाय पंकयं सो उ । उवविट्ठो भूवीढे' सहिओ सयलेण लोएणं ॥ ३०१ अह सो भविस्सदत्तो अइसयनाणेण संजय साहुं । नामेण विमलबुद्धिं पुच्छइ एयं च विणणं ॥ २ भयवं ! को विहुवाई पञ्चक्खं चैव मन्नए संतं । सेसं च असतं चिय इह वायविणासओ' 'चेवं ॥ ३ कालाविवहियं जं तं नृणं नत्थि एत्थ " लोयम्मि | इंदियगहणाभावा सवं पि हु ससविसाणं व ॥ ४ आया विनत्थि नियमा पंचभूयाइरित्तओ कोइ " । चेयन्नं पुण इहइं भूयाणं मज्झ" सत्ति व ॥ ५ उववासमाइयाणं फलं च अनिण्णनासणं चेव । दिक्खा वि बालिसाणं भिक्खडा चेव निद्दिट्ठा ॥ ६ देवाण करावणयं समाहिकरणं" च सत्थपढणं च । उक्कडें निहूडणमाई लक्खिज्जइ बालकीड व ॥ ७ परलोइणो अभावा एयं नियमेण नत्थि परलोओ " । तम्हा दाणाईयं सर्व्वं पि निरत्थयं चैव ॥ अत्थित्ते वि हु भन्नइ किं सो मुत्तो व अहव इयरो" त्ति । पञ्चक्खो वि य पढमो इयरो पुण जुज्जए कह णु १ ॥ ९ किं वा मुत्तस्स कहं संबंधो घडइ कम्मुर्णी एथे ? । कम्मविहूणो" य कहं गच्छइ लोयंतियं ठाणं १ ॥ ३१० इय नाणं एवं सोक्खेणं धरह देहपंजरयं । छारीभूयस्स जओ पुणरागमणं इहं नत्थि ॥ सोऊण इमं सामिय ! सुड्डु वि विउसाण हिययमज्झम्मि । जाय खलु नाहित्तं किं पुण मुक्खाणं पुरिसाणं ? ॥
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तहा कहे सामिय ! यविवक्खं" च जं" इहं किं पि । अम्हारिसाण जेणं चित्तं धम्मे थिरं होइ ॥ १३ अह भइ मुणिवरिंदो एयं लोयाइयं मयं पावं । * पञ्चखाइविरुद्धं कह विउसाणं मणं हरउ ? ॥ १४ पचक्खेणं दिट्टो अत्थो सवो वि अत्थि जइ सच्च" । ता मियतहियसलिलं पहाणाईयं पसाहेउ ॥ १५ करणविसयत्तेणं जइ भावो नत्थि एत्थ भावेणं । जच्चंधाइअवेक्खी रुवाईया विता नत्थि ॥ १६ जइ देसविवहियाणं होइ अभावो इहं पयत्थाणं । लोयाईववहारो ता जाओ निष्फलो सवो" ॥ १७ काण व अंतरिया सबै दीसंति एत्थ लोयम्मि । गहणाईया सवे आगमिया साविया पयडा ॥ १८ जेवि सभावंतरिया ते विहु विज्जंति" नत्थि संदेहो । भूय-पिसाईया [ ओ ] वयणा इय कजदंसणओ ॥ १९
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या विहं विज्जइ सुहिओ हं एवमाइ गन्भो त्ति । पुत्रं पि जायमेत्ते थणाहिला से उ सम्भावो " ॥ ३२० आगमियं पिय जम्मं विज्जइ नियमेण एत्थ संसारे । दीसंति मया जेणं भूर्यै- पिसायाइरूवेण ॥ २१ भूएहिं अइरित्तं चेयन्नं चेव भन्नए आया । तयैभेए तवकजं भवेर्जं भूएहिँ मरणे वि ॥ मुत्तो न ताव जीवो होइ अमुत्तो वि कम्मसंबंधो । आयासे" भूएहिँ व तम्हा दाणाइयं सहलं ॥ २३ सुक्केरंडफलस्स व उद्धगइसहावओ य जीवाणं । मुक्कस्स सिद्धिठाणे गमणं पि हु होइ को दोसो १ ॥ २४ पभणइ भविस्सदत्तो जाओ अम्हाण निच्छओ एत्थं । मह पुवजम्मचरियं संपइ भयवं ! परिकहेह ॥ २५ अह जंपर मुणिव लोयाणं बोहणाएं सुपयासं" । जंबुद्दीवेरवर नामेणं अरिपुरं अस्थि ॥ तत्थ पजणनामो राया लोयाण जणियपरिओसो" । मंती वि वज्रसेणो तस्स य भज्जा यँ सिरिकंता ॥ ३२७
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1AD भूपीठे | 2 B लोएण । 3 B सयणेण । 4 B संजु । 5 B चि । 6 B इहहूं। 7-8 B अवधारणाविसओ; C चेवऽवधारणाविसओ । 9A एत्थ । 10 A नदिथ । 11 A को वि । 12 BC मज्ज' | 13 C देवाइ | 14 C ° मरणं । 15 A D उक्कुड° । 16 B परलोगो । 17 A उयरो । 18 B कम्णो | 19 B इत्थ | 20 C °विमुक्को। 21 C मुक्खाइ° । 22 AD करेसु । 23 AD ° विपक्खं । 24 C जइ । 25 B महा° 1 * From this onwards, some eight stanzas are not found in B as the page 194 is missing. 26 A सव्वं । 27 C करणे । 28 C भावाणं | 29 C 'अवेक्खो । 30 C सो वि । 31 A वज्जंति । 32 C तब्भावो । † From this onwards the stanzas are to be found in B. 33 C भागामियं । 34 D भूअ°। 35 B तह । 36 B भएन । 37 B C आषारो । 38 Bय 39 B इत्थ । 40 B बोहणाइ | 41 C सुपसायं । 42 B माहप्पो । 43 C
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