Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 113
________________ सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ [६, १९-४१ मित्तो सयणो धूया माया य पिया य भाई-माईया । सच्चे वि होति विमुहा दालिद्दकलंकियतणूणं ॥१९ उचियं हियं सुभणियं भणियं वयणं पि लच्छिरहियस्स । नेहजुयं पि हु सहसा हीरइ दालिद्दपवणेणं ॥ निरवेक्खं पिहु दहुँदालिद्दकलंकियं च दारम्मि । सुङ वि पियस्स सहसा दिजइ मसिवट्टओ वयणे॥२१ उठेऊण पहाए पढमं दूरेण वजए लोओ । दालिद्दयवयणाई भोयणेलाभस्सै संकाए ॥ गोट्टी वि सुट्ठ मिट्ठा दालिद्दविडंबियाण लोएहिं । वजिज्जई दूरेणं सुसलिलचंडालकूवं* ॥ २३ वच्छल्लेण जुयस्स वि गेहं दालिदियस्सै वजेति" । परमत्थबंधवा वि हु दूरेण मसाणभूमि व॥ २४ निस्साणं बंधूण वि मरणे दुक्खं पि नेह लोयस्स । अहवा कजं इ8 बंधू पुण नाममेत्तेणं ॥ २५ नाण-कला-विन्नाणं विणओ सूरत्तणं च धीरतं" । दालिद्दनिवासाणं सव्वं पि निरत्थयं होइ ॥ २६ मूलं परिभक्तरुणो दालिदं चेव होइ नियमेणं । निस्सो जो सगुणों विहुतणं व लोयाण पडिहाइ॥२७ अह सो वि वीरचंदो दालिद्दकरालिओ जणसएहि । निंदज्जतो निंदइ अप्पाणं हियर्यमज्झम्मि ॥ २८ *किं मह जम्मेण इहं पुरिसत्थविवजिएण अहलेणं १ । अयगलथणसरिसेणं इओ तओ हिंडमाणेणं ॥ २९ केण वि निययगुणेणं जो न वि उब्भेई अप्पणो वंसं । निम्मलकित्तिपडायं किं नणु जम्मेण तस्सेह? ॥ ३० उवयारेण विहूणो" पुरिसो जाओ वि एत्थ लोयम्मि । नियकुलविग्गोवणओरंडागब्भो व नियमेणं ॥ ३१ मह निंदियस्स संपइ जुज्जइ वसिउं न एत्थ देसम्मि । तम्हा विएसगमणं करेमि अचिरेण किं बहुणा १॥३२ माणुन्नयाण धणवज्जियाण सहयरजणेण हसियाणं । जुज्जइ विएसगमणं मणनिव्वुइकारणं परमं ॥ ३३ इय चिंतिऊण तत्तो निक्खंतो सो ये दुक्खसंतत्तो । होति चिय दुक्खाइं जम्मणभूमि मुयंताणं ॥ ३४ अणुवाहणोऽसहाओ कुच्छियवसणो असंबलो तह य । मग्गं अयाणमाणो दुक्खत्तो अडइ अडईएँ ॥३५ खुह-तिस-परिस्समेहि मरणावत्थो मणेण चिंतेइ । कह मरणं मह जायं अडवीए पुन्नरहियस्स? ॥३६ थोवंतरम्मि पेच्छइ बहुविहरुक्खेहिँ सोहियं रम्मं । निम्मलसलिलतलायं बहुसत्तनिसेवियं सहसा ॥ ३७ गंतूण तत्थ तुरिओ सलिलं अवगाहिऊण आईए । थोवं थोवं" पच्छा वीसमिओ पियइ तीरत्थो॥३८ अइसंतो पढम चिय पियई जणो पाणियं च जो मूढो। सोलहइ पाणहाणि वाहिं वा एत्थ नियमेणं॥३९ अह तोडियाइँ कमसो नाणारूवाइँ" फलविसेसाई । एगपएसम्मि ठिओ भुंजइ सत्थो जहिच्छाए॥४० सत्थावत्थो जाओ" जा वियरइ तीररुक्खगहणेसु । ताव मुणिं सो पेच्छइ तरुतलझाणम्मि वटुंतं ॥४१ 1B भाय। 2 B तणुस्स। 3 BCपि भणियं। 4 B वयणं । 5-6 B पुरिसस्स । 7 B दारिए । 8 B कुच्चओ। 9 A दालिदिय । 10A भायण । 11 BCलाभस्स | 12 Cलोएणं। 13B वजेजह । 14-15 A D कूव व्व। 16 A दालिद्दयस्स । 17C वति। 18 AC समाण । 19 A निस्सीणं । 20 A D मित्तेणं । 21 C वीरत्तं । 22 A परिहव। 23 B लोयाणं। 24-25 B जेण जणो; C जेण जणे। 26 AD °सएणं । 27 B लोय । * This stanza and the following one are thus found in B: किं अस्थवज्जिएणं पुरिसेणं लोयनिंदणिजेणं । तत्थेव सयणमज्झे इओ तओ हिंडमाणेणं ॥ २९ ॥ किं बहुणा भणिएणं जो न वि वह मप्पणं वंसं ? । निम्मलकित्तिपडायं किं पुण जम्मेण तस्सेह? ॥३०॥ 28 Cविहलेणं। 29 BC वडे । 30C परायं। 31 B विहीणो। 32 B नियमेण । 33 B सहियाणे; C रहियाणं । 34 Cहु। 35 B°भूमी। 36-37 Bदीणो। 38 Bअडवीए। 39 B°परिकमेहिं। 40 Bथोयं । 41Bथोयं। 42-46 Cजो पिया) पाणियं जणो। 47 B°रुक्खाओं। 48 Bठितो। 49 B जातो। 50C वतो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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