Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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सिरी महेसरसूरिविरइयाओ
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[ १०, १६० - १८७ वायंति तिवाया उवरिं गति जलहरा गहिरा । डोलंति' पवहणाई जलकलोलेहिं खित्ताई' ॥ १६० स वि जणा भीया तीए चलणेसु सुठु पडिलग्गा । खामिति' महुरवयणा विणिवारिय बंधुदत्तं तु ॥ ६१ रक्खति तई सवे गंजिज्जति' च' बंधुदत्तेण । एस सई अभिभूया सवं पि हु मा विणासेउ || ६२ सुत्तारयणिसम सुविणे देवीए अक्खियं तीए । मिलिही तुह वर इत्तो गयउरपत्ताऍ मासेण ॥ ६३ अह सा सत्था जाया किं पि वि भुंजेइ पाणधारणयं । इयरह मुयाण संगो कह होउ पियेण समयं तु ? ॥ ६४ असहायाणवि कह विहु इहयं " मणुयाण सीलकलियाणं । अच्छंतु ताव अन्ने देवा वि हु किंकरा होंति ॥ ६५ पत्तो कमेण गंतुं सो सत्थो गयउरस्स बैहिदेसे । नरवइणा वि हु सिग्घं आढत्तं नयरभूसणयं ॥ ६६ तक्खणमेते तओ" वत्थाई विभूसियं तयं" नयरं " । अइरम्मं संजायं अमरपुरीसन्निहं" परमं " ॥ ६७ तो राय - पउरलोओ गंतूणं सम्मुहं सबहुमाणं । पेसईं सबंधुदत्तं तं सत्थं निम्मलच्छायं ॥ ६८ मिलियाण बंधुदत्तो नरवइमाईण कहइ पञ्चक्खं । एयं कन्नारयणं पत्तं अम्हेहिँ तत्थेव ॥ एत्थेव य परिणयणं होही एयाऍ सोहणदिणम्मि । मउणाइयं इमीए गहियं जा पाणिगहणं तु ॥ १७० दाऊण जहाजोग्गं दाणं सध्वो वि तोसिओ लोओ । नरवइपमुहा पच्छीं निय-नियठाणेसु संपत्ता ॥ ७१ सो वि जणो जंपइ धन्नो इह धणवई जणवयम्मि । जस्स सुओ अइबहुयं विढवित्ती आगओ दविणं ॥ ७२ सा वि" भविस्सणुरूव मोणेणं चेव चिट्ठए तत्थ । मलिणी मोक्कलंकेसा थोवाहारा य विमणा य ॥ ७३ कमलसिरी विय सिग्घं सोऊणं सत्थमागयं तुरिया । स वि हु परिपुट्ठों वत्तं तणयस्स न कहेंति ॥ ७४ जाणता विहु विउसा कस्स वि नाऊण दुक्खउप्पत्तिं । इह-परलोयविरुद्धं जंपंति न कज्जविरहेण ॥ ७५ ता जाइ सदुक्खा विलवंती सुवयाऍ पासम्मि । सा सुवयाऍ भणिया किं ओही तुज्झ वीसरिओ" १॥ ७६ सो विसा एवं तहवि हु चित्तेण दुक्खमावहइ । सवो वि जणो पत्तो कह सो एगल्लओ थक्को ? ॥ ७७ गंतूणं विणणं कमलसिरिं मणइ बंधुदत्तो वि । अच्छइ भविस्सदत्तो माए ! न हु एत्थ संदेहो ॥ ७८ वहुलोभयाऍ पत्तो" गंतूणं रयणदीवयं सो उ । एही कुसलेणं चिय मा दुक्खं कुणसु हिययम्मि ॥ ७९ इय जंपिऊण ती से नियगेहं पाविओ महापावो । सा वि य" किं पि विसत्था संजाया तस्स वयणेणं ॥ १८० जक्खो वि माणिभद्दो सरिऊणं सामियस्स आणत्तिं । चंदप्पहजिण गेहे " संपत्तो दीवतियम्मि ॥ ८१ पूइय वंदिय देवे भविस्सदत्तेण आसणे दिन्ने । अह्निवंदिय उवविट्ठो जंपइ तेणेव परिपुट्ठो ॥ नामेण माणिभद्दो जक्खो हं सुय ! एत्थं संपत्तो । जिणवंदणानिमित्तं" तुज्झ म अक्खियं एयं ॥ ८३ कत्तो तुमं पिइह एगागी कीस भण संपत्तो ? । पायं मणुयविहीणं" सम्मत्तपरायणो तं सि ॥ ८४
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वि सवं कहियं जं जहवित्तं च निययवित्तंतं । आईओ जा अंतं जक्खाणं सामिणो तस्स ॥ ८५
सो भणिओ कले" वि है तुज्झ संगमं " कुणिमो । जणणीमाइजणेणं तम्हा मेल्हेसुँ मणदुक्खं ॥ ८६ पभणइ भविस्सदत्तो तुट्ठो हियएण महुरझुणिकलिओ । जक्खाहिवस्स पुरओ हियइच्छियसंगसुणणेणं ॥ १८७
1 B डो ंति । 2-3 B C ° कल्लोला लिंगियतणूणि । 4 B खामंति । 5 B ततो । 6 BC गंजिज्जती । 7 B Cय । 8 C रयणीए । 9 B दंतीऍ । 10 B इहई । 11 B बहु । 12 B मित्तेन । 13 B ततो। 14 B वत्थेहिं । 15 B इमं । 16 B यरं । 17 B°निभं । 18B पउरं; C रम्मं । 19 C पेच्छइ । 20 B पता । 21 B विढवेत्ता । 22 C निय | 23 B सणुरूया; C भविस्सरूवा । 24 B भलिणा । 25 B मोकल° । 26 B तुरियं; C तइया । 27 B तुट्ठा । 28 B कहिंति । 29 B areit | 30 C एतो 31 C हु । 32 B भवणे । 33 A एत्थ । 34 A सुभणु ! । 35 B °वंदणेर (णा) कए फुड । 36 C कए । 37 B भवण | 38 B C 'विहीणो | 39 C हु। चिय। 43 C करिमो । 44 B मिलेसु ।
40 C कल्लि । 41-42 C
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