Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ [ १०, १००-१२९ सो उवविठ्ठो संतो दह्नणं' तं जुवाणियं कन्नं । नियनयणाणं मन्नइ सफलत्तं तद्दिणे चेव ॥ १०० दोण्हं पि हुँ अन्नोन्नं हिययवियप्पो य एरिसो जाओ । जई पुन्नपहावेणं अम्हाणं होज संबंधो ॥ १ एत्थंतरम्मि जंपइ सहसा अह खेत्तदेवया तत्थ । तुम्हाण होउ पुत्तय ! संबंधो मज्झ वयणणं ॥ २ न्हाया भुत्त-विलित्ता दो वि जणा जाव तत्थ अच्छंति । ताव य पत्तो असुरो नामेणं असणिवेगो त्ति ॥ ३ चिंतइ सो वि मणेणं दीसइ मणुयाण मिहुणयं एत्थ । तो घल्लेमि समुद्दे गहिऊणं निययहत्थेहिं ॥ ४ ताव य खणेण जाओ अहिअयरं सोऽसुरो पसन्नमणो । जाणइ ओहिवसेणं मह मित्तो एस पुश्विलो ॥५ पच्छा भविस्सदत्तो भणिओ असुरेण नेहकलिएण । वरमित्त ! तुमं दिहो चिरकालाओ इहं अज ॥ ६ जम्मंतरवित्तंते कहिए असुरेण तस्स कुमरस्स । जाया मणम्मि तुट्ठी मिलियं चित्तं च अन्नोन्नं ॥ ७ दोण्ह वि ताण खणेणं सुङविभूईएँ पाणिगहणं च । असुरेण समणुरूवं" निम्मवियं जह य जणएणं॥ ८ भणिओ य तुमं राया एत्थ पुरे तह य सयलदीवम्मि । रयण-सुवन्नाईयं सवं चिय तुह कयं एयं ॥ ९
__ इय जंपिऊण वयणं" नियठाणं खामिऊण सो पत्तो ।
ते विहु दोन्नि वि पच्छा विसयसुहं तत्थ भुजंति ॥ अह अन्नया कयाई भविस्सदत्तेण पुच्छिया भन्जा । नियवृत्तंतं अक्खइ जं जहवित्तं च दुईकलियो॥११ नयरं च दीवतिलयं एवं राया जसोहरो एत्थे । भवदत्तो मह जणओ जणणी वि हु नागसेण त्ति ॥ १२ अन्नो वि आसि लोओ बहुविहलोएण संजुओ मुइओ। विन्नाण-नाणकलिओ देवसमूहो व इह नाह! ॥ १३ केणावि हु सहस चिय सबो विहु रायसंजुओ लोओ।रयणायरम्मि खित्तो अहमेव य मुक्किया एक्का॥१४ मह जणणी-जणएहिं निय-नियरूवं" च कारियं पुद्धिं । पेच्छंतीऍ इमाइं मए वि कालो इहं गमिओ॥१५ तप्पभिई मुंजंता विसयसुहं दो वि तत्थ नयरम्मि । अन्नोन्नं पडिबद्धा गयं पि कालं न याणंति ॥ १६ कमलसिरी वि ससोया सुवयअजाएँ नाणकलियाए। कहइ रुयंती" दुक्खं नियतणयविओइया पणया॥१७ अवणीय तीऍ बहुयं सोयं सा समणिया सुवयणेहिं । गिण्हावइ पंचमियं वन्नित्ती तीई फलभावं ॥१८ कहियाइँ ताइँ तीए संवच्छर-मास-पक्ख-दियहाई । होही जेसु इमाए भविस्सदत्तेण मेलावो ॥१९ तवयणसत्थहियया कमलसिरी सुवयाएँ पामूले । जिणसाहुपूयणरया अच्छइ ओहिं विचिंतेती ॥१२० आसा रक्खइ जीयं सुट्ठ वि दुहियाण एत्थ संसारे । होइ निरासाण जओ तक्खणमित्तेण मरणं पि ॥ २१ अन्नदियहम्मि भणिओ भविस्सदत्तो वि निययकताए । सामिय ! कहेसु मझं अप्पणयं ठाणमाईयं ॥२२ कहियं च तेण सव्वं जं जहवित्तं च दीवपज्जतं । सरिऊण निययजणणि पच्छा सो दुम्मणो जाओ" ॥२३ भणिओ य तीऍ सामिय! कीस तुमं झत्ति दुम्मणो जाओ? । तुह विमणत्तं दडे मज्झै दुहं दारुणं होई ॥२४ अणुमाणेणं नजइ हियए इटेण इडसंतीय" । सोक्खं जइ वा दुक्खं संकेतं वयणछायाए॥ २५ पभणइ भविस्सदत्तो पावो हं निठुरो पिए ! सुहु । तहवच्छलं पि जणणिं पेच्छामि न जेण गंतूणं ॥ २६ गहिऊण सारभूयं वच्चामो ताव जलहितीरम्मि । तत्थ ठियाणं होही को विहु अणुगामिओ सत्थो ॥२७ पभणइ सा वि हु सामिय! जंतुह चित्तस्स किं पि पडिहाइ। तं कीरइ अचिरेणं अहं पि अणुकूलिया तत्थ॥२८ अह पणमिऊण चलणे दो वि हु चंदप्पहस्स भावणं । संचारिति कमेणं जंजं चित्तस्स पडिहाइ ॥ १२९
1 B दह्ण य। 2 A D साफलं। 3 B य। 4-6 B पुनाणुभावओ जह। 7 B भुत्तु । 8 B मिहणाण। 9 A तो। 10 AD मए। 11 B रूयं । 12 Cपि हु। 13 Bएयं । 14 Bसुह। 15C कलिय। 16 B कलियं । 17 Bइस्थ; C तत्थ। 18 B रूयं। 19 A रुवंती। 20 A तीइ । 21 B विनत्ता। 22 B तीऍ। 23 A तीह । 24 A ताए। 25 B विचिंतंती। 26 Bखु । 27 B जातो। 28 B मह। 29 B दुक्खं। 30 B जायं। 31C°संतीए। 32 Cपासम्मि । 33 B संचारैति ।
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