Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 95
________________ २२ सिरीमहे सरसूरीविरइयाओ [ २, ४५ - ७२ ४७ ५२ जंपइ य पुष्पदंतो भयवं ! तं चैव बंधवो मर्झ । संसारजल हिपोओ जिणधम्मो देसिओ जेणं ॥ ४५ सो चिय माया बप्पो सो चेव य बंधवो य मित्तो य । जो धम्मं उवएसइ परलोयसुहावहं लोए ॥ ४६ जो धम्मं उवएसइ तेणं सव्वं पि दिन्नयं होइ । धम्मेणं चिय जेणं हियइट्ठे लब्भए एत्थ ॥ एत्तियकाले वि गए लद्धो धम्मो य एत्थ सुंदरओ | अहवा सा विसइ चिय जाएइ पहायसमयम्मि ॥ ४८ कुच्छिय कुल कारण यं फिट्टेजा कह णु सामि ! कम्मं पि । तं चिय जाणेसि तुमं अइसयनाणेण संजुत्तो ॥ ४९ तो जंपर मुणिनाहो इमाओं जम्माओं पुवजम्मम्मि । पावाऍ खेमणामो पक्कणकुलचेडओ आसि ॥ ५० जिणधम्मम्मि पवन्नो सेट्ठिसुओ गुणनिही महं मित्तो । पर हियरएण तेणं उवदिट्ठे जिणमयं मर्झ ॥ ५१ ते समं पइदियहं चेइयगणसाहुवंदणनिमित्तं । गच्छामि तत्थ दूरे निंदंतं अप्पयं ठामि ॥ तेणुवइटुं काउं वयमउलं पंचमीऍ महईए । तीऍ बला उववन्नो उद्दिन्ने (ते ?) खत्तियकुलम्मि ॥ ५३ बंभायरियसया से दिक्खं गहिऊण कम्मविवरेणं । लहिऊण य वरनाणं तुह बोहत्थं अहं पत्तो ॥ ५४ तो गिहिं तुमं पि इमं पंचमिवयरयणयं कुर्ण विहीए। मुच्चसि " जेण इमाओ किलिंकम्माओं नियमेण ॥ ५५ नियउवयाररएणं परउवयारो " नरेण कायो । तस्सुवयारेण जओ नियउवयारो हवइ सिग्धं ॥ ५६ अवितहबुद्धीऍ तओ गिण्हइ सो पंचमिं च अइमुइओ । भत्तीऍ" पुप्फदंतो मुणिपय मूलम्मि विहिपुत्रं ॥ ५७ दहूण सिक्खो वि हु जं" वित्तं तं तहेव सोऊणं । कुलमयमइदूरेणं मेल्लित्ती मुणिगणं नमई ॥ ५८ तो बोहिऊण चंदो अन्नत्तो विहरिउं समाढत्तो । बोहिंतो भवियजणं पइदियहं बहुपयोरहिं || जो जेणं चिय बुज्झइ तस्स तयं चेव होइ दायवं । बोहंतेण नरेण वि बहुरुजुत्तम्मि लोयमि ॥ ६० गीण नचिएण य रुएगें खुहिएर्णं चेर्वे लोहेण । दुक्खेण गहिलियाए भूसाईणं च करणेणं ॥ ६१ गयराय-मच्छरेण वि उचियाणुचियाइँ दूरओ मोत्तुं । परउवयाररएणं पडिबोहो हो का || ६२ महुसम्मो वि हु सिग्धं गेहं काऊण नियघरासन्ने । नेहेण कुणइ सवं अणुदियहं पुष्पदंतस्स ॥ वरिसाइँ पंच काउं सिरिपंचमि उज्जमीयै जहजोग्गं । अन्नं पि पुप्फदंतो कुणइ तवं सुड्डु निधिन्नो ॥ ६४ एत्थेव भरहवासे दक्खिणदेसम्मि सुहुरम्मम्मि । पयडत्थिं नयरि कंची कंची इव पुहइकन्नाए ॥ ६५ कलिकालो इव दुहओ कयली व विसालओ * य सवत्थ । गयगण इ बहुरयणो जो सो पडओ " व गुणकलिओ" ॥ ५९ ६३ ६६ सरओ इव विमलासो हरि व कमलासओ इह जणम्मि । मित्तो व विसमआसो जिणवरनाहो व जियराओ ॥ ६७ तीऍ” नयरीऍ" राया इक्खागकुलब्भवो विहू नाम । भज्जा य तस्स चंदा सवाण वि हियय आणंदा ॥ ६८ मरिऊण पुप्फदंतो तीसे गन्भम्मि पुन्नजोएण । उववन्नो बहुपुन्नो कयकोउय-मंगलो सुहओ ॥ ६९ सुहलग्गम्मि पवत्ते पत्ते जोगम्मि निम्मलयरम्मिँ । संपुन्नदोहली अह कमेण सा दारयं जई ॥ वित्ते वृद्धावणए दिन्ने दाणम्मि बहुपयारम्मि । विविहम्मि जम्मकम्मे पत्ते तह पुन्नदियहम्मि ॥ जाएण जेण नंदइ तम्मि जणो वित्त-धन्नमाईहिं । तेणं चिय तस्स कयं नामं" पि" है नंदे इय गुरुणा ॥ ७२ ७० ७१ 1 B मज्झं । 2 B जेणं । 3 B तेण य । 4 B इमं । 5 A पावाय । 6B मज्क्षं । 7A मतुलं । 8 C इहं । 9 B गेण्ड । 10 A कुल 11 C मुंचसि । 12 A किले ° | 13 A परोवयारो । 14 B भत्तीय; D भत्तीइ । 15BC तं । 16 B मेलित्ता । 17 B C भणइ । 18 B भणिएणं । 19BC खुज्झिण | 20 BC it is missing in these Mss. 21 A उज्जुमेदि; D उज्जमेवि । 22 B इत्थेव । 23 A पडित्ती । 24 BC बिसारओ । 25 B वइ । 26 C पयडो । 27 B C 'निलओ । 28 B तीइ । 29 B नयरी | 30 BC गुण | 31 A 35 A. नंदो । 36-38 A नामेण । वरम्मि | 32 A 'डोहला । 33 A विय। 34 BC जिइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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