Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 98
________________ नाणपंचमीकहाओ - ३. भद्दाकहा ३. भद्दाकहा ७ कुलजम्मफलसमेयं चरियं नंदस्स साहियं पुष्विं । वाहिविमोक्खेण जुयं संपइ भद्दाऍ ' वोच्छामि ॥ अमिसनया सुरकामिणि वं देह व भिन्न बहुसोया । माल व तंतुकलिया गहगणचक्कं व बहुउडुया ॥ २ वेस व भुयंगजुया कम्माणं परिणईं वं दुत्तारा । गीवं र्व्वं तरलहारा सुपुरिसहिययं वै बहुत ॥ ३ कालिंदी नाम नई अत्थि पसिद्धा जयम्मि सवम्मि । अहियं गच्छइ नीए जा निचं दुट्ठमहिल व ॥ ४ तीसे' पच्छिमभाए देसो नामेण सूरसेणो त्ति । बहुगाम-नयरेकलिओ जन्नू - सवसोहिओ रम्मो ॥ अहियं नीरागमणो ठाणट्ठाणम्मि ठवियबहुसासो । सरसो तह य विरामो देसो सो मुणिजणसमाणो ॥ ६ कन्न व लीणचरणा लाडीजुवइ व दीहरच्छीयों । सारि व बहुपयारों बहुवन्ना चित्तसाल व ॥ विव सुगसहिया कन्नाहियउँ हैं धरियवरआसा । अडवि व महुरनयरी बहुविहवा तत्थ सम्मि ॥ ८ सालि व कोसत्तो रुद्दो सेट्ठी तहिं सुविक्खाओ । रयणि व तारहारा तारा पि य भारिया तस्स ॥ ९ भुंजंति दो वि भए अन्नोन्नं रंजणेक्कैवरहियया । अहवा नेहजुयाणं एरिसओ चेव सन्भावो || १० अह अन्नया कयाई रयणीए पच्छिमम्मि जामम्मिं । पेच्छइ सुमिणं" तारा तुट्ठ-विसन्ना य तुट्टा य ॥ ११ कंचणवन्नं तं पच्छा जालावलीऍ निद्दड्डुं । पुणरवि कंतिकरालं गिहिय पउमावलिं दिवं ॥ १२ पक्खिवइ निययकंठे अपु (प्पु ?) वं मण्णिऊ अइमुइया । पडिबुद्धा य निवेयइ नियपइणो जं जहादिहं ॥ १३ रुद्द वि तओ" जंपइ ताराए सम्मुहं इमं वयणं । नीरोग-सरोगा रोगवज्जिया जहकमं सुयणु ॥ १४ होही तव वरधूया सव्वाण वि उत्तमा पुरंधीणं । जइ इहें अर्थिं पमाणं सुमिणफलखा (क्खा ) ययं सत्थं ॥ १५ तद्दिवसे चितीए गन्भे सुह - असुहकम्मपरियरिओ । मरिऊण को वि जीवो आवन्नो" इत्थिभावेणं ॥ १६ माया विलसिणं पुरसो वि हु इत्थिया इहं होइ । इत्थी वि सरलहियया पुरिसो इहैं होइ संसारे ॥ १७ पसुमाईणं लोभाइएहिँ जो कुणइ निद्दओ" लोएँ । अंगाईण विद्यायं वे संढो होइ सो पावो ॥ १८ to जाओ sोहलओ एरिसओ तीऍ* हिययमज्झम्मि । जह करिमो उवयारं दीणाऽ-णाहाण सत्ताणं ॥ १९ चिंत सा डोहलओ अइविसमो मज्झ एस संजाओ । पयईऍ जओ वणिया हियएणं संकडा होंति ॥ २० एवं चिंतंतीए तीऍ" सरीरं च जाव परिहाइ । ताव य पभणइ रुद्दो दुक्खत्तो पेसलं वयणं ॥ कहसु पिए ! अविसंकं जं दुक्खं तुज्झ संठियं हियए । सामत्थेण धणेण य जेणाहं फेडियो सिग्घं ॥ २२ पभणइ तारा सामिय ! अलमिमिणा पुच्छिएण अम्हाणं । जेणासज्झाऽ- णुचियं" कजं चिंतंति इत्थीओ" ॥२३ उचियाऽणुचियवियारो जइ महिलाणं हवेज्ज हिययम्मि । ता किं विउहिँ इमा विसासकजेसु परिहरिया ? ॥ २१ जेणं चिय एयाणं हियए कज्जाइँ ठंति विसमाई । तेण वियड्डेहिं इमा मंतम्मि विवज्जिया सुहु ॥ लज्जा-कुल- जाइ घणाउलीं वि" तह णेह भत्तिकलिया वि । तं कुणइ झत्ति इत्थी जायइ सिरढक्कणं जेण ॥ उम्मग्गे व पट्टो पुरिसो मइलेइ पिउकुलं चैव । महिला उ अकज्जरया पिउ-ससुरकुलाइँ मइलेइ ॥ लजं धम्मं नेहं पडिवन्नं कुलकमं च मज्जायं । सवं ण गणइ इत्थी मोहपिसाएण संगहिया || ३, १-२८ ] Jain Education International २५ । 1 B भद्दाह । 2 B च । 3B परिणई। 4 Bव । 5 BC गीवे । 6 BC व 7 ACD व 8B°सुता । 9A तस्स य । 10 C मज्झिम | 11 A°नयरि; D ' नगर° । 12 C गण | 13 B रच्छाया । 14 Bपवासा; C पराया । 15 साल | 16 B विण्डु; D विहु । 18 A हिययं । 19 A व 20 B रञ्जक | 21 C भाग्मि । 22 B सुइणं । 24 B तयं । 25 A होइ । 26 A इह | 27 BD फला । 28 A अवइन्नो । 30 A. विय। 31 C निड्यं । 32 A लोओ। 33 B दोहलओ । जेण जणासज्झं चिय । 37 A महिलाओ । 38 B C ° विउला । Mss. 40 AC टकणं । 11Aय । नाणपं० ४ 29 B मायाऍ । 34 B तीय। 35 B तीय। 36 AD 39 BC it is missing in these For Private & Personal Use Only २४ २५ २६ २७ २८ 17 C सुकय° । 23 A. पासिऊण । www.jainelibrary.org

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