Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
________________
३, ११६ - १२५४, १ - १४] नागपंचमीकहाओ - ४. वीर कहा
११६
१७
१८
१९
१२०
२१
अभासवण पुणो पडिमं एगारसिं पवज्जंति । ताओ कज्जवसेणं चित्तेणं निष्पिहाओ वि ॥ सम्मत्तं वयमेव य सामाइय पोसहो य पडिमा य । बंभं सच्चित्तवयं वज्जइ आरंभयं तह य ॥ पेसणयं उद्दिहं वज्जइ तह समणओ व कालेणं । एगारस पडिमाओ सावयलोयाण एयाओ || देसंति' बहुजणाणं धम्मं जिणदेसियं च पइदियहं । भाविंति भावणाओ आसंगनिवारणडाए ॥ झायंतिय अणुदियहं धम्मैज्झाणं महाणुभावाओ । वीरासणाइयाइं कुणंति तह आसणाई पि ॥ अहं रोहं धम्मं सुक्कं झाणाइँ होंति चत्तारि । पढमाइँ दोन्नि वज्जह अंतेसु य आयरं कुणह || वीरासन - वज्जासण - गोदोहियँ माइयाइँ बहुयाई । दुहियाइँ आसणाई भणियाई आगमे एत्थ ॥ संलिहिय तओ देहं तह य कसायाइँ सुहु रोद्दाइं । खामित्ता सङ्घजणं भत्तं पञ्चक्खियं ताहिं ॥ नवकारेण समाणं मरिऊणं ताओ तइयकप्पम्मि । देवा भासुररूवा संजाया एगभविया उ ॥ भद्दा अक्खाणं वाहिविमोक्खेण संजुयं सोउं । जो कुणइ पंचमिवयं सो पावइ सासयं ठाणं ॥ १२५ इति श्रीमहेश्वराचार्यविरचिते पञ्चमीमाहात्म्ये' भद्राख्यानकं" तृतीयं समाप्तम् ॥
२२
२३
२४
*
४. वीरकहा
१
वाहिविमोक्खेण जुयं भद्दाऍ कहाणयं कहेऊणं । पियसंगमसंजुत्तं संपइ वीरस्स तं कहिमो ॥ इह चैव भरहवासे दक्खिणअम्मि मज्झखंडम्मि । पुन्नम्मि बहुविहेहिं तित्थेहि" ये लोर्यं सिद्धेहिं ॥ २ सग्गो व विबुकलिओ मगहानामेण जणवओ तत्थ । हारो व बहुसरीओ मग्गो इव बहुपयाकंतो ॥ ३ आगासं व विसालं वयणं पिव रयणसंजुयं रम्मं । नइपुलिणं व सरामं" नयरं तत्थत्थि रायगिद्दं ॥ ४ सज्झो व तुंगचित्तो विंझो इव नम्मयाऍ संजुत्तो । सेट्ठी गुणाण निलओ तत्थ य नामेण वीरो त्ति ॥ ५ गोरि व बडा लच्छि व अनंतहियय आवासा । तस्स य सुवयनामा भज्जा अइसुडु वल्लहिया ॥ ६ अणुदियहं संगेण वि ताण न तित्ती मण िमणयं " पि" | अहवा सेविज्जंतो अहिययरं वड्ढए कामो ॥ ७ तं भज्जं सो वीरो जीवं" पि व रक्खए परजणाओ । तं चिय मन्नइ वित्तं" तं चैव य सङ्घपरमत्थं ॥ ८ महिलाण वि मिलणेणं मन्नइ पुरिसो" ण एसे मिलिय त्ति । अहवा वल्लहलोए एस चिय होइ परिवाडी ॥ ९ तित्तं पि मुणइ छुहियं सुत्तं पि हु तह मुयं वियाणेइ । तुद्धं पि गणइ रुडं सो वीरो मोहिओ कंतं ॥ १० विरुए कए वि मन्नइ एयाए उत्तमं कयं मज्झ । असियं पि सियं पभणइ तीए परिभासियं वीरो ॥ ११ अगुणं पि गुणं मन्नइ वल्लहलोयस्स मोहवसवत्ती । करजक्खयदुहयाइँ वि" कामीणं जेण सुहयंति ॥ १२ अन्नदियहम्मि वीरो रत्तीए पच्छिमम्मि भायम्मि । संभालइ घरवत्तं" केत्तियमेत्तं महं वित्तं ? ॥ १३ घरमज्झट्ठियै भुत्तं गलियं दिन्नालयं च सवं पि । कामासत्तस्स दढं आयविहूणस्स कालेणं ॥
१४
२९
1 B देसिंति । 2 B भावंति । 3 C आतंक | 4 A धम्मं । 5 A जाणं; D ज्झाणं । 6 BC गोदुहियामाइ | 7 C इई । 8-10 B विरचितं फलसंसूचकं सुभद्वाख्यानकं C 'विरचितं पंचमिफलसंसूचकं भद्राख्यानकं; D विरचितं पंचमी फल संस्तवकं भद्राख्यानकं तृतीयं समाप्तम् ॥ 11 BC तिव्थेहिं । 12 BC it is missing in both these Mss. 13 B तिलोय° । 14 B सरासं । 15 B मणं पि । 16 B मणयस्मि । 17 B it is missing in this Ms. 18 C जीयं । 19 B चित्तं । 20 BCD पुरिसा । 21 A एरथ; D इत्थ । 22 A B सुयं । 23 C परिहासियं । 24 A ° दुहयाइं । 25 A it is missing in this Ms. 26 B द्वियं । 28A च निहालि; D निहालियं ।
वित्तं । 27 A D
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162