Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 127
________________ ५४ सिरी महेसरसूरीविरइयाओ [ ९, १० - ३८ ॥ १५ १६ १७ १८ अंधr कुट्टी पंगू छिन्नोट्टो छिन्नकन्न - नासो ये । पढमं चिय चलिएणं वजेयवा पयत्तेणं ॥ तु' पडिपुंन्नंगे निम्मलवसणे र्यं इट्ठभणिए य । दिट्ठे य कज्जसिद्धी नियमा पुरिसाइए होइ ॥ संगो य अंधएहिं हरइ बलं नियमओ मणुस्साणं । सवाणं पि गहाणं अंधगहो दारुणो जेणं ॥ इय चिंतिऊण राया ताए चिय संगमं कुणइ पायं । सा वि मणे परितुट्ठा मन्नइ अप्पाणयं छेयं पावं पि हु काऊणं वंचेउं मित्तमाइयं तह य । अत्ताणे' बहुनेहो होइ दढं पावकलियाणं ॥ पावेणं' जा लच्छी लच्छिनिहाँ चैव सा अहं मन्ने । परिणामे दुहजणया भुत्तं च विसूइयाहेउं ॥ सच्चिय भन्नइ लच्छी दोसु वि लोएस जा सुहं जणइ । नियमित्तं बंधुभोजा इयरा पुण नाममित्तेणें ॥ भोत्तू विसयहं संतिमई अह कमेण मरिऊणं । नारय- तिरियगईसुं अंधत्तं पावए दुहिया || इह चैव भरहवासे चंदउरे बउलसेडिघरिणीए । संतिमईए जीवो उववन्नो धूयभावेणं ॥ नामे इंदुमइयाँ तीऍ सही आसि पउमिया नाम । सा वि य सावयधूया जिणवरमयरंजियमईया ॥ १९ उववासइ पंचमियं वंदइ बिंबाइँ जिणवरिंदाणं । पत्ताणें देइ दाणं अणुदियहं सुणइ धम्मकहं ॥ २० उवरोहेणं तीए इंदुमईया वि जाइ जिणभवणे । कुणइ पणामाईयं जिणवरमाईण एमेव ॥ उवरोहेणं लोओ कुणइ बहुं" नवरि एत्थ पाएणं । परमत्थठियाण जओ सीयंति हु सवकज्जाई ॥ २२ निरवेक्खया जईर्णं वि" का लाइविभागओ" इहं भणिया । सेसाणं पुण कज्जे जुज्जइ सावेक्खया चेव ॥ २३ असमत्थो वि हु जायइ कालवसेणं समत्थओ जेणं । निरवेक्खयाण जुज्जइ काऊणं तेण लोयम्मिं ॥ २४ जाए पाणिग्गहणे दोन्ह वि कुमरीण ताण कालेणं । इंदुमईए नयणा केण वि दोसेण निच्छूढा ॥ २५ अह पउमियाए भणियं बहिणि ! इमं तुज्झ संतियं नूणं । उद्दिन्नं अइरोद्दं जम्मंतरसंचियं" कम्मं ॥ २६ संतंपि जेण कम्मं देइ फलं सवजीवरासीणं । दव्वं खेत्तं कालं भवं च भावं च संपप्प ॥ २७ जम्मंतरम्मिँ कस्स वि दिन्नं अंधत्तणं तर सुयणुं ! । तस्स फलं नूणमिणं एहि संपावियं तुमए ॥ २८ जं पहु कीरइ केण वि कस्स वि" जीवस्स दुक्खमिह लोए । तंपि हु कि पाविज्जइ एत्थं जहन्त्रेण दसगुणियं ॥ २१ ३२ कम्मं च पुचरइयं अणुभवियवं च नियमओ चेव । तवसा वा सोसिज्जई केण वि पुन्नेहिँ कलिएणं ॥ तम्हा तुमं पिबहिणी ! भावेणं लेखेँ पंचमी महई । जम्मंतरे वि जेणं अंधत्तं दूरओ जाइ ॥ तवयणेणं ताएँ गहिया सिरिपंचमी विहाणेणं । गंतूण जिनिंदघरे भावेणं दुक्खभीयाए ॥ अइ विसयासत्ताण विदुक्खेहिँ विडंबियाण जीवाणं । धम्मम्मि मई जायइ गुरुकम्मं पाणिणं मोत्तुं ॥ ३३ गुरुकम्मा जेण इहं बाहिअंता वि तिक्खदुक्खेहिं । अहिययरं पावं चिय कुणंति तं " अट्ट-रोद्देहिं" ॥ ३४ अहं रोद्द" झाणं नियमा पावाण होईं कारणयं । तेणं चिय विउसजणो एएसिं वज्जणं कुणइ ॥ ३५ चित्तेणं चिय बंधइ पुन्नं पावं च जीवसंघाओ" । उवओगवजियाणं थेवं चिय बंधणं जेणं ॥ ३६ पउमवि हु पइदियहं इंदुमईए जिणिदधम्मम्मि । कुणइ थिरत्तं तइया देसण - दारप्पयारेहिं * ॥ ३७ इंदुमइया वि पच्छा जिणवरघम्मम्मि निचला जाया । काऊण इमं हियए मित्तो न हु वंचओ " होइ ॥ ३८ Jain Education International १० ११ १२ १३ १४ 1 C उ । 2 A हेट्ठे; D हिट्ठे | 3 C परि। 4B इ 5 B अत्ताणो । 6B माणो । 7 B पाणेउं । 8 B निभा । 9 Bमेत । 10B मेत्तेण । 11 B धवल° | 12 C नामेणं । 13 A C इंदुमई । 14 B साडूण | 15 A जिणवर । 16 B बिंबाण। 17 A D लहुं । 18 C °वियाण । 19-20 AD जणं । 21 A D विहागओ । 22 A D य जणे वि; C विउसेहिं । 23 C महं । 24 B संतियं । 25 B तरेवि । 26 A सुथन | 27 B इहि | 28 A व 29 B इत्थ । 30 B जेण । 31 B झोसिजइ । 32 A : तुम । 33 A वि। 34 A तेसु । 35 B तीए । 36 C ते 37 B °रुणं । 38 B रुई । 39 B कारणं । 40 B होह | 41 B संघातो । 42 B येव । 43 B पउमी । 44 B ध्यारेण । 45 B विभो । For Private & Personal Use Only २९ ३० ३१ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162