Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 122
________________ ८, १-२६] नाणपंचमीकहाओ-८. धरणकहा ८. धरणकहा पाणीण तहाभावं विमलगयं अक्खियं समासेण । चरणाण तहाभाव धरणगय अक्खिमो एण्हेिं ॥ १ अवरविदेहे रम्मे जंबुद्दीवस्स मज्झयारम्मि । नरवइ इव बहुदारा नयरी करवंदिया नाम ॥ २ कण्णो व सवणजम्मो पडो व परगुत्तगोवओं निचं । जसवम्मो तत्थ निको अंजणतणओ व हरिनाहो ॥३ अत्थोवायणकुसलो निचं चिय रायकज्जतल्लिच्छो । तस्स य सरलो नाम सबथं य उत्तमो मंती ॥ ४ इह-परलोयविरुद्ध काउं मित्ताचंचणं तह य । नरवइरंजणकजे दत्वं चिय संचए सो वि॥ ५ एयं च अयाणंतो' दोन्नि वि लोयाइँ बाहएं निचं । परकजं चिय किज्जइ सवपयारेण लोएणं ॥ ६ पोसंतस्साप्पाणं" पावणं दोग्गई हवई सहला । परपोसणं अकजाँ दोग्गइगमणं च विहलं च ॥ ७ लहिऊण निओइत्तं" जो यं विराहेइ परियणं सयलं । सो पावइ अचिरेणं" बंधण-मरणाइँ नियमेणं ॥८ नवि अत्थि न वि य होही न वि य गओ को वि सवलोयम्मि । जेण निओयठिएणं निर्वगेहं बहुकयं एत्थ ।। ९ लद्धे वि" निओइत्ते मित्ताई जो करेइ बहुयाइं । रुहे वि नरवरिंदे निबाहो तस्सै नियमेणं ॥ १० इह-परलोइयकजं अहियारी जं करेइ विहवम्मि । तं चिय लग्गइ हत्थे इयरह बंदी य णरओ य ॥११ तम्हा निओइएहिं काय उभयलोर्यंअविरुद्ध" । मोत्तुं रायविरुद्धं वयणाईएहिँ निचं पि ॥ १२ तह रक्खइ सो सरलो दत्वं तं चेव सबकालं पि । जह लोओ चिंतेई हरणोवायाइँ बहुयाइं ॥ १३ भंडाराओ एगो रयणाइं चरणलेवमग्गाई । भंडारिओ हरित्ती पेसइ देसेसैं अन्नेसु ॥ १४ अह अन्नया कयाई पञ्चंतनिवेण सरलपासम्मि । बहुवत्थरयणहत्थो दूओ संपेसिओ तत्थ ॥ १५ कयसम्माणो दूओ अप्पेउं पाहुडं पयंपेइ । सरलस्स वयणमेयं नियसामियकजसूयणयं ॥ १६ मह रजं तुहतणयं एयं नाऊण तह करेजासु । जसवम्मो मह सययं मित्तो चिये जह दढं होइ ॥१७ नइसरिसौं रायाणो निजंति महंतएहिँ वालेडं । हवइ अमच्चायत्तं रजं जेणेह लोयम्मि॥ १८ परमत्थेणं" रजं होइ महंताण एत्थ लोयंमि । जम्हा सबो लोओ तेर्सि चिय कुणइ आणत्तिं ॥ १९ गेहिणिरहियं गेहं रजं च महंतएहिँ परिहीणं । देह-मणाणं दुक्खं करेइ सन्चेसु कब्जेसु ॥ २० कण्णद्धारविहीणं बोहित्थं जह जलम्मि डोलेई । सिट्ठ-महंतयरहियं रजं पि हु तारिसं होई॥ २१ इय सोऊणं वयणं सरलो दूयस्स सम्मुह भणइ । तुह पहुणो नत्थि भयं जाव अहं जीविमो एत्थ ॥ २२ अन्नं पुच्छामि अहं तुम्हं रयणा कत्थ एयाइं ? । मह पहुणो चिय गेहे जेणं एयाण अस्थित्तं ॥ २३ तुम्हें चिर्य नयरीओ" गएहिँ वणिएहिँ तत्थ दिन्नाई । दूएणं परिकहिए सरलो एयं विचिंतेइ ॥ २४ हक्कारेउं वणिएँ सव्वं पुच्छामि साममाईहिं । जेण पउत्तिं लहिमो रयणाणं निग्गमस्सेह ॥ २५ अह पेसिऊण दूयं वणियों हक्कारिऊण सच्चे वि । तह पुच्छइ सो सरलो जह नायं तेण सवं पि॥२६ | Bइपिह: C एय। 2 B'गोवओ। Cघम्सो।। B सत्थो।5 B सवस्स। GB सम्वं । 1AD उ। 8-9 B चियऽयाणतो। 10C वाहिउं। 11 B °स्सापा। 12C भवे । 13 B सकजं । 14 Bहसं। 15 A D निओयत्तं। 16 Bउ। 17 B अहरेणं । 18 Cनियमाई। 19 AD सोय । 20 C (फ) निय। 21 A D it is missing in these Mss.। 22 AD निओइयत्ते । 23 A रुदे। 24 B नस्थि। 25 B बंधो; Cबंधा। 26 A भयलोय; B सब्वहा वि। 27 AD °मविरुद्धं। 28 BC 'लग्गाई। 29 Bहरेत्ता। 30 A D अनेसु। 31 AD देसेसु । 32C जसधम्मो। 33 AD चिय। 34 B°सरिसरि। 35 B चोलेओ; Cबाले। 36 B अमचायचं । 37 B परमस्थेण य। 38 Bममण। 1400 °चिहणं। 41C डोलेइ। 42 B सिट्टि। 43 B°महमतयः। 44 A रयणाह। 45AD सम्ह। 46 AD चिय। 47 Bनयरीए। 48 Cमणुए। 49C वणिणो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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