Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 130
________________ ९, ९६ - १२४ ] नाणपंचमीकहाओ-९. देवीकहा ५७ इत्थी वा पुरिसो वा पणमिजइ नेये एत्थे लोयम्मि । होति गुण चिय पुज्जा तुम्हाँ मा दुक्खिया होह ॥ ९६ देवीऍ सुरो भणिओ पवजं लेमि निम्मलं अहयं । जम्मतरे वि जेणं दुक्खाण न भायणं होमि ॥ ९७ तेणावि हुसा भणिया अज्ज वि तुह अस्थि भोइयं कम्मं । पच्छा लहिहिसि दिक्खं नाणं चरणं च निवाणं॥९८ अह खामिऊण सवे वन्नेउं जिणमयस्स माहप्पं । गंतूणं सुरलोएँ सो भुंजइ उत्तमे भोए॥ ९९ सव्वेहिं पि निवेहिं गुणड्ड-देवीण नेहकलिएहिं । सुहलग्गम्मि पवत्ते पाणिग्गहणं विणिम्मवियं ॥ १०० हय-गय-देसाईयं दिन्नं सब्वेहिँ तत्थ देवीए । एयं तं संजायं चुणणगया चुंटिया आयां ॥ १ एकसहावं वत्थु नत्थि इहं सच्चयं जिणाभिहियं । सत्तूण वि जेण इमं मित्तत्तं पयडयं दिटुं॥ २ सत्तू वि होइ मित्तो मित्तो वि हु सत्तुसन्निहो चेव । तम्हा रोस-पमोए दोसु वि अ नियामिए चेव ॥३ माहवनिवेण पच्छा सम्माणेऊण सम्बनरवइणो । संपेसिया कमेणं निय-नियनयरेसु सव्वे वि ॥ ४ देवी वि गुणड्डजुया विसयसुहं उत्तमं पि" भुजंती । दिक्खं जिणवरभणियं हियएणं वंछए निच्चं ॥५ भुजंताणं भोए देवी-गुणड्डाण परिणइवसेण । जाया दो वरपुत्ता गुणचंद-गुणायरा नाम ॥ ६ सवं पि तेहि नायं 5 किं पि वि पयरएं इह लोए । अहवा रायसुयाणं एवं चिय मंडणं होइ ।। ७ विन्नाणाइविहीणो राया सव्वाण चेव लोयाणं । होइ सया हसणीओ जुत्ता-ऽजुत्तं अयाणतो॥ ८ राया समणो मंती दूओ तह चेव धम्मअहिगारी । नियसत्थेण विहीणा कयं पि कजं विणासेंति" ॥९ मुक्खो राया लुद्धो मित्तो दुट्ठा य महिलिया लोएँ । थोवेण वि कालेणं मूलस्स विनासया होति ॥११० जायं पाणिग्गहणं बहुविहकन्नाहिँ ताण कुमराणं धम्मे य मई निउणा अकहियपुवा वि संजाया॥११. उवएस-निसग्गाणं होइ निसग्गं च उत्तमं ताव । नइसग्गियाण जम्हा न हु जायइ अन्नहा बुद्धी ॥१२ अह अन्नया कयाई गुणडरायस्स तिववाहीए । पाणा झत्ति पणट्ठा पवणेणं दीवी(वि)यसिह व ॥१३ तस्स कए करणीए लोएणं" सुहु दुक्खियमणेणं । काऊण सोगनासं गुणचंद-गुणायराणं पि ॥ १४ सोहणदिणम्मि जाए गुणचंदो ठाविओ निवपयम्मि । जुवरज्जे अहिसित्तो गुणायरो विउलैंगुणकलिओ ॥१५ दो वि" य तणया भणिया देवीए निहियतत्तहिययाए । मेल्हहै पुत्ती ! तुब्भे पच्वजं गिण्हिमोजेणं ॥१६ तेहिँ वि भणिया देवी खयम्मिमा खिवसु खारय माएँ !। पिय-दुक्खियाण अम्हं हिययविसामो तुमं चेव॥१७ देवीऍ तओ भणियं वीसामो को वि नत्थि जीवाणं । मोत्तूण दुक्खरहियं सिद्धिपयं सासयं पुत्त!॥१८ चित्तं जत्य निवेसइ जीवो इह कज-कारणवसेण । सो चेव होइ सत्तू अहवा मरणेण वोच्छेओ ॥१९ भत्तारवजियाणं" गिहम्मि" नारीण भोयरहियाणं । वावारेसु रयाणं न य घरवासो न पवजा ॥ १२० तम्हा नियमेण मए पबन्जा चेव पुतँ ! कायवा । एवं भणिए मुक्का पवजं गिण्हए देवी ॥ २१ धम्म-ऽत्थपयट्टाणं आलंबणमेत्तमेव सयणाई।न हुनिच्छयहिययाणं इह होइ निवारओ को वि" ॥२२ काऊण तवचरणं खविऊणं" तह य घाइकम्माइं । उप्पाडियं कमेणं केवलनाणं च देवीए ॥ २३ पडिवभिय सेलेर्सि नाऊणं आउयं च अइथोवं।खविऊण कम्मसेसं मोक्खं "पि हुँ पावियं सुहयं"॥१२४ 1B एत्थ। 2 B नेय। 3 B लोयंति। 4 B पुजो। 5C तम्हा। 6 B जिणं । 7 AD सम्वं । 8AD लोयं । 9Cजाया। 10 B सव्वयं। 11 B अनियामियं । 12 Bतु। 13 B°वसेणं। 14C चेव। 15 B पइरए; पररए। 16 B विणासंति। 17 B चेव । 18 B प्पयारेण; C कन्माण | 19C सह। 20 B कुमरीणं; C कुमाराणं। 21 B सोएणं । 22 B सोय। 23 B जुय। 24 B विमझ । 25-26B थिय: Cविह। 27 B मेलह। 28 Bपुत्तय!। 29 B तुम्हे। 30-31 Bजेण गेण्हामि । 32 Bअम्मो!। 33 Bविच्छाहो। 34 Boविरहियाणं। 35 B गिहं पि। 36 B भोग। 37 Bपुस्त! 38 Bबेव। 39-40 Bभह। 41A कोह। 42 Bखविऊण म। 43-47 Bसंपत्ता परमनियाणं । नाणपं०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162