Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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सिरीमहेसरसूरीविरश्याओ
[९, ६५-९५ अह लच्छिसुंदरेण वि नियरूवं पयडिऊण अइरम्मं । निवमाईणं पुरओं कहियं सवं पि वुत्तंतं ॥ ६७ कहियम्मि तम्मि पच्छा जाओ बहुआण धम्मपडिबोहो । पञ्चयओ चिय पायं कज्जेसु पयट्टए लोओ ॥ ६८ दाऊणं देवीए वत्था-ऽऽभरणा बहुपयाराई । सुयणु ! सरेजसु वसणे भणिऊण अदंसणो जाओ॥ ६९ सुरलोयगए देवे विम्हयभरिओ जणो वि विक्खिरिओ। देवी वि धम्मकले अहिययरं उज्जमं कुणइ ॥७० राया वि मणे चिंतइ कस्सेयं कन्नयं पयच्छामि ? । अणुरूवो मीऍ वरो विरलो चिय एत्थ लोयर्मिं ॥७१ अहवा किं बहुएणं ? विरएमि सयंवराऍ मंडवयं । जेण वरेइ सयं चिय एस चिय रोइयं पुरिसं ॥ ७२ कारावियं च बाहिं नयरीए सरिसभूमिभायम्मि । मंडवयं अइविउलं मंचेहिँ समन्नियं रुइरं ॥ ७३ आहूया रायाणो जे के वि हु दसदिसासु वटुंति । दिन्नाइँ अ वासाई" सयणाऽऽ-सणमाइकलियाई॥७४ अन्नदियहम्मि जाए कन्नाएँ सयंवरस्स जोगम्मि । सवे" वि" य नरवइणो मंचेसु पइट्ठिया कमसो॥७५ देवी वि भूसियंगी चडिऊण रहम्मि जुत्ततुरयम्मि । पविसइ मंडवमझे खोहंती" निवइचित्ताइं॥७६ दट्टण तयं इंतिं सवे वि हु नियमणम्मि चिंतंति" । सो चिय पुरिसो सुहओ जस्सेसा घलिही मालं॥७७ अफा(प्फा)लियम्मि तूरे तह य पढ़तेहिँ बंदिण सएहिं । नियपडिहारी कमसो दसेइ नराहिवे सखे ॥ ७८ सवे वि हु मोत्तूणं देवी वरमालियं गुणड्ढस्स । कंठम्मि विलंबेई कायंदीनयरिनाहस्स ॥ ७९ एत्थंतरम्मि कुविया नरवइणो वयणयं पयंपति । अवमाणं अम्ह कयं सवाण वि पेच्छ एयाए ॥ ८० रूवाइएहिँ कलिए सवे वि हु मेल्हिऊण निवतणए । सबाण अहम्मयरे पावाए घल्लिया माला ॥ ८१ अहवा जाइवसेणं सरियाओ तह य द महिलाओ । मोत्तूणं उच्चाई नीयं चिय जंति पाएण ॥ ८२ अन्नो पुण भणइ इमं दोसो मणयं पि नत्थि एयाए । नयणाण चरियमेयं ताणं चिय निग्गहं कुणिमो ॥ ८३ गहिऊण तओ चावं लोहमइं गोलियं च घल्लेउं । निच्छोलइ नयणाई देवीए लाहवगुणेणं ॥ ८४ आकंदिऊण पडिया धरणीए निययलोयपरियरिया । देवी सरेइ हियए अह लच्छीसुंदरं देवं ॥ ८५ वसणम्मि समावडिए झत्ति उवायस्स चिंतणं उचियं । इयरह वड्डइ दुक्खं समयं चिय निसुणमाणेण।।८६ उज्जोयंतो गयणं विमाणरयणेहिँ सो सुरो सहसा । संपत्तो नेहवसा लोयाण विबोहणडाए ॥ ८७ थंभेऊणं सयले" निवतणए जंपए इमं वयणं । उवहह पुरिसनाम ववहारं नेय जाणेह ॥ ८८. एको च्चिय परिणेई कन्नं किर जाणए जणो सयो । ती तम्हे इह खुहिया कहह महं केण कजेणं १॥ ८९ जम्मंतरसंजणिओ संजोओ जेण एत्थं मिहुणाणं । रूवाईया तेणं नेहस्स न कारणं हति ॥ ९० अह गिहिऊण देविं फंसेउं करयलेहिं अच्छीणि । सव्वाण वि पञ्चक्खं भणइ इमं पेसलं वयणं ।। ९१ जम्मंतरम्मि तुमए सुयणु ! कया पंचमी सुभत्तीए । तस्स पभावेण तुहं नयणाइं होंतु पउणाई ॥ ९२ तक्खणमेत्तेणे तओ नयणाई तीऍ सुटु रम्माइं । जायाई लोयाणं जिणधम्मे पच्चयकराई ॥ ९३ भणिया य सुरेण इमं नरवइणो देविछायणणत्थं । जइ इ8 नियजीयं ता देवि नमहँ उठेउं ॥ ९४ ते वि हु मरणभएणं मेल्हित्ता जाइमाइअहिमाणं । सबजणाणं पुरओ* नमंति देवीऍ पयकमलं ॥ ९५ 1 B पइडिऊण । 2 B पुरओ। 3 B कहियं पि। 4A Dssहरणाई। 5A C D इमीऍ। 6 B
B रुइयं । 10 B दिना । 11 B it is not to be found in this Ms. 12 B आवासातो। 13 B सम्वं । 14-15 B चिय। 16 B मरी। 17 Bखोभंती। 18 B चिंतिंति। 19 B धनो। 20 B मेलिऊण | 21 B°वसेसं। 22 BD दह। 23 B उचाई। 24 B
25A चित। 26 A उचि। 27 B सम्वे। 28 AD°माणं। 29 B नेग। 30 A तो। 31 A तुज्झे। 32 Bइस्थ । 33 B देवी। 34 B मंतरे वि। 35 B तीए। 36 B पहावेण । 37 A होति: D हंति। 38 Boमित्तेण। 39 Bसट। 40B तीऍ। 41 Bथोय० । 42 AD नमह। 43B मिछित्ता। 44 Bपुरतो ।
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