Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 117
________________ ४४ सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ [६, १२२ - १२४;७, १-१९ दिक्खं गहिऊण जणो जो न वि सोसइ कसाय-देहाई । भिक्खालाभनिमित्तं पवजा जीविया तस्स ॥१२२ खविऊण पावकम्मं केवलनाणं च पाविउं कमसो । पत्तो गुणाणुराओ सिद्धिं सिरिपंचमिवएणं ॥ २३ इय अक्खाणयमेयं गुणाणुरायस्स अक्खियं तुम्ह । सोऊण कुणह धम्मं पन्नत्तं वीयरागेहिं ॥ १२४ *इति श्रीमहेश्वराचार्यविरचिते पञ्चमीमाहात्म्ये गुणानुरागाख्यानक षष्ठं समाप्तम् ॥ * ७. विमलकहा विहवगयं इह भणियं गुणाणुरायस्स छट्ठमक्खाणं । पाणीण तहाभावं संपइ विमलस्स वोच्छामि ॥ १ दियवरसहस्सकलियं जम्मणभूमिं च वइरसामिस्स । तुंबवणं वरनयरं अत्थि इहं भरहमज्झम्मि ॥ २ तत्थ दिओ पउमाभों वेयत्थवियाणओ महासत्तो। दिजंतं पि हु दाणं न हु लेइ कयाई केसि पि॥३ अडवीओ" गहिऊणं उंछाईयं च असणकजेणं"। धन्नाए घरिणीए आणेउं अप्पए निच्चं ॥ ४ भणइ य त मह घरिणी जइ काहिसि मज्झं चैवं अणुकूलं । इयरह नूणं सत्तू दोसु वि लोएसु दुहजणया॥ ५ दुकलत्तं दालिदं वाही तह कन्नयाण बाहुलं । पच्चक्खं नरयमिणं सत्थुवइटं च वि परोक्खं ॥६ तम्हा करेज भामिणि" ! सुट्ठ पयत्तं तु असणसुद्धीए । जेण वि सुद्धं जायइ नाणादीयं महं सुयणु ॥ ७ आहारीसुद्धीएं होंति असुद्धाइँ नाण-चरणाई । तेसिमंसुद्धत्तणओ" निवाणं" दूरओ नहें ॥ ८ सुबहुं पि तवं चिन्नं दुट्टाहारस्स निष्फलं चैवं । पउरं पि जहा दुद्धं कंजियलेसेण लोयम्मि ॥ ९ वंदिई पइदियहं लोएणं सो ये सवठीणेसु । अहव अलिंतो नूणं भण कस्स न वल्लहो होइ ? ॥१० सगुणो वि हु अइबहुअं" लिंतो नियमेण होइ लहुययरो । विण्हू इव मूंगहणे एयं खलु जाणए सबो ॥११ जइ इच्छह निवाणं तो नाऊणं गुरूवएसाओ । धम्मुवगरणं मोत्तुं सेसं दूरेण वजेह ॥ १२ धम्मुवगरणविहूणो' मोक्खो नत्येत्थ हंत नियमेणं । जेण उवाएण विणा उवैयसिद्धी जणे दुलहा ॥१३ धम्मुवगरणजुओ वि हु मुच्छाभावे परिग्गहो नेओ । काओ विसरागाणं तत्तेण परिग्गहो चेव? ॥ १४ अह अन्नया कयाई धन्ना दट्टूण नियपई किसियं । चिंतइ हियएण इमं कह एसो होहिई बलवं?॥१५ होहि सिणेहेण बलं बलवंताणं च सव्वकजाई । उच्छौंहारो य इमो कह होही नेहसंबंधो ? ॥ १६ तत्थ य नयरे तीसे परिवसइ वयंसिया परमगोवी । तीए पुरओ कहियं ताए सव्वं पि हिययगयं ॥१७ गूढाइँ वि कजाइं जाव न कहियाइँ पियवयंसीणं । ताव न लहंति सोक्खं महिला जाईऍ पञ्चयओ॥१८ गोवीए सा भणिया भणह पइं" एरिसं तुमं वयणं । पंचमंगबुब्वरी(रि)यं" गोरसयं लेह तं नाह ! ॥१९ 1B°लाह । 2 BC तओ। 3 B पावियं । 4 B बहुसो । 5-6 B सिद्धिसुहं । *BD पंचमिफलसंसूचकं गुणाणुरायाख्यानकं षष्ठं समाप्तम् ; C इति महेश्वरसूरिविरचितं गुणाणुरायाख्यानकं षष्ठं समाप्तम् ॥ 7 BOवासम्मि। 8 Bपउमाहो। 9 B कयाचि। 10 B चि। 11 B अडवीए । 12C कज्जेण । 13 B पइदियह। 14 B निश्च। 15 B मेव। 16 B दोहगं। 17-19 B दारिदयं च बहकना । 20 B °फलं । 21 B पश्चखं। 22 BC सामिणि!। 23-24 B परत्तेण । 25 BC आहार। 26 BC विसुद्धीए। 27 BC य सुद्धाई। 28 C चरियाई। 29 B तेण । 30 B[s]विसुद्धत्तणओ। 31 B नेवाणं। 32 Bहोइ। 33C दिजइ। 34-36 BC सम्वमेव । 37 BC °बहुयं । 38A धू; Bस। 39 B नेव्वाणं। 40 Bता। 41 B विहीणो। 42 A D उवाय'; B उवोय । 43 BC होइ। 44 BC उग्छा। 45 C तह । 46 B मूढाई। 47 B पई। 48 B C पंचय'; D पंचमु। 49AD वरीयं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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