Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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४८ सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ
[७, १०५-१२६ काऊण हत्थिखंधे दिंतो'दाणाइँ सव्वलोयस्स । तूराण निग्घो(घो)सेण(णं) विमलं सम्माणए सुट्ठ॥१०५ असुरो वि गओ पच्छा सट्ठाणे विम्हिऊण सवे वि । अह जंपइ सर्वजणो जिणवरधम्मो अहो रम्मो!॥६ सल्लेण वि सा देवी निच्छूढा बहुविहं च विणडेउं । पेइयहरम्मि पत्ता अप्पाणं सवइ पइदियहं ॥ ७ अब्भक्खाणे दिन्ने एत्थं चिर्य एरिसाइँ दुक्खाइं । परला(लो)ए जं होही तं जाणइ जिणवरो चेव ॥८ विमलेण वि गंतूणं जिणवरभवणम्मि सूरिपामूले । बहुलोएण जुएणं गहिया खलु पंचमी पयडा ॥ ९ सल्लेण वि सह मुइओ सम्वत्थ वि कारवेई भवणाई । विमलो भत्तिसमेओ जिणवरचंदाण रम्माइं॥११० पुवकयाणं च तहा पूयं कारेइ सुड रिद्धीए । सिद्धतं च सुणेई" संघस्स य पूयणं कुणइ ॥ ११ धम्मरयाणं" ताणं कालो वोलेइ केत्तिओ" जावं । ताव य सल्लो गहिओ सूलेणं" सुहु तिव्वेणं" ॥ १२ लोलइ वलइ पलोदृइ कंदइ उढेइ पडइ भूमीए । आलिंगिऊण विमलं भणइ कहं आगयं मरणं ? ॥१३ मंताई" तंताई सवाइं निप्फलाइँ जायाइं" । विमलेणं तो" भणिओ मा सामिय ! कायरो होहि ॥ १४ आहार-विहारकयं फिट्टइ रोगं तु मंत-तंतेहिं । पुवकओ पुण वाही मरणाओ चेव तुट्टेइ ॥ १५ तम्हा सुमरसु देवं सव्वं खामेसु पाणिसंघायं । पावेसि जेण सोक्खं जं जं इच्छेसि नियमेणं ॥ १६ विहवो जिणवरधम्मो रोगाभावो पिएण संजोगो । अंते समाहिमरणं पाविजइ परमपुन्नेहिं ॥ १७
अहिसिंचिऊण रज्जे पुत्तं तह अणसणं च गिण्हेउ । मरिऊण गओ सल्लो माहिदे देवलोयम्मि ॥१८ विमलो वि मणे चिंतइ जाव न एत्थैव पाविमो मरणं । गिण्हामि ताव दिक्खं निद्दलणं सबकम्माणं ॥१९ संठाविऊण तणए दाणं दाऊण किवणमाईणं घोसाविऊण अभयं पूयं काऊणे जिणभवणे ॥ १२० भजाहिँ समं गंतुं मुणिणो सालस्स नाणकलियस्स । पासे गिण्हइ दिक्खं सीहो इवें सो" महासत्तो॥२१
सीहो सीहो सीहसी(सि)यालो हवइ हु सियालसीहो य । तह य सियालसियालो चउभेयो दिक्खिओ पुरिसो ॥
२२ उक्हिोइह पढमो तइओ पुण मज्झिमो समक्खाओ। बीय-चउत्था दोन्नि वि होंति अहम्मा इहं लोए॥२३ अहं विहरिऊण बहुयं विमलो नाऊण मरणकालं च । काऊण तवच्चरणं संलिहियसरीरयं पच्छा ॥ २४
दहिऊण कम्मगहणं सुक्कज्झाणग्गिणा निरवसेसं । चइऊण इहं देहं सिद्धिपयं पाविओ विमलो ॥
२५ विमलक्खाणयमेयं कहियं भवियाण बोहणढाए । पलहुयकम्माण मणे निवेयं कुणइ निसुयं च ॥१२६ इति श्रीमहेश्वराचार्यविरचिते पञ्चमीमाहात्म्ये विमलाख्यान
सप्तमं समाप्तम् ॥
1AD देतो। 2 B सहाणं । 3 B सयल14 Bविणडेणं । 5AD एस्थ। 6AD थिय । 7 B जिणहराई। 8 B कारवेई। 9 B बिंबाई। * In place of this stanza, the following is found in B:-पूवकयाणं पूर्व करावइ [य] सुट्ट विविहरिद्धीए । सिद्धंतपोस्थयाई लिहावए पूयए संघं ॥११॥ 10Cसुणेउं । 11 B°निरयाण। 12 B जाव य। 13 B सुहेण । 14 B परवसणो। 15B तिव्वसूलेण । 16 AD मंताह य । 17 Cजायति । 18 B विमलेण। 19 B तओ। 20 A. सामिल !। 21 Bहोह। 22 BC वियार। 23 BD सुक्खं । 24 Cपवर 125AD आसिंचिऊण | 26 B पुत्तं । 27 B रजे । 28 B it is not to be found in this Ms. 29 B गहेऊणं। 30 A अस्थेव। 31 B निद्दलिणि । 32 B दिण', Cकिविण । 33 B दुहयाणं। 34 B काऊण य। 35 B जिणाणं। 36 Beव। 37 B it is not to be found in this Ms. 38B मुणी महा। 39 Bइह। 40 B'रासिं । 41-43 B उप्पजविमलनाणो। 44 Bपावितो। 45AD भणियं। 46 B भन्वाण | BD पत्रमीफलसंवर्क विमलाख्यान सप्तमं समाप्तम् Cइति महेश्वरसूरिविरचितं सप्तमं विमलास्थानकं समाप्तम् ॥
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