Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 93
________________ २० सिरीमहे सरसूरिविरइयाओ [ १,४९७ - ५०४; २, १ - १५ ९९ मज्झहे संजाए वंदित्ता मुणिवरं जणो सो । निय- नियगेहिम्मि गओ वन्नं तो जिणमयं सुदु ॥ ४९७ जयसेणो विहु दाउ रजं पुत्ताण बीयदियहम्मिं । जसंभदंते दिक्खं लेइ विभूइऍ सुहज्झाणो ॥ ९८ जह जह वढइ दिवसो तह तह झाणं सुनिम्मलं तस्स । केवलनाणसमं चिय निवाणं पावियं तेण ॥ केवलमहिमं काउं चंद पहसुरवरो जणसमक्खं । झविऊर्णं तं सरीरं खीरसमुद्दम्मि पक्खिवइ ॥ ५०० जंपंति' विद्धमुणिणो पेच्छर्ह अचिरेण जं कयमणेणं । अहवा लहुपवइया वड्डरं लिंति' करचंडं ॥ चिरपव्वज्जा नाणं एयं न हु कारणं हवइ" मोक्खे " । जस्सेव सुहो भावो सो चेव य साहए कज्जं ॥ २ जयसेणकलत्तेहिं" गहिया दिक्खा सुहेण चित्तेणं" । दुक्खियजणाण" अहवा एयं चिय जुज्ञ्जए काउं ॥ ३ सूरि हे सर रइयं जयसेणक्खाणयं" इमं पढमं । संखेवेण समत्तं पंचसयाई " च माणेणं" ॥ ५०४ इति श्रीमहेश्वराचार्यविरचिते पञ्चमीमाहात्म्ये जयसेनाख्यानकं १ प्रथमं समाप्तम् ॥ * २. नंदकहा । २ सोहग्गफलेण जुयं जयसेणऽक्खाणयं पुरा भणियं" । कुलजम्मफलसमेयं संपइ नंदस्स वोच्छामि ॥ १ वाणारसिनयरीए विप्पो नामेण इंदसम्मोति । सर्व्वं मन्नइ नीयं नियकुलमयमत्तओ निचं ॥ जाणतो वि हु चोदस विज्जाठाणाइँ अत्थगरुयाई । तह वि हु कुलमयजुत्तो निंदइ सवाण चरियाई ॥ ३ रिउ - जजु साम - Sत्थवर्ण सिक्खा कप्पो तहेव वागरणं । नीरुत्त-छंद - जोइस - मीमंसा चैव तक्कं च ॥ ४ ५ ई तह य पुराणं अणयभेयसयसंजयं सवं । विजाएं ठाणाई भवंति इह चोहस इमाई || जो नाउं सत्थाई अप्पाणं" थुणइ निंदइ परं " च । सो पंडित्तणजीवी पढंतमुक्खो महापावो ॥ रूवं सीलं नाणं विन्नाणं जोवणं च लायन्नं । विणयं चायं च तवं सूरतं" धीरिमं तह य ॥ वच्छलं पियवयणं दक्खत्तं" तह य निष्पिहत्तं च । निंदइ अन्नजणाणं कुलदोसं नियमणे ठवियं ॥ ८ अहियं उक्को विहु गुणनियरो सबलोयमणइट्ठो । नियमा विसंवएई निम्मलकुलवजिओ लोए ॥ ९ जह जह पूएइ जो कुलजुत्तं मन्निऊण अणुदियहं । तह तह अहिययरं चिय संवड्डइ कुलमओ तस्स ॥ १० मयवजिओ वि पायं" पूइज्जतो मयं पवज्जेइ । मयजुत्तो तं पावइ किं वा भर्णं एत्थं अच्छरियं ? ॥ ११ जत्ता - दिक्ख-विवाहे घर - देव - तलाय - कुर्वविणिवे से" । जम्मण - मरण - ऽज्झवणे" सो चेवग्गेसरो तत्थ ॥ १-२ पुत्त- कलत्ताईणं सवेसिं हिययनंदणो सो उ । अहवा उवयाररओ भण को व न वल्लहो होइ ? ॥ अह सो जंतदिणेसुं" बंधित्ता नीयगोत्तयं" कम्मं । हुंबकुले" वि हु" हीणे मरिउं तत्थेव उववन्नो ॥ नामेण पुप्फदंतो घणकज्जलसन्निहो य गीयरुई । कुमरत्तं संपत्ती हीलिज्जइ सुद्दु लोएणं ॥ 38 Jain Education International 6 ू 10 B भवइ । 1 C दिवसम्मि । 2 A जय । 3 C सयं । 4 A जविऊण; C गविऊण । 5 B C जंपते । 6 B C विहु । 7 B पिच्छ । 8A बट्टेरं । 9 B लेइ । 11 A मोक्खो । 12 B कलत्तेण य। 13 B C सुदुक्ख । 14 B C °चितेहिं । 15 B C 'जणेण । 16 A कहाणयं । 17 C संयाणं । 18 C पमाणेणं । 19 B °ति माहेश्वरसूरिविरचितं जयसेनाख्यानकं सम्मत्तं ॥ छ ॥; C इति महेश्वरसूरिविरचितं जयसेनाख्यानकं समाप्तम् ; D इति श्रीसूरिमहेश्वरविरचितं जयसेनाख्यानकं प्रथमं समाप्तम् । 20 A रइयं । 21 B व | 22 B वेजाए । 23 AD हवंति । 24 A इय । 25 AC जं । 26 A अन्ताणं । 27 B पुरुं । 28 B लावनं । 29 B सूरितं । 30 A दिक्खन्न । 31 CD ठविउं । 32 C पावं । 34 B D इत्थ । 35 B कू° । 36 B विणिवेसो । 37 A ज्झयणे; B 'स्सषणे । 39 B गोययं । 40 A कुलंमि । 41 A it is missing in this Ms. 33 A भणडू | 38 B दिहिं । For Private & Personal Use Only १३ १४ १५ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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