Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 97
________________ २४ सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ [२, १०३ -१२० अप्पाणस्स परस्स य कीरंतो मुत्तिसाहओ चेव । नेहो वि धम्मकज्जे परंपरेणेह संसारे ॥१०॥ पढमेत्थ ताव ताओ वीयं गुरुभाइओ महं तं सि । तुह बोहणानिमित्तं तेणाहं आगओ भद्द ! ॥ सो चेव हवई बंधू जो मोयई कम्मबंधओ नियमा । जो पुण बंधइ तेणं तं सत्तुं मुणसु तत्तेणं ॥ नंदो वि भणइ एवं पढमं तं आसि मज्झमवियारं । पुत्तो सामी य तओ धम्मायरिओ इयाणिं तु ॥ ६ इहलोए चिय सुहओ पुत्तो सामी य एत्थ लोयम्मि । इह-परलोयसुहाई धम्मायरिओ उ संजणइ ॥७ इय नाऊणं एवं मझं तं चेव कहसु परमत्थं । कइया हं पावेज्जा संसारुत्तारणिं दिक्खं? ॥८ तो बोल्लई सुरकेली कलं चिय एत्थ नयरिवर्णमज्झे । सिरिभद्दो आयरिओ अवयरिओ गुणगणावासो ॥ ९ मासम्मि इओ दियहा दिक्खा तव तस्स पासओ" होही । कले तुह सुयजम्मो जाणेज्जसु पञ्चयं एयं ॥११० वत्थाऽऽ-हरणाईयं दाऊणं तस्स सुरवरो मुइओ। संपत्तो नियठाणं गंतूणं रयणिविरमम्मि ॥११ उइयम्मि तओ सूरे नंदो गंतूण तत्थ वणसंडे । अहिवंदइ सिरिभई भत्तीए परियणसमेओ ॥१२ पच्छा जोडियहत्थो उवविठ्ठो महियलम्मि गुरुपुरओ। धम्म सुणेइ पणओ निविन्नो जम्म-मरणाणं ॥ १३ निसुयम्मि तहिं धम्मे सुट्ठयरं विसयसोक्खनिम्विन्नो। पभणइ सूरिं भयवं ! इह कीरउ मासकप्पं तु ॥१४ खेत्तस्स बहुत्तणओ" बहुयाणं बोहहेउओ तह य ।आयरिएण तह चिय पडिवन्ने सो गओ नयरिं ॥१५ एत्थंतरम्मि जाओ पुत्तो तस्सेवं दिणयरालोओ । कालेण कयं नामं वालस्स वि सूरसेणो त्ति ॥१६ संभालिऊण पियरं बालं पक्खिवई तस्स उच्छंगे । काऊण महीपूयं जिणवरभवणेसु सवेसु ॥१७ जणणी-परियणमेव य संठाविय दुहियभजवग्गं च । मोत्तुं तणं व लच्छि नीसरिओ नयरिदाराओ ॥ १८ गंतूण सूरिपासे गिन्हइ दिक्खं जणाण पञ्चक्खं । बहुएहिँ समं नंदो कुलउत्तय-मित्तवग्गेण ॥१९ दहूण तस्स चरियं बहुयाण वि जिणवरिंदमग्गम्मि । जायं मणपणिहाणं जं पूर्वई पूइओ" लोओ॥१२० आयरिएण समाणं सो चलिओ तम्मि चेव दिवसम्मि । सयणाण मज्झयारे पवजा दुक्खरा जेणं ॥२१ सयणपमोए राओ तदुक्खे जेणं दुक्खसंघाओ । तेण सयणाय दूरे पवजा सुट्टियाँ होइ ॥२२ नाऊण जाणणीयं चारित्तं पालिऊणं सो सुद्धं । संलिहियतणु-कसाओ संपत्तो अचुए कप्पे ॥२३ तत्तो चविऊण तओ निव्वाणं पाविही सुहनिहाणं । नयरे नंदावत्ते नंदो कम्माण विगमेणं ॥२४ सोऊण नंदचरियं जो पालइ पंचमीऍ वयममलं । सो पावइ निव्वाणं अहवा सुरसंपयं विमलं ॥ १२५ इति श्रीमहेश्वराचार्यविरचिते" पञ्चमीमाहात्म्ये नंदाख्यान द्वितीयं समाप्तम् ॥ 1A नेह। 2 Bहोइ। 3C मोअइ। 4 BC एयं । 5 Bअवियारं; C सुवियारं। 6 B इहलोइ । 7 A घि। 8 BC एयं । 9 A जंपद। 10 B जण। 11 AC पास। 12A कलं। 13 B पहुत्त ओ। 14 BC पडिवनो। 15 B तस्सेह । 16 BC पक्खिविय। 17 BD तहा। 18 B परियर । 19 A °सेक्य। 20 BC बहएण। 21 B मेत्त। 22 ACपरिहाणं। 23A पूइयं । 24 A पूयओ। 25A दियहम्मि। 26A जेणह; Cजेणेह। 27 A सुट्टया; CD सुद्धिया। 28 A जणणीयं । 29 Aपाविऊण। 30 A°मतुलं: D मउलं। 31 BCD विरचितं। 32 BCD it is nob found in these Mss. 33C समाप्तमिति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162