Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 133
________________ ६० सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ [१०, ५४-७९ तं सोऊणं भणियं भविस्सदत्तेण बंधुदत्तस्स । जामि अहं चिये भाउय ! तुम्हं सत्येण जइ भणह ॥५४ तुहतणओ च्चिय सत्थो पभणइ विणएण बंधुदत्तो वि ।जइ वच्चइ भाय ! तुमे ता मम सव्वं पि संपन्नं ॥ ५५ जणओ भाया वणिओ जइ सत्थे होइ कह वि पुन्नेहिं । ता जाण विएसो वि हु नियगेहं नस्थि संदेहो॥५६ सवं पि कयं पिउणं *दीवंतरजोगयं च सव्वेहिं । पंचसयाण ये सामी सत्थियपुरिसाण सो जाओ॥५७ भणिओ य बंधुदत्तो मायाए हविय सु९ एगते । तह पुत्त ! करेज तुमं भविस्सदत्तो जह न एइ ॥ ५८ इयरह एसो जेठो पिउविरहे सामिओ इहं होही । अहवा अद्धग्गाही पुत्तय ! इह संसओ नत्थि ॥ ५९ अन्नदियहम्मि सत्थो चलिओ सवो वि सो जणसमेओ । पत्तो कमेण गंतुं तीरे उदहिस्स रुंदस्स ॥६० उवहीं" वि सत्थपुरओ उट्ठइ इवं तुंगतरलकल्लोलो । अहवा गिहपत्ताणं कुणंति गरुया वि उट्ठाणं ॥६१ भरिऊण पवहणाई सन्वे वि हु निययभंडजायस्स । चलिया मंगलपुव्वं सुवन्नदीवस्स मग्गेणं ॥ ६२ गच्छंताण कमेणं तुट्टे सवाण इंधणाईए । मग्गन्नुएहिँ“ सहसा नीया मयणायदीवम्मि ॥ ६३ तत्थ य उत्तरिऊणं गेण्हंति" फलाइयाइँ सव्वे वि । वचंति य सवं" पि" हुपेच्छंति य पेच्छणिजाई॥६४ सधे वि तहिं पत्ता भविस्सदत्तेण वजिया जाव । ताव य चालई पोए वेएणं बंधुदत्तो वि ॥ ६५ अह सत्थिएहिँ भणियं भविस्सदत्तो न दीसए एत्थ । मोत्तूण कीस चलिया ? सत्थस्स न जुज्जए एयं ॥६६ अहं भणई बंधुदत्तो एकस्सै कए न नासिमो सवे । न्हाया तडम्मि तुम्हे गुण-दोसा पुण महं एत्थ॥६७ नाऊण तस्स चित्तं सवे वि हु“ संठिया मणे" दुहिया" । पत्तो य तप्पएसे भविस्सदत्तो विचिंतेइ ॥ ६८ किं मं मोत्तूण गया ? किंवा सो चेव न हु इमो देसो ? । अहवा दीसइ चिण्हं तम्हा लोभेण" मुक्को हं॥६९ इय चिंतिऊण तत्तो सो पुण वलिऊण हिंडए दीवं । कयलीहरम्मि रम्मे रयणी" वोलेइ ठाऊणं ॥७० जाए पहायसमएँ भमडित्ता गिरिवरस्स कडयम्मि । पेच्छइ विवराभिमुहं पुराणसोवाणपंतीयं ॥ ७१ चिंतइ मणेण एवं नूणं केणावि दिवपुरिसेणं । रइया सुवाणपंती कस्स वि ठाणस्स कजेणं ॥ ७२ अह चडइ तत्थ सणियं हियए काऊण निच्छयं एयं । सुपुरिसमग्गम्मि ठिओ पुरिसो पावेइ कल्लाणं ॥७३ नीसरिओ विवराओ पेच्छइ नयणाभिरामयं पुरओ । उववणगणसोहिलं अमरपुरीसरिसयं नयरं” ॥७४ उत्तुंगकणयसालं तोरणकलसेहिँ सोहियसुपारं । अइगहिरपरिहिकलियं जणवयरहियं च दणं ॥ ७५ पविसइ विम्हियचित्तो पेच्छंतो वीहि-गेहपंतीओ । कंचण-रयणमयाओ देवाण वि" तोसजणयाओ॥७६ थेवंतरं च गंतुं पेच्छइ बहुभेयठाणपरिकलियं । कंचण-रयणसभूसं आसणमाईहिँ परिकलियं ॥ ७७ रायगिहं दळूणं नीसरि पेच्छए मणभिरामं । चंदप्पहजिणभवणं बहुविहरयणेहिँ चिंचइयं ॥ ७८ काऊण कायसुद्धिं गहिऊणं सुरहि-गंध-कुसुमाइं"। पविसिय दळूण तहिं चंदप्पहसामियं परमं ॥७९ 1Cपिठ। 2 Aत्ति। 3A ठणिओ। 4 Bव B जोगं जं चिय सुवनदीवस्स। 5C 'सयाणं। 6Cit is not found in this Ms. 7-8 B ठाविऊण । 9 B तुह। 10 A D उवहिस्स। 11 Bउदही। 12 Bइह। 13 B सम्वम्मि। 14 B मगन्नएहि। 15 B गिण्हंति। 16 B सम्वे । 17 B वि। 18 B वालइ । 19-20 Cपभणइ य। 21 B एक्कस्स । 22 B सव्वं । 23-27 B मणदूमिया पयंपति। 28 B लोएण। 29 Cरयणिं। 30 B य पहासमए। 31 Bउट्रित्ता। 32A कयमि; B मज्झम्मि। 33 B हिमुहं। 34 B°सोयाण। 35 Cपंतीओ । 36 AD हिरामयं । 37 B एयं । 38 B°मालं। 39 B°दुयारं; Cमुयारं। 40 A D °परिह। 41 B देवाणं। 42 B it is not to be found in this Ms. 43 C नीहारिउं । 44 B गहिऊण य । 45 B सुरभि । 46 B कुसुम। 47 B°गंधाई। 48 Cपविसह। 49-50 B°सामिजिणपडिम। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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