Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 116
________________ m ६, ९३ - १२१ ] नाणपंचमीकहाओ-६. गुणाणुरागकहा पिउ-सामिय-मित्ताणं परमत्थं चेव अक्खियं उचियं । तेर्सि पयारणेणं पावं चिय जेण अइगरुयं ॥ ९३ आमरणंतं सत्वं पच्छिमजम्मस्स संतियं कहियं । सव्वाण वि लोयाणं विम्हय-निव्वेयसंजणयं ॥ ९४ जो पुष्विं निंदतो लोओ सो चेव मं पसंसेइ । थोवस्स वि ताय ! तुमो पेच्छह धम्मस्स माहप्पं ॥ ९५ पंचमिमेत्ततवस्स वि जिणधम्मे एरिसं फलं जत्थ । सो पडिपुन्नो चिन्नो मोक्खस्स वि साहओ होइ ॥९६ उजाणपालएणं कहियं सुलसस्स अवसरे तम्मि । सामिय! चंदणनामो उजाणे केवली पत्तो ॥ ९७ सचे वि तओ गंतुं मुणिवसहं वंदिऊण भावणं । पुच्छंति सुहुँ तुट्ठा निय-नियसंदेहकारणयं ॥ ९८ बोलई गुणाणुराओ भयवं! इच्छामि गिहिउं दिक्खं । संसारवासभीओ तुम्हाणं अंतिए अहयं ॥ ९९ तो मुणिवरेण भणियं अज्ज वि तुह अस्थि पंचमीजणियं । कम्मं च भोगहलियं वरिसाणं जाव चउवीसं॥१०० सुंदरमसुंदरं वा जाव न भुत्तं पुरा इयं कम्मं । ताव न छुट्टइ जीवो नियमेणं कंखमाणो वि ॥ १ जई इच्छियं पिकजं हवेज लोयाण एत्थ संसारे । ता सुहिउ चिय नियमा सबो वि हवेज किं बहुणा?॥२ तम्हा गेन्हसु एवं सावयधम्म दुवालसंगं पि । पच्छा होही दिक्खा तुह नियमा वीरसूरीओ॥ ३ अह पणमिऊण भणिओ गुणाणुराएण सो मुणी तझ्या । गेण्हामि पंचमिवयं तीऍ पसाओं इमो जेणं ॥ ४ बहुएहिँ समं गहिया अह तेणं पंचमीविहाणेणं । अन्नेहिँ सव्वविरई सम्मत्तं चेव इयरहिं ॥ ५ तं वंदिऊण सम्बो मज्झे नयरीऍ पविसए लोओ। अइरंजिओ कमेणं" गुणाणुरायस्स चरिएणं ॥ ६ सुलसो वि तओ राया सव्वेसु वि निययभुत्तिठाणेसु । चेईहरसंघाणं" पूयणयं कुणइ भावेणं ॥ ७ अन्नदियहम्मि वच्चइ पोयणनयरम्मि अइविभूईए । गहिऊण मियंकसिरिं गुणाणुराओ महासत्तो ॥८ भरहो वि सुद्द मुइओं" तं कुमरं पेच्छिऊण सकलत्तं । पविसेऊणं नयरे नियरज्जे ठावए सहसा ॥ ९ पूएइ जिणवरिंदे दाणाई देइ तह सुपत्ताणं । झायइ धम्मज्झाणं एगते संठिओ पायं ॥ ११० मरिऊण विहाणेणं पत्तो कप्पम्मि बंभलोयम्मि । लेइ अभिग्गहमेयं गुणाणुराओ वि निविन्नो ॥ ११ जम्मि दिणेण सरामो नियचरियं पुत्वजम्मसंबद्धं । दीणाराणं लक्खं धम्मेणं दाहिमो तम्मैि ॥ १२ सो परिपालई रजं इंदो इव सत्तअंगपरिकलियं । भुंजइ भोए वि तहा सन्वाण वि उत्तमे रम्मे ॥ १३ सामी र? अमच्चो दुग्गं कोसो बलं च मित्तो य । सत्तेव य अंगाई रजस्स हवंति एयाइं ॥ १४ पइदियहं कुणइ तहा तित्थस्स पभावणं च भावेणं । काराविया य तेणं चेइअघरमंडिआ पुहई ॥ १५ भुंजंतस्स य भोए मियंकसिरिसंजुयस्स नरवइणो । जाया कमेण सुहया तिन्नि सुया सव्वकमणीया॥१६ अन्नदियहम्मि पत्तो वीरायरिओ वि" तम्मि नयरम्मि । नियसीसेहिँ समग्गो वणसंडे संठिओ रम्मे॥१७ सोऊणं तं राया गंतूणं वंदिऊण भावेणं । धम्म सुणेइ पणओ निश्चिन्नो विसयसोक्खाणं ॥ १८ अह पविसिऊण नयरे रजं दाऊण जेट्टपुत्तस्स । गिण्हइ दिक्खं मुइओ अंते गणहारिणो तस्स ॥१९ विहरतो तेण समं गिण्हइ नाणं च चरणसंजुत्तो। सिक्खाए परिकलिओ तवचरणं कुणइ भावेणं ॥१२० तह तेण तवं चिन्नं अविचलचित्तेण कवडरहिएणं । जह कहिओ वि न नजइ एसो उँ गुणाणुराओत्ति ॥१२१ 1B पियु। 2 B "मित्तेणं। 3A D अक्खिउं । 4 B मुणी(णि)। 5 B हिट्टा। 6 B जंपड। 7 B पुच्छामि। 8 B गिहियं। 9C°वाहि। 10A B अहियं। 11 A B it is missing in Bहलीयं । 13 B भोतं । 14 B जो। 15 C एवं। 16 B गिण्हसु। 17 C मणेणं । 18 B संघस्स य । 19 A D विहुईए । 20 B गुणाणुरातो। 21 B°मुइतो। 22 A दाणाई। 23 Cतस्थ। 24 B परिवाल। 25 B C सव्व । 26 B रोट्ट। 27 B पहाणं। 28 Bहर। 29 A य। 30C तत्थ। 31C नाऊणं। 32 B पणतो। 38-34 B सो पसस्थदियो। 35AD बिणय। 36 Cहु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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