Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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३, ५७-८६ ] नाणपंचमीकहाओ-३. भद्दाकहा
२७ विसयासत्तो जीवो तं कम्मं कुणइ किं पि अइरोदं । पावइ जेण दुहाई भममाणो एत्थ संसारे ॥ ५७ तम्हा धारसु हियए निचं चिय जिणवरं विगयमोहं। पावसि जेण सुहाई दुक्खाभावं च नियमेणं' ॥ ५८ भद्दाए पडिवन्नं तीए वयणं पराएँ भत्तीए । अहवा अत्तो सत्तो देवाणं भत्तओं चेव ॥५९ ण्हाया सियवसणा वि य पुरओ जक्खस्स माणिभद्दस्स । रइऊणं भूमिसयणं कुणइ जया जाव तेरत्तं ॥६० ताव य जक्खो तुहो सत्तेणं रंजिओ सुकन्नाए । भणइ वरं वरसु वरे ! जं इढं तुज्झ हिययस्स ॥ ६१ विजं सोहग्गत्तं नीरोगत्तं च रज्जमाईयं । सव्वं पि देमि सिग्धं मग्गसु बाले ! विगयसंका ॥६२ अह भणइ जया वयणं जइ तुट्ठो सञ्चयं तुम मज्झ । ता भद्दाए रोगं नीसेसं हरसु अंगाणं ॥६३ जंपइ जक्खो मुइओ सुट्ठयरं सुयणु ! तुज्झ तुट्ठो हं । सव्वत्थ वि निरवेक्खा सहिकजे जेण उजुत्ता॥ ६४ पंचमिवयभत्तीए तीसे रोगं पणट्ठयं चेव । अहयं पि तस्स नासे निमित्तमेत्तं भविस्सामि ॥ ६५ देवा मंता तंता बंधुयणो तह य मित्तवग्गो य । लोयाणं कज्जेसुं निमित्तमित्तं चिय हवंति ॥ ६६ कम्माणं निरविक्खा देवाईया करेज जइ कजं । तो दारिद्दाईयं कस्स वि नै हुँ एत्थ जाएज्जा ॥ ६७ इय जंपिऊण तेणं दिन्नं गोसीसचंदणं तीसे । भणिया य पुत्ति ! एवं रोगं दूरेण नासेइ ॥ ६८ गहिऊण जयाएँ" तयं भणिओ जक्खो सुमहुरवाणीए । दावेसु निययरूवं भदाए मज्झ वयणेणं ॥ ६९ जायइ जेण थिरत्तं तीए हिययस्स धम्मकज्जेसु । जुत्तं चिय तुम्हें इमं साहम्मियकज्जयं भद्द ! ॥ ७० अस्थि थिरत्तं तीसे तुम्ह पहावेण होइ सविसेसं । पक्खित्तं गुडमज्झे होइ गुडं गुडयरं चेव ॥ ७१ एवं करेमि भणिउं अइसयरूवेण संजुओ दित्तो । भद्दाघरम्मि पत्तो जयसहिओ झत्ति सो जक्खो॥७२ भणिया जयाएँ" भद्दा सणियं गंतूण महुरवाणीए । साहम्मियपडिवत्ती कीरउँ सहि ! आसणाईहिं॥७३ एसो सहि ! जक्खवई देवो नामेण माणिभद्दो त्ति । तुह रोगनासणत्थं इह पत्तो धम्मबुद्धीए ॥ ७४ साहम्मियउवयारं जो जहसत्तीएँ कुणई भत्तीए । सो भन्नइ धम्मिठो इयरो पुण नाममेत्तेणं ॥ ७५ भद्दाएँ"जया भणिया सहि! मह वयणे वि नत्थि सामत्थं । हियएण कयं सत्वं पढमं चिय जंतए कहियं ७६ अग्घाईयं दाउं जयाएँ जक्खस्स जंपियं एयं । अहिमंतसु महायस ! गोसीसं निययहत्थेण ॥ ७७ अभिमंतिएणं जाव य तेण विलित्ताइँ सत्वगत्ताई । ताव य निम्मूलाई दूरपणहाइँ रोगाइं ॥ ७८ उच्छाहो लावन्नं दित्ती कंती तहेव बलियत्तं । अप्पुवं भद्दाए तक्खणमेत्तेण संजायं ॥ ७९ भणियं जक्खेण तओ भद्दे ! पेच्छाहि धम्ममाहप्पं । देवा वि हु मणुयाणं आणाएं जेण वटृति ॥ ८० इहलोइयं च कजं पुप्फ चिय जाण धम्मरुक्खस्स । जम्मंतरम्मि जं पुण फलमउलं तं वियाणाहि ॥ ८१ जम्हा पञ्चक्खं चिय दिहते" पंचमीऍ फलमेयं । तम्हा पुत्ति ! करेजसु तं तं सुद्धेण भावेण ॥ ८२ एक्केकीएं दिन्नं तेणं वत्थाण जुवलयं दिवं । बहुविहआभरणाई लोयाणं पच्चयनिमित्तं ॥ ८३ दो वि पुणो वि सरेन्जसु जइ कजं किंपि होज तहभूयं । इय जंपिऊण जक्खो अबेहो" झत्ति संजाओ ॥ ८४ भद्दाएँ रोगविगमं वत्थाऽ-भरणाइँ तह य दिव्वाइँ । दळूण जणो मिलिओ अच्छरियं मन्नए सु९॥ ८५ राया रुद्दो य तओ कन्नाओ गिव्हिऊण उच्छंगे। पुच्छइ लोयसमक्खं पुत्तीओ कहसु परमत्थं ॥ ८६
1B नियमेण | 2 C भइओ। 3A होइ । 4 B रइयम्मि । 5 B देइ। 6 Bपणच्छयं। 7 BD °मित्तं । 8-10A लोए न। 11 AB जयाय । 12 C तुज्झ। 13 BC कजओ। 14 B हिययं । 15 B दिन्नं । 16 B जयाय। 17 A सहि ।18 A कीरउ । 19 Bकुणह। 20 AD मित्तेणं । 21B भहाइ। 22C ण। 23 A अभिमतेस। 24 Bहत्येण 25 A अभिमंतिऊण । 26 A. तीऍ। 27 A लायन्नं। 28 A दितिं । 29 A अखुव्वं । 30 Bाणाते। 31 A दिट्तो। 32 B पंचमीय। 33 Bएकिकीए । 34A आहरणाई। 35 A BD अहसो। 36A हरणाई। 37 Aगरुयं; BCसट्ट। 38A पुत्तीए ।
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