Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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४, ४३ - ७० ]
नाणपंचमी कहाओ - ४. वीरकहा
३१
॥ ४४
॥ ४५
॥ ४६
मह् मित्तो' वि हु वीरो णीओ पावेहिँ बंधिउं तुरियं । तं दहुं दूराओ पत्तो हं एत्थ सहसति ॥ ४३ वालेर्हं पवहणाईं जइ इच्छह जीवियं च दव्वं च । अन्नह सङ्घपणासो होही सङ्घाण नियमेणं तो तेहिँ पवहणाइं वेएणं * वालियाइँ' भीएहिं । वीरस्स विओएणं अइगाढं दुक्खियमणेहिं गंतूणं अइदूरे' सज्झसगहिएहिँ मिलियसचेहिं । भणिया सुवयनामा रइऊणं अंजली सीसे तं चैव अम्ह माया भोयणदाणेण नेहकलिएणं । अम्हे वि तुज्झ पुत्ता मा कीरउ एत्थ संदेहो ॥ ४७ जइ सुचिरेण वि वीरो पुन्नविहाणेण एज्ज अम्हाणं । ता गिण्हइ नियवित्तं को किर पडिबंधओ एत्थ १ ॥ ४८ संप पुणतुतयं यं सवं पि नियमओ सुयणु ! | मा चिंतिज्जउ अन्नं अहं अणाह त्ति नाऊणं ॥४९ सा वि रुयंती" जंपइ किं" महं दद्वेण वीररहियाए ? | भोगाय जओ दव्वं न यँ भोगो वीररहियाए ॥ ५० इत्थीण इहं" भोया भत्तारजुयाण सोहर्यां होंति । तवज्जियाण नियमा ताणं पडणं चिय कुणंति ॥ ५१ रंडाओ रिसिणो वि हु भोग-संपयाकलिया । बालाण वि हसणीय किमंग पुण विउसलोयाणं ? ॥५२ तम्हा मज्झवि वीरो जाव न पावाऍ मिलइ जीवंतो । तावेगंतरंसहियं पारणयं एगदवेणं ॥ ५३ विरएइ वेणिदंडं छोल्लइ दसणाइँ भूसणं मुयइ । निंदइ अई अप्पाणं पिययमविरहेण दुक्खत्ता ॥ ५४ अह चिंते धण विहु जीसे कज्जेण विरइयं" पावं । एवं निरवेक्खा सा बहुएहिँ मैं रक्खिया सु ॥ ५५ मित्तो वि मए दुहिओ एसा वि ये मज्झं नये संजाया । एसो मह संजाओ पयडो धण - मित्तनासो उ ॥ ५६ पच्छा ते संपत्ती कमेण स सुवन्नदीवम्मि | दिन्नं निय-नियंभंडं गहिऊण सुवन्न - रयणाई ॥ ५७ वीरो विहु पडिबुद्ध उवविट्ठो पेच्छिऊण पासाइं । एकलं" चिय पेच्छइ अप्पाणं सिद्धजीवो व ॥ ५८ उट्ठेऊण पहावइ पेच्छइ उदहिस्सें सुन्नयं तीरं । चितइ य इमं हियएँ किं एयं एत्थ अच्छरियं ? ॥ ५९ सो विमहं मित्तो सत्थो सम्माण - दाणसंगहिओ" । तेणाहं कह मुक्को एगागी एत्थ दीवम्मि ? ॥ ६० अहवा एतठियं सत्यो मं मेलएँ अयाणंतो | कह मेल्लई धणमित्तो" मज्झं चिय जो ठिओ पासे ? ॥ ६१ किं सुब्बयाऍ लोहं" किं वा दव्वस्सं ते गया मज्झं ? । जेणाहं एगागी अडवीए मेल्हिओ" तेहिं ॥ ६२ कह मज्झ विओएणं धरिही पाणे य सुवया दुहिया ? | मज्झ मैं जायं मरणं तीऍ विओगेण नियमेणं ॥ ६३ मित्तो वि होइ सत्तू पुरिसाणं पुत्रकम्मदोसेणं । भज्जा वि विरज्जेज्जा अत्थो वि अणत्थयं जाइ ॥ ६४ जइ हरियं मह वित्तं विहिणा रुट्ठेण पावकम्मेण । ता किं हरिया कंता जीऍ वसे जीवियं मज्झ ? ॥ ६५ मइच्छिण समयं नूणं दारिद्दयं पि रमणीयं । रज्जं पि पिएण विणा दुक्खं चिय कुणइ लोयम्मि ॥ ६६ अज्जम विन्नायं नत्थ हु नेहो जयम्मि सयलम्मि । जेणाहं जीवामो सुन्वयविरहे वि" निलज्जो ॥ ६७ जाया अस्थिय होही भज्जा पुरिसाण एत्थ लोयम्मि । सुवयसरिसा मैं जणे जइ नूणं सुवया होइ ॥ ६८ एवं चिंताविहुरो कामुम्माएण सो दढं गहिओ । सुव्वयभणिरो वियरइ दीवस्स य तस्स मज्झम्मि॥ ६९ रुक्खं पि हु दट्ठूणं मणुयायारेण संठियं झत्ति । एसा सा मह भज्जा आलिंगइ इय मणे काउं ॥ ७०
1 B मेत्तो | 2 C बाहाहिँ । 3 C चालेह | 4 B वेगेणं । 5 B C चालिया हूँ । 6 B विओगेणं । 10 A रुवंती । 11-12 A किमिह । 13 C हि । 14 B एत्थ । B हसणिजा । 18 C एगंतर । 19A सह । 20 B
23 A सुहिओ | 24 C हु | 25 C नेय |
26 C मज्झ ।
7 A अइदूरं । 8 A सव्वं । 9A एअं | 15 B सोहणा । 16 BC गई। 17 कज्जम्मि | 21 B वचसियं । 22 B वि। 27 Bति । 28 C पुर्ण पत्ता । 29 A CD निययं । 30 B पिच्छिऊण । 31 BD एक्कलं । 32 B उयहिस्स । 33B च मणे । 34 A C सन्वो । 35 B परिगहिभो । 36 A मेल्हए | 37 A मेल्हइ । 38B मेतो । 39 B लोभं । 40 C दविणस्स | 41 B मेलिओ । 42 C वि। 43 A B C जस्स । 14 CD | 45 C हु । 46 B चिंततो विहु ।
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