Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 112
________________ ३९ ५, १२२-१२५, ६,१ - १८] नाणपंचमीकहाओ-६. गुणाणुरागकहा वचंतेसु दिणेसुं' घाइयकम्मेसु सुदुखीणेसु । रइवल्लह-कमलाणं उप्पन्नं केवलं नाणं॥ १२२ पडिबोहिऊण बहवे काऊणं केवलीसमुग्धायं । मोत्तूर्णं इहं देहं पत्तो रइवल्लहो सिद्धिं ॥ ३ भरुयच्छे गंतूणं पडिबोहिय पियर-माइए तत्थ । कमला वि गया मोक्खं सिरिपंचमिकरणबीएणं ॥ ४ बंधण-मोक्खसमेयं कमलाएँ कहाणयं सुणेऊणं । जो करई पंचमिवयं सो वि हुँ पावेई सोक्खाई"॥१२५ इति श्रीमहेश्वराचार्यविरचिते पञ्चमीमाहात्म्ये कमलाख्यान पञ्चमं समाप्तम् ॥ ६. गुणाणुरागकहा बंधणमोक्खद्दारं भणियं कमलागयं तु लेसेणं । संपइ विहवदारं गुणाणुरायस्स वोच्छेहं ॥ १ एत्थेव भरहवासे नयरि अव(उ)ज्झ त्ति सुट्ठ विक्खाया। लोयाण वंदणिज्जा उत्तिमपुरिसाण ठाणं ति" ॥२ विहवेण धणयतुल्लो सेही नामेण संगओ तत्थ । विहवमएणं मत्तो तिगसरिसं मन्नए अन्नं ॥ बहुयं पि देइ दाणं गउरवरहियं जणाण पयईए । इंदं पि मुणइ रंकं सो निचं माणदोसेणं" ॥ ४ एवं सो मयमत्तो, दारिद्दनिबंधणं तु बंधेउं । कम्मं विवायकडुयं तत्थेव अणाहइन्भस्स ॥ ५ पुन्नाए परिणीए मरिउं पुत्तत्तणेण उववन्नो । नामेण वीरचंदो गब्भे चिय वित्तनासणओ ॥ ६ चेयणमचेयणं वा तं जायई किं पि गेहमज्झम्मि । दालिहं विहवो वा जायइ जेणेह लोयाणं ॥ ७ केणावि पुणो मरणं वाही तह बंधणं च केणावि । तह तिव्वविडंबणयं जाएणं होई लोयाणं ॥ ८ जह जह वड्डइ बालो तह तह दालिद्दकंदलीओ वि । पसरंति दुक्खजणया पइदियहं ताण भवणम्मिं ॥९ विहडंति कुठाराई सुन्न सव्वं पि होइ भंडारं । छारं-गारजुयाइं तह य निहाणाइँ जायाइं ॥ १० दिन्नं पि नेय लन्मइ सवे अद्देयणं पि मग्गंति । सव्वाइँ चउपयाइं मरंति नासंति पइदियहं ॥ ११ निविडाइँ"वि गेहाइं पडंति मूलाओं तह य वीहीओ। उवगरणं पि हु निचं दिसोदिसं जाइ सञ्चं पि॥१२ अह अन्नया कयाई दुक्खियचित्ताण नट्ठपुन्नाणं । मग्गंताणं ताणं मरणं सरणं च संजायं ॥ १३ इटेण विरहियाणं विहवमुक्काण वाहियाणं च । पिसुणेहिँ पीडियाणं मरणं चिय होइ सरणं तु॥१४ एगागी संजाओ कमेण सो वीरचंदकुलउत्तो । जणपरिभूओ हिंडइ नयरीएं मज्झयारम्मैि ॥ १५ जं जं करेइ किं पि वि तं तं सत्वं पि निप्फलं तस्स । कम्मविवागेण पुणो दुक्खं वह-बंधणाईयं ॥ १६ यवसाएण ठियाण वि पुनविहूणाण एत्थ लोयम्मि । कणयं पि हत्थछित्तं नियमा धूलित्तणमुवेइ ॥१७ पइदियहं तस्स घरे भुत्तं पीयं च निवसियं जेण । सो वि हु विमुहो जाओ लोओ खलु वीरचंदस्स ॥१८ 1Cदिणेसु य। 2 B मोत्तणं। 3 B इह; Cइम। 4 C°माइयं । 5 B °बीएणं। 6 A सुणेऊण । 7 B कुणइ। 8 B it is not found in this Ms. 9 B it is not found in this Ms. 10 Bपावति । 11B सिद्धिपयमो(सो)क्खं । * BD पंचमिफलसंसूचकं कमलाख्यानकं समाप्तम् ; Cइति महेश्वरसूरिविरचितं पंचमिफलसंसूचकं कमलाख्यानकं समाप्तम् ॥ 12 B it is missing. 13 B समासेणं । 14 A उत्तम। 15-16 Bठायंति। 17 Bअथि। 18 A D जणेण। 19 B °दोसेण। 20 BC य । 21 BC इभ'। 22 BCनाहस्स। 23 B चिय। 24 AD जह। 25 A D लोयाण। 26 C होति। 27 B नाण; C नाह। 28C भुवणम्मि । 29 A D कुठाराई। 30 B अन्नं। 31 BC निवता। 32BCनाहपुनसा। 33BD सरणं। 34 B मरणं । 35 Bइद्धाण । 36लियाणं । 38 A पिसुणेहि। 39 C सेयं । 40-41 B नयरमज्झम्मि । 42 A D विणासेण । 43 AD दुक्ख । 44 AD °वहं। 45 B वचसायम्मि। 46 Bहुतं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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