Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 120
________________ नाणपंचमी कहाओ - ७, ७८- १०४ ] ४७ ८२ कि तु भाया सल्लो तुर्ह सामिओ त्ति विक्खाओ। तब्भज्जं भुंजतो' कह न तुमं लजिओ' पाव ? ॥ ७८ तह विन मेल्हेज सो ताव मए कंदिउं समादत्तं । कुविएण तेण पच्छा एसाऽवत्था कया मज्झ ॥ ७९ दंसे सुरंगमुहं अणेण मग्गेण सो गओ तुरियं" । अहं पि हु सुहु भीया विलवंती निग्गया नाह ! ॥ ८० - तस्स न दोसो सामिय ! दोसो तुज्झेव नीइरहियस्स । नियअंते उरसंडो (डे) मुक्को" जेणेह सो तुम ॥ ८१ अट्टहं वरिसाणं उवरिं पुत्तो वि बाहिरो चेव । अंतेउराउ नरवइ ! एसा किर रायनीइ ति ॥ अइरक्खियं पि सुसई" जो मं भोत्तूर्णं इच्छए पावो। कह ण इमाओ तेणं भुत्ताओ तुज्झ महिलाओ" १ ॥८३ महिला रक्खती पुरिसं हीणं पि मुणई हियएणं । किं पुण कामायारं नियगेहसमागयं एयं " ॥ ८४ एत्थंतरम्मि असुरो धन्नाजीवो यँ सुललिओ" नामं । विमलस्स देइ सुमिणं बहुबोहण हेउयं सहसा ॥ ८५ दोन व पुवभवाई दिट्ठाई सवकज्जजुत्ताई । एसो विभवो जाओ" जिणवरधम्मेण विमलेणं ॥ ८६ अज्जपहायमिं तुहं" होही करछेयणं च सल्लाओ । धम्मस्स पहावेणं" पुणरवि होहिंति तुह हत्था ॥ ८७ राया विसु कुविओ खग्गं गहिऊण विमलगे हम्मि । गंतूण झत्ति पत्तो जंपंतो निडुरं वयणं ॥ ८८ विमलं जोडियहत्थं सयणाओ उट्ठियं" च दद्दूणं । असिणा दोन्नि वि हत्थे नरनाहो तोडए सहसा ॥ ८९ जइ कहें वि नत्थं लज्जा ता नट्टो किं भओ वि तुह पाव ! । मह घरिणी विनडेउं इह चेव परिडिओ " जेणं ॥ - ७. विमलकहा ९० रणविरमम्मि लोओ मिलिओ वयणं पयंपए एवं | राईणं सम्माणो मरणंतो होइ नियमेणं ॥ ९१ राईणं सम्माणं सिंगिय - पिसुणाण हत्थि - इत्थीणं । जल-अग्गीण य सययं वीसासो नेय कायचो ॥ ९२ विमलो वि जणसमक्खं हियए ठविऊण जिणवरं देवं । पभणइ उज्झियटुंटी एयं चिय मज्झ दिव्वं तु ॥ ९३ जइ नत्थि मज्झ दोसो जं राया भणइ को हैंगयचित्तो । तो नीसरंतु हत्था जह पुविं होतया आसि ॥ ९४ अह सहसा सो असुरो लोयाणं बोहणायै जहपु"ि । दोन्नि वि करे करेई दिपंते सुड्डु तेएणं ॥ ९५ होऊणं पच्चक्खो लोयाणं सुललिओ तहिं भणइ । विमलस्स पुवचरियं सवं पि हु जं जहावित्तं ॥ ९६ पंचमिवयमाहप्पं दिहं तुब्भेहिँ " अज पच्चक्खं । इयरह विमलस्स करा तथैवत्था कह णु जायंति ? ॥ ९७ नंदउ जिणवरधम्मो जस्स फलं एरिसं तु पच्चक्खं । जम्मंतरे वि नियमा सुरमुत्तिसुहाइँ जायंति ॥ ९८ या वि तेण भणिओ कह तुमए एरिसं अकज्जं तु ? । अवियारिऊण रइयं दोसु वि लोएस दुहजणयं " ॥ ९९ जो इच्छइ अत्तसुहं सो निवइं दूरएण वज्जेइ । बहुपिसुणवयणकुविओ सो मारइ नियमओ जेण ॥ १०० सोऊण इमं राया लज्जाए अवणओ दढं जाओ" । चिंतइ मणेण एवं पावाए वंचिओ कह णु ? ॥ अवियारिऊण कर्ज इत्थीवयणेण जो नरो कुणइ । सो होइ दुहावासो जहा अहं संपयं चैव ॥ लद्धपसरा मैं महिला नियवसपडियं वियाणिउं पुरिसं । इह किंकर हैं पायं नच्चावइ अंगुलीकरियं इय चिंतिऊण सल्लो पणमिय विमलस्स जंपए एयं " । खमसु महं दुच्चरियं अवियारिय जं कयं तुज्झ ॥ 1 १ २ ॥ ३ १०४ Jain Education International 1 B किल । 2 B it is not to be found in B. 3 B दट्ठो तह; C किर। 4-5 B तं भुजंतो पच्छा। 6 C लज्जसे । 7 B मेलिजा । 8 B कंदिऊण । 9 B माढतं । 10 C तुरियो । 11 BC मुक्के | 12 AD तुज्झ । 13 A ससुई; B सुमहं । 14 B मोत्तूण 15 B महिलातो । 16 B महइ । 17 B वा बि । 18 Bवि। 19 B सुललितो । 20 B पहु । 21 B दोन्नि । 22 B जातो । 23 B चिमलेण । 24 B भामि । 25 B तुमं । 26AD पभावेणं । 27 A D उट्टिउं । 28A स । 29-30B नत्थि । 31 B कह वि । 32 A D घरेडिओ । 33 A चेव । 34 B रायाणं । 35 B सम्माणं । 36 C रनो । 1 37 C सम्माणाणं । 38 B C उब्भिय । 39 AD हुंडी । 40 B कोव । 41 B बोहणस्थ । 42 B जहवत्थे; C जह हत्थे । 43 B तुम्हेहिं । 44 C तह । 45 BD च। 46 A D जगणं । 47 B आतो। 48 B वि । 49 A किंकरं । 50 A व । 51AD करिय । 52 B एवं। 53 B अववारिय | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162