Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 103
________________ ३० सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ [ ४, १५-४२ ॥ २० ॥ २३ बहुआओ' थोववओ पुरिसो अइउत्तमो इहं लोए । नित्थरइ जेण वसणं दुब्भिक्खं तह य वाहिं च ॥ १५ समआय-वओ मज्झो होइ जणो एत्थ लोयमज्झम्मि । थोवाओ " बहुयवओ निक्किडो चेव पुरिसो ति ॥ १६ आयविहूणो जो पुण वयमेव करेइ निच्चकालं पि । सो घडखप्परहत्थो भिक्खं चिय भमइ अचिरेणं ॥ १७ एत्तियकालं भुत्तं जं पिउणा अज्जियं मए वित्तं । इण्हिं कह निव्वाहो होही मह पावकम्मस्स ? ॥ १८ जो ववसायविहूणो भुंजइ पिउसन्तियाइँ दवाई । सो लग्गइ मायासाडए वि अइनिंदिओ धडो ॥ १९ रंडा विववित्तं भुंजइ काऊण कत्तणाईयं । अब्बावारेणं चिय मइ पुण भुत्तं इमं सवं केण उवाएण पुणो दवं अज्जेमि भोर्यकारणयं ? । दव्वाभावेण जओ भोयाणं' साहणं नत्थि ॥ २१ दीवंतरम्मि गंतुं तम्हीं विढवेमि पउरदव्वाई" । पलियैलुहणेण कत्तो लक्खसहस्साइँ जायंति ? ॥ २२ इय चिंतिऊण मेलइ कमसो भंडाइँ बहुपयाराई । दाऊणं गेहसारं " जोग्गाइँ सुवन्नदीवस्स अण्णे व इन्भपुत्ता मिलिऊणं करिय सत्थसंघायं । वीरेण समं चलिया कयकोउय- मंगला सर्व्व ॥ २४ उवगरणेण समेया रंधणए सुवया वि अइकुसला । पंथे वि कुणइ निचं गेहाओ भोयणं अहियं ॥ २५ परमत्थेण जणोयं भोयणकज्जेण कुणइ सवं पि । जइ न मणोज्जं तं पि हु ता जाणह निष्फलं सव्वं ॥ २६ उववैसे-कास-ऊणिम य तह रुक्खया य मलिणत्तं । धम्मत्थे सहलाई इयरस्स दुहं चिय करिति ॥ २७ सर्व्वसिं जहजोग्गं भोयणकालम्मि सा तयं देइ । सव्वायरेण तेसिं पइदियहं सुवया मुइया ॥२८ तत्थ य सत्थे एगो सुव्वयरत्तो घणो त्ति वाणियओ । वीरेण समं मित्तिं करेइ अइनिब्भरं मूढो" ॥ २९ भक्खं भोज्जं मल्लुँ” वत्था - ऽहरणाइँ तह य गंधाई । चोक्खाण वि चोक्खाइं अणुदियहं देइ वीरस्स ॥ ३० नियघरिणीऍ" विसरिसं जं विश्चइ किं पि सुहु गुज्झं" पि" । तं पि हु तस्स कहेई अविसंको भविय एगंते ॥ ३१ वीरो वि तस्स चेट्टं दहूणं तिनेहपडिबद्धो । अप्पाणस्सेव दढं वीससिओ सङ्घकजेसु || नीईर्कुसलो वि जणो" वंचिज्जइ गाढमूढहियएहिं । वयणेणं विणएणं बहुविहदाणेण सरणेण ॥ ३३ अह कमसो गंतूणं पत्तो जलहिस्स तीरदेसम्मि । सो सत्थो" अइसंतो” आवासइ समविभागेसुं ॥ ३४ ठवियाई वहणेसुं इंधण - सलिलाइँ तह य भंडाई । गहिया तह य सहाया दिन्नं सुकं च चरडाणं ॥ ३५ काऊण तओ पूयं रयणायरदेवयाऍ भावेणं । सर्व्वे वि हु आरूढा तुंगबुहित्थे रम्मे ॥ ३६ बद्धाइँ धयवडाई अणुकूलो मारुओ य संजाओ । चलिया झत्ति" बुहित्य चिंध-पडायाहिँ " चिंचइया ॥ ३७ गच्छंतेसु दिणेसुं इंधण- सलिलाइँ सुहुँ खीणाई । पत्ता अंतरदीवे गच्छंता पुन्नजोएण ॥ उत्तरिऊणं तुरियाँ सर्व्वे" हिंडंति तत्थ दीवम्मि | इंधण-सलिलकणं कुसुम-फलाणं च लोभेणं ॥ ३९ वीरो विवणसमेओ परिसंतो तत्थ एगदेसम्मि । सोवइ जाव णिचिंतो ता चिंतइ सो घणो पावो ॥ ४० एसो चि पत्थावो सुव्वयहरणम्मि मज्झ अवियारं । कालंतरिए कजे विग्घाई " जेणं जायंति * ॥ ४१ सिग्धं गंतूण तओ धाहावई उग्भियाहिँ " बाहाहिं" । हा ! हा ! झत्ति पलायह पत्ता सबराण धाडि त्ति ॥ ४२ ३२ ३८ 1 BCD 'याओ । 2 B इत्थ । 3 BD थोयाओ । 4 B व्वि । 5 A D एहि । 6 B धिट्टो । 7 B भोग । 8 B पुणो । 9 B भोगाणं । 10 B दव्वं । 11 B किं वियारेण ? | 12 A पेलिय° । 13 B दाऊण य । 14 B घरसारं । 15 A D उववासो । 16 C असणा; D कयसण | 17 C ऊणिमया; D मूणणा 18 C तह य। 19 C गूढो । 20A मव्वं । 21 B ° धरिणीय | 22 A गरुयं । 23 C 'मि। 24 B निच्च' । 25 B नीइ | 26 B लोओ। 27 B C सरसेण | 28 B सव्वो । 29 B सुविसत्थो; CD अइसत्थो । 30 B विभूईसु; C °विभूमीसु । 31 B तह दाणं । 32 D वर । 33 A वहित्तेसु; B बोहित्थे । 34 B सुहावासे । 35 B लहु । 36 B बोहित्था । 37 B 'पओगेहिँ । 38 B तथ्थ | 39 B सब्वे । 40 B तुरिया | 41 BC परिसंठिय । 42-44 B हवंति विग्धाई बहुयाई । 45 C वाहावइ । 46 B उब्भिऊण । 47 B दो बाहू | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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