Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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सिरी महेसरसूरीविरइयाओ
[ ९, १० - ३८
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अंधr कुट्टी पंगू छिन्नोट्टो छिन्नकन्न - नासो ये । पढमं चिय चलिएणं वजेयवा पयत्तेणं ॥ तु' पडिपुंन्नंगे निम्मलवसणे र्यं इट्ठभणिए य । दिट्ठे य कज्जसिद्धी नियमा पुरिसाइए होइ ॥ संगो य अंधएहिं हरइ बलं नियमओ मणुस्साणं । सवाणं पि गहाणं अंधगहो दारुणो जेणं ॥ इय चिंतिऊण राया ताए चिय संगमं कुणइ पायं । सा वि मणे परितुट्ठा मन्नइ अप्पाणयं छेयं पावं पि हु काऊणं वंचेउं मित्तमाइयं तह य । अत्ताणे' बहुनेहो होइ दढं पावकलियाणं ॥ पावेणं' जा लच्छी लच्छिनिहाँ चैव सा अहं मन्ने । परिणामे दुहजणया भुत्तं च विसूइयाहेउं ॥ सच्चिय भन्नइ लच्छी दोसु वि लोएस जा सुहं जणइ । नियमित्तं बंधुभोजा इयरा पुण नाममित्तेणें ॥ भोत्तू विसयहं संतिमई अह कमेण मरिऊणं । नारय- तिरियगईसुं अंधत्तं पावए दुहिया || इह चैव भरहवासे चंदउरे बउलसेडिघरिणीए । संतिमईए जीवो उववन्नो धूयभावेणं ॥ नामे इंदुमइयाँ तीऍ सही आसि पउमिया नाम । सा वि य सावयधूया जिणवरमयरंजियमईया ॥ १९ उववासइ पंचमियं वंदइ बिंबाइँ जिणवरिंदाणं । पत्ताणें देइ दाणं अणुदियहं सुणइ धम्मकहं ॥ २० उवरोहेणं तीए इंदुमईया वि जाइ जिणभवणे । कुणइ पणामाईयं जिणवरमाईण एमेव ॥ उवरोहेणं लोओ कुणइ बहुं" नवरि एत्थ पाएणं । परमत्थठियाण जओ सीयंति हु सवकज्जाई ॥ २२ निरवेक्खया जईर्णं वि" का लाइविभागओ" इहं भणिया । सेसाणं पुण कज्जे जुज्जइ सावेक्खया चेव ॥ २३ असमत्थो वि हु जायइ कालवसेणं समत्थओ जेणं । निरवेक्खयाण जुज्जइ काऊणं तेण लोयम्मिं ॥ २४ जाए पाणिग्गहणे दोन्ह वि कुमरीण ताण कालेणं । इंदुमईए नयणा केण वि दोसेण निच्छूढा ॥ २५ अह पउमियाए भणियं बहिणि ! इमं तुज्झ संतियं नूणं । उद्दिन्नं अइरोद्दं जम्मंतरसंचियं" कम्मं ॥ २६ संतंपि जेण कम्मं देइ फलं सवजीवरासीणं । दव्वं खेत्तं कालं भवं च भावं च संपप्प ॥ २७ जम्मंतरम्मिँ कस्स वि दिन्नं अंधत्तणं तर सुयणुं ! । तस्स फलं नूणमिणं एहि संपावियं तुमए ॥ २८ जं पहु कीरइ केण वि कस्स वि" जीवस्स दुक्खमिह लोए । तंपि हु कि पाविज्जइ एत्थं जहन्त्रेण दसगुणियं ॥
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कम्मं च पुचरइयं अणुभवियवं च नियमओ चेव । तवसा वा सोसिज्जई केण वि पुन्नेहिँ कलिएणं ॥ तम्हा तुमं पिबहिणी ! भावेणं लेखेँ पंचमी महई । जम्मंतरे वि जेणं अंधत्तं दूरओ जाइ ॥ तवयणेणं ताएँ गहिया सिरिपंचमी विहाणेणं । गंतूण जिनिंदघरे भावेणं दुक्खभीयाए ॥ अइ विसयासत्ताण विदुक्खेहिँ विडंबियाण जीवाणं । धम्मम्मि मई जायइ गुरुकम्मं पाणिणं मोत्तुं ॥ ३३ गुरुकम्मा जेण इहं बाहिअंता वि तिक्खदुक्खेहिं । अहिययरं पावं चिय कुणंति तं " अट्ट-रोद्देहिं" ॥ ३४ अहं रोद्द" झाणं नियमा पावाण होईं कारणयं । तेणं चिय विउसजणो एएसिं वज्जणं कुणइ ॥ ३५ चित्तेणं चिय बंधइ पुन्नं पावं च जीवसंघाओ" । उवओगवजियाणं थेवं चिय बंधणं जेणं ॥ ३६ पउमवि हु पइदियहं इंदुमईए जिणिदधम्मम्मि । कुणइ थिरत्तं तइया देसण - दारप्पयारेहिं * ॥ ३७ इंदुमइया वि पच्छा जिणवरघम्मम्मि निचला जाया । काऊण इमं हियए मित्तो न हु वंचओ " होइ ॥ ३८
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1 C उ । 2 A हेट्ठे; D हिट्ठे | 3 C परि। 4B इ 5 B अत्ताणो । 6B माणो । 7 B पाणेउं । 8 B निभा । 9 Bमेत । 10B मेत्तेण । 11 B धवल° | 12 C नामेणं । 13 A C इंदुमई । 14 B साडूण | 15 A जिणवर । 16 B बिंबाण। 17 A D लहुं । 18 C °वियाण । 19-20 AD जणं । 21 A D विहागओ । 22 A D य जणे वि; C विउसेहिं । 23 C महं । 24 B संतियं । 25 B तरेवि । 26 A सुथन | 27 B इहि | 28 A व 29 B इत्थ । 30 B जेण । 31 B झोसिजइ । 32 A : तुम । 33 A वि। 34 A तेसु । 35 B तीए । 36 C ते 37 B °रुणं । 38 B रुई । 39 B कारणं । 40 B होह | 41 B संघातो । 42 B येव । 43 B पउमी । 44 B ध्यारेण । 45 B विभो ।
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