Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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५८
सिरी महेसरसूरिविरश्याओ
[ ९, १२५, १०, १ - २४
देवी कह एयं सोऊणं जो करेइ पंचमियं । सधेसि पि सुहाणं सो वि हु खलु भायणं' होइ ॥ १२५ इति श्रीमहेश्वराचार्यविरचिते पञ्चमीमाहात्म्ये देव्याख्यानकं नवमं समाप्तम् ॥
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१०. भविस्सयत्तकहा ।
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लोयणतहभावजुयं वित्तंतं देविसंतियं भणियं । दीवंतरसोक्खजुयं भविस्सदत्तस्स वोच्छामि ॥ मुवि इव बहुविजओ सायर इव दोणिपोयपरिकलिओ । जंबुद्दीवो रम्मो दीव- समुद्दाण मज्झगओ ॥ २ तस्सं यै दाहिणभरहे' मज्झिमखंडम्मि तित्थपुन्नम्मि | धम्मम्मि य पइदियहं सुहरसकलिए विसालम्मि ॥ ३ सग्गो व सुरसमेओ सुगओ इव अज्जसत्तपन्नवओ | चंदो व नहालीणो चक्कं पिव बहुपयावासो ॥ ४ उवहि व विविहरयणो दिवससमूहो व भद्दियसमाणो । हत्थि व पउरपमओ' कुरुदेसो अत्थि रमणीओ ॥ ५ हंसो व सुप्पयारं नयरं नामेण गयउरं तत्थ । सरओ' व सुद्धकंठं" दिणयरबिंबं व बहुउदयं ॥ ६ काम व सयाणंगो इंदो इव सुरगणेहिँ कयसोहो । कउरववंसप्पभवो भूपालो नाम तन्नाहो" || दुडा - दुभावं पुह" कोहाइवज्जियमणेणं । पालतेणं सययं" नियनामं तेण सच्चवियं ॥ जो चिपाल पुहई" सो चेव य एत्थ होइ भूपालो । जो पुण अन्नायरओ सो चरडो अहव लुंटाओ ॥ ९ तत्थेव य वरनयरे धणवइनामेण वाणिओ तइया । सब्वाण वि लोयाणं" विहवेणं" उत्तमो आसि ॥ १० भूपालस्स वि पूओ " विहवेणं सो दढं" तहिं" जाओ" । सव्वजणाणं" उवरिं सेपियं पावएं तह य ॥ ११ विवेणं गरुयत्तं विवेणं" सयणपरियणाईयं । विहवेणं सुहभावो विहवेणं वसणपरिहाणी ॥ १२ गुणिणो मुणिणो धीरीं जाइ - कुलाहिँ भूसिया अहियं । धणवइणो घरदारे पइदियहं सेवया जंति ॥ १३ तम्हा जह तह जुजइ विहवस्सुप्पायणं इहं लोए । विहवरहियाण जेणं सवो वि परम्मुहो होइ ॥ कमलसिरी सिरितुल्ला तस्स य सेट्ठिस्स वल्लहा भज्जा । अणुदियहं पइभत्ता अणुकूला सवकज्जेसु ॥ १५ सा चैव हवइ भजा पइइ जा करेइ अणुदियहं " । इयरा चंडसहावा घरिणीरूवेण वइरिणिया ॥ १६ धरिणीकुसलत्तेणं सोहं पावेइ" इह जणे पुरिसो" । अइकुसलो वि हु जेणं पुरिसो किं इंडियं" लेइ" १ ॥ १७ विसयसुहं सेवंती कमलसिरी अह कमेण संजाया । गब्भवई" सुहसुविणाँ वहमाणी हिययभाणंदं ॥ १८ कुलया कंतसरूवा विहवजुया वल्लहा य नियपइणो । गब्भविहूण नारी अकयत्थं मुणइ अप्पाणं ॥ १९ जह जह वडइ गन्भो तह तह तीए वि वड्ढए अंग । अहवा उदरपवड्डी" जणणीए कुणइ वट्ट (ड) त्तं ॥ २० दोहलए पडिपुणे काणं" तीऍ दारओ" जाओ । नयण-मणाणंदयरो जणणीए तह य लोयाणं ॥ २१ बालचरियाइँ दडुं अन्नाण वि होइ नेहसंबंधो । जणणीऍ पुणो नेहं जणणि श्चिय जाणए तणए ॥ २२ पिउ - माईसुं नेहो नासर इत्थीण तेत्तिओ" नियमा । तणयाणं जम्मेणं वत्थूण सहावओ एत्थं ॥ २३ वित्ते वद्धावणए दिने दाणम्मि विविहलोयाणं । कालेण कथं नामं भविस्सदत्तो त्ति पियरेहिं ॥
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1 B भायणो । * B पञ्चमीफलसंसूचकं देवी (व्या) ख्यानकं समाप्तं नवमम् । ; C महेश्वरसूरिविरचितं पञ्चमीफलसंसूचकं देव्याख्यानकं समाप्तं नवमम् । 2 C दिव्वं । 3-5 B दाहिणभरहे तस्स य । 6 B सग्गु । 7 B° पउमो । 8B हंसु । 9B सर । 10 AD कटुं । 11 B नरनाहो । 12 B पुहवी | 13 B सभ्यं । 14C पुद्दई । 15 B वणियाणं । 16 B विवाणं; C विहवेण य | 17 B पुरओ । 18B हिं। 19 B दढो । 20 B जातो । 21 A CD अणेणं | 22 B पावियं । 23 B विहवेण य । 24 A D मुणओ। 25 A वीरा । 26 C चित्तस्स | 27 C पहूदियहं । 28 B C पावंति । 29BO पुरिसा । 30 C इंडिओ । 31 C लोए । 32-33B गब्भं वहद्द सुहेणं । 34 B विहीणा । वुड्ड़ी। 36BD A वडतं 37B समएणं । 38 B दारतो | 39 B तित्तिओ ।
35 B म
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