Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 106
________________ ४, ९८ - १२३] नागपंचमीकहाओ - ४. वीरकहा ३३ जो पुण करेज को विहुकोहाइवसेण दीहकालं च । तस्स कहं भण मोक्खो दुक्खाओ एत्थ संसारे१॥ ९८ तम्हा मुणिवर ! मज्झं सरणं तुम्हाण संतिओ धम्मो । होही तस्से बलेणं' संगो मह हिययइडाए ॥ ९९ दीसइ जस्स पहावो पच्चक्खेणेव एत्थ कज्जम्मि | सुहु तहिं अणुराओ होइ परोक्खे वि लोयाणं ॥ १०० सम्मत्तेण समाणा गहिया भावेण पंचमी तेर्णं । नियमविहूणो मणुओ पसुतुलो होइ धरणियले || बहुलोयबोहणत्थं करिय विमाणं बलेणं विज्जाए । आरुहिर्यं वीरसहिओ रायगिहं मुणिवरो पत्तो ॥ आयासठियं हुं रम्मविमाणं जणो जणं भणइ । किं एयं अच्छरियं अदिट्ठे पुत्रं इहं पत्तं ? ॥ उज्जयंतं नयरं अवयरियं वीरगेहमज्झम्मि । पेच्छंताण जाणं झत्ति विमाणं मणभिरामं ॥ १ २ मुह य लोओ सो विहु तत्थे आगओ गेहे । दहूण मुणिवरिंदं वंदित्ता महियले विसइ ॥ सुणिणा कहिए धम्मे पडिबुद्धे तत्थ लोयसंघाए । सव्वजणाणं मज्झे जिणमग्गं पहावण जाया ॥ अह मुणिवरो वि तत्तो उप्पईंउं जत्थ सुवया तत्थ । संपत्तो सहस चिय बहुलोय विबोहणडाए ॥ दहूण मुणिवरिंदं गयणाओ तत्थ आगयं सहसा । अह वंदिऊण पच्छा उवविट्ठा महियले सवे ॥ पुच्छंताणं ताणं कहिए सम्मिँ मुणिवरिंदेणं । अहं चिंतियं मणेणं सुवयनामाऍ एत्थं तु ॥ जइ एस मुणिवरिंदो कहेज तस्से हैं संतियं वत्तं । तो तं करेज्जं नूणं जं एसो अक्ख धम्मं ॥ णि वितओ कहियं वन्नेउं पंचमीऍ माहप्पं । सव्वं पि वीरचरियं तीसे नाऊण चित्तगयं ॥ तुट्टा सुबयाऍ सत्थियलोएण तह य सवेणं । गहिओ जिणवरधम्मो पंचमिवयसंजुओ विमल ॥ उप्पइय मुणिवरिंदो विहरइ वसुहं जणं विबोहिंतो" । सत्थो वि कमेण गओ रायगिहे निययनयरम्मि ॥ दविणाओ सदिययरं संगं" बीरेण ते उ मन्नंति | अहवा वल्लहसंगो सव्वाण वि उत्तमो होइ ॥ पियरिहे दुक्खं तस्स य मिलणेण जं" हवई सोक्खं । तं जइ जाणइ सो श्चिय अहवा जो चेव सघण्णू ॥ ३ ४ Jain Education International ६ ७ For Private & Personal Use Only ८ ९ ११० ११ १५ १६ १९ सुहु पमोओ जाओ नायरलोयाण ताण मिलणेणं" । अहवा ईसरमिलणे भण कस्स न आयरो होइ ? ॥ हरिण धणं सवं नयराओ नीणिओ घणो सिग्घं । अन्नो वि मित्तदोही दुक्खं पावेइ नियमेणं ॥ १७ सुच्चय-वीराण तहिं भुजंताणं च विसयसोक्खाइं । जाओ पुन्नवसेणं पुत्तो दामोयरो नाम ॥ १८ परिणीए तम्मि सुए संजाए घरभरस्स जोग्गमिं । वीरो सुइयसहिओ " धम्मे चिंय आयरं कुणइ ॥ देवाण कुणइ पूयं दाणं सव्वाण देइ जहाजोग्गं । विसयसुहाओं नियत्तो घरे वि परिसंठिओ निचं ॥ जई चित्तं न विसुद्धं ता जाण तवोवणं पि घरसरिसं । सुद्धम्मि तम्मि नियमा गेहं पि तवोवणं होइ ॥ जह जह आगमतत्तं भावइ पइदियहमुत्तमं वीरो । तह तह निम्मलचित्तो देहम्मि वि णिपिहो जाओ ॥ तं" वल्लहं पि वीरो जणसरिसं सुवयं मणे मुणइ | अहवा गयरागाणं एरिसओ चेव सन्भावो ॥ १२० २१ २२ १२३ १२ १३ १४ 1 B जस्स । 2 B बसेणं । 3 B पभावो । 4 B तेणं । 5 B निमम° । 6 B नियमेण; C धरियमणो | 7A खणेण । 8 A आरुहद्द | 9 C अइह° | 10 A राया । 11 C एत्थ । 12 C ( 5 ) धम्म । 13 B पभावणा । 14 B उपओ। 15 B सव्वं पि । 16 C अहि । 17 B करेज । 18 A तस्सेय; D बीरस्स | 19 C करेमि | 20 A कम्मं । 21 C विबोहतो | 22 A संगो । 23 B होइ | 24 B जं । 25 B मिलणम्मि । 26 B C दामोदरो । 27 B जोगम्मि । 28 C ° सरिसो 31 B होइ । 32 B C तह । 29 B अह । 30 A जह 1 नाणपं० ५ www.jainelibrary.org

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