Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
________________
९,३९-६६ ]
नागपंचमीकहाओ - ९. देवी कहा
३९
४०
४२
४३
४५
४६
४८
पुन्नमिव चिंत इंदुमई उज्जमीर्य एएणं । नयाइँ होंतु मज्झं अन्नभवे सब अहियाई ॥ नयणाणं चंगत्ते सवं पि हु चंगयं इहं अंगं । मुह-वन्नैभल्लिमाए अन्नाणं वि भल्लिमा जेणं ॥ अन्त्रेण नरो बद्धो छुट्टेज कयाइ दिवजोएणं । दिट्ठीए पुण बद्धो सययं पि न छुट्टइ कया वि ॥ ४१ सा वि दुईणं दिट्ठि चिय एत्थ दूइया निउणा । इट्ठा - ऽणिडविहाय जेणं सा चेव वंजेई ॥ जं नयणाण न भावइ हिययं दूरेण तं फुडं चयइ । तेणं चिय नयणाणं मापं सव्वसु ॥ अह अन्ना कयाई इहई' भरहस्स मज्झखंडम्मि । अहिछत्तनामियाए नयरीए माहवनिवस्स ॥ लीलावइरिणीए मरिऊणं कम्मपरिणइवसेणं । इंदुमईए जीवो उववन्नो कुच्छिमज्झम्मिं ॥ पडिपुन्ने दिसुं सोहणलग्गम्मि संपवत्तम्मिं । उत्तत्तकणयवन्ना जाया तीसे सुहा कन्ना ॥ जायाऍ जेण तइया दिप्पइ सद्यो वि जणवओ तावें । देवि त्ति नाम तीसे ठवियं जणणीऍ तेणेव ॥ ४७ वतीए तीए वड्ढइ तारुन्नयं सलावन्नं" | तरुणाणं तावकरं अणंगसत्थं व अंगमयं * ॥ सीसे वि तीऍ धरिया पिट्ठि" चिये ठंति केसया निच्चं । अहवा कसिणसहाव पहुणो दिट्ठि विवति ॥४९ सरलो विकुडिलरूवो तीऍ निडालम्मि कुडिलसंघाओ | अहवा अलियपसंगे सरला वि हु कुडिलया होंति ५० किन्हाओ कुडिलाओ भमुहाओ दो" वि" तीऍ" रायंति । लोयणबाणजुयाओ" मयणस्स व चावलडीओ५१ सवर्णतं पत्ताइं निम्मल-कसिणाइँ" तीऍ नयणाइं । विउसाणं व मणाई कस्स वें हिययं न मोहंति " १ ॥ ५२ किं वन्निएण बहुणा ? सवं पि हु तीए अंगसंठाणं । इयरतरुणीण दिहं मसिवट्टं देइ वयणेसुं ॥ ५३ कुलकमवसेण ती धम्मो विहु जिणमओ मओ निच्च । नर- सुरसुहसंजणओ मोक्खस्स पसाहओ" तह य ॥ ५४ कुलकमओ व पत्तो मेल्हिज्जई दोससंजुओ धम्मो । दालिद्दं पिव दुहओ कलिऊणं विउसलोएणं ॥ ५५ पउमावि समाहीए मरिऊणं लच्छिसुंदरो देवो । माहिंदे वरकप्पे उववन्नो पुन्नजोएणं ॥ ५६ ओहिन्नाणवणं देवं दहूण हवसवत्ती । सो सहसा संपत्तो अहिछत्तं स्यणिसमयमि ॥ इंदुम रूवं काऊ नयणवज्जियं तत्थ । पउमी" कट्टियै - कलियं दंसेई झत्ति गायंती " ॥ जम्मंतरच रियाई जह जह गायंति ताओं" जुवईओ । तह तह देवीहिययं करुणाऍ समाउलं जायं ॥ ५९ विजुवईओ रुयमाणं विडजणं पि सहस त्ति । कुवंति अंसुत्रायं जाईए पचयवसेणं ॥ ६० अह जायम्मि पहा दहुं" रूवं च ताणं सी देवी" । ठाणं जाई" कज्जं सव्वं पि हु पुच्छाई कमेण ॥६१ ताहिँ " वि सव्वं कहियं जं जहवत्तं च अन्नजम्मम्मि । तं सोउं देवीए जायं जाईऍ संभरणं ॥ ६२ अह मुच्छिऊण सहसा निवडीया आसणाओ भूमीए । पच्छा रायाईया दुहचित्ता तत्थ सम्मिलिया ॥ ६३ सलिलेणं अनिलेणं आसत्था उठिऊण सा देवी । आलिंगिऊण पउम दुहिया अइनिग्भरं रुयई ॥ ६४ अबला बाला नीया दुक्खं रुइएण उवसमं नेंति" । तबिरहियाण ताणं मरणं चिय जायए जेणं ॥ ६५ संठविऊणं ताओ उवविसिउं आसणेसु सर्व्वे वि । अहियं विहियचित्ता पुच्छंति यै कारणं तत्थ ॥ ६६
५७ ५८
47
Jain Education International
५५
1 B उज्जमाय । 2 A होंति; D हुंतु । 3B पुन° 4A C पन्नाण । 5 B विभायं । 6 AD विजेइ । 7 B इहेब । 8B तीऍ । 9 B उयरम्मि। 10 B सुहृदिणे चेव । 11 B उतउ । 12 C ताए । 13 B सकायनं । 14 B गयं । 15 B पिर्द्ध । 16 B चिय । 17 B ° सभावा । 18 B हुंति । 19-20 Bती। 21 B दो वि । 22 B जुयातो | 23 C ° किन्हाई | 24 B वि । 25 AD मोहिंति । 26 B C नयणेसु । 27 B य साहओ। 28 B मेल्लिज्जइ । 29 B कोएणं । 30 B पउमा । 31B कड्डिय° | 32 B गातं । 33 B ताथ। 34 A दणं । 35A it is not found in this Ms. 36 B प्रभाषः । 37-42 A बहूणं रूवयं च देवीए । 43AB जाई 44 A कम्मं । 45 B पुच्छर । 46 B जेण । 47 B से हैं। 48B संसरणं । 49AC पडमी । 50B भणइ । 51BC नेइ । 52 C हु ।
For Private & Personal Use Only
४४
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162