Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
________________
६, ४२-६७ ]
नागपंचमी कहाओ - ६. गुणाणुरागकहा
४१
दहूण तयं मुइओ उवसप्पिय वंदिऊण उवविसई | दालिद्दनासणत्थं किं पि उवायं गवेसेइ ॥ ४२ उस्सारेउ" झाणं सो वि मुणी अन्नकजतलिच्छो । दाऊण धम्मलाभं पुच्छइ वत्तं सुहनिसन्नो ॥ ४३ अह भणइ वीरचंदो भयवं ! मह देह किं पि उवएसं । जम्मंतरे वि जेणं दालिदं नेय पेच्छामो ॥ ४४ एवं इमस्स बोहो होही इयं जाणिउण मुणिणा वि । महईऍ पंचमीए कहियं वयमुत्तमं तस्स ॥ ४५ तेावितयं गहियं अवितहमेयं ति भाविउं तत्थ । अलियं न जेण मुणिणो जंपंति ह निष्पिहत्ताओ ॥ ४६ चिंतइ य वीरचंदो परहियनिरया हवंति नियमेणं । समणा जेणं' म वि" उवएसो सायरं दिन्नो ॥ ४७ असो मुणिवरवसो विहरइ अन्नत्थ लोयबोहत्थं । सो वि हु तत्थेव ठिओ चिंतइ एयं तु हियएणं " ॥ ४८ सत्ताण असंताणं यें दोसाणं पयडणम्मि पाएणं । वसणं लोयाण दृढं अणुदियहं पावचित्ताणं ॥ ४९ तम्हा जणवयरहिए रन्ने चिय अच्छिउं मह उचियं । जत्थ न वयणं कडुयं फलमाइजहिच्छियं असणं ॥ ५० वत्थाइँ वक्कलाई वित्थिन्नंसिलायलाइँ" सयणीयं । असणं जत्थ फलाई तं रन्नं कह न रमणीयं ? ॥ ५१ अन्नदियहम्मि पेच्छइ जिणायणं" सो यै रन्नमज्झम्मि । तुंगं थिरं विसालं सुपुरिसचित्तं व अइरम्मं ॥ ५२ आइजिणिदं दहुं तस्स य मज्झम्मि सुहुरमणीयं । तं पेच्छिऊ तुट्ठो" उवविसिय महीयले" रम्मे" ॥ ५३ चिंतइ मणेण एवं नूणं एयस्स पूयकरणेण । नासई असुहं" कम्मं मह निधुई जेण चित्तस्स ॥ ५४ अणुदियहं पूएउं दाऊण फलाइँ बहुपयाराई । पणमिय जंपइ एयं " पइदियहं भत्तिसंजुत्तो ॥ इविन जाणाम अहं तुम्ह गुणे वन्निरं जडसहावो । तह विहु नमामि सामिय ! तुह चलणे सद्धहियएणं ॥
५५
५६
अन्नायगुणं पि जहा रयणं लोयाण विहवसाहणयं । तह भयवं ! मज्झ तुमं हवेज्ज दालिद्दनासयरो " ॥ ५७ पुन्नमिव पच्छा खविए तह अंतराइए कम्मे । मरिऊण पोयणपुरे उववन्नो पुन्नजोएणं ॥ ५८ yat गुणाणुराओ नवइभरहस्स लच्छिघरिणीएँ । नयण - मणाणंदयरो पइदियहं विहववडणओ " ॥ ५९ तह तेण गुणा गहिया मय -मार्यंविवज्जिएण अणुदियहं " । जह सच्चवियं लोए नियनामं पुरिससीहेण ॥ ६० तह सो भुंजइ भोए दाणं पि हु देइ अगणियं बहुसो । जह सवो सिरि हायइँ इब्भो मज्झो मैं हीणो य ॥ ६१ दिंतस्स वि पइदियहं " अहिहयरं तस्स वड्ढए विहवो । अहवा पुन्नखएणं" सो तुट्टइ नेय दाणेणं ॥ ६२ जं भुत्त-दिन्नसेस नहं पि हु तं नैं दुक्खसंजणयं । तेहिँ विहूणं नहं दुक्खं पुण दारुणं कुणइ ॥ ६३ इय नाऊण सरूवं भुंजह तह देह विमलचित्तेणं । केण समं इह विहवो परलोयं पत्थिओ भणह ॥ ६४ अह अन्नया कयाई पडिहारो कहइ भरहनरवइणो । सुलसस्स सामि ! चिट्ठइ पुरिसो दारम्मि किं करिमो ॥ ६५ भरहेण वि" सो भणिओ पेसह सहस त्ति अवसरो एस। नूणं सो सुहकहओ चिन्हेहिं जाणिमो अहयं ॥ ६६ कंद दाहिणनयणं फुरइ तहा दाहिणं भुयासिहरं " । तेण मए विन्नायं एसो पियभासओ दूओ ॥ ६७
44
1 B उवविट्टो । 2 B ऊसारेउं । 3B लाई । 4 AD निसन्नं । 5 7 C इइ । 8 B भावियुं । 9-11 A D मज्झ वि जेणं । 12 B हियएण । ताणं । 14 C it is not found in this Ms. 15 A विच्छिन्न । 16 जिणभवणं । 18B उ 19 B सो । 20 C अहिवंदिऊण | 21 C हट्ठो । 22 B उवविहो । 23 B तस्स | 24 B पयपुरओ 25 B नासेइ | 26 B असुह° । 27 C ( 5 ) होइ महं । 28 C ( 5 ) निव्वुई ।
C देहि । 6 B पेच्छामि । 13 B मसंताण; C असंB ° सिलाओं चेव । 17 B
29 C (5) जेणं; D जणणेण | 30 C it is not found in this Ms. 31 B एवं।
32 C नासणओ । 33 A धरणीए । 34 B विद्धणओ । 35A मह; B मई° । 36 B नाण; C 'माण' | 37 B पइदियहं । 38 C हाई | 39 C ब्व | 40 AD अणुदियहं । 41 C स्वएण वि । 42-43 C तत्थ । 44 B तेहि । 45 C सख्यं । 46-47 A D भरणं । 48B एसो । 50 A C मणे ।
49B च भुयजयलं
नागपं० ६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162