Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 94
________________ २, १६-४४] नाणपंचमीकहाओ-२, नंदकहा २१ अप्पत्थेओ' जाओ न य पावइ कन्नयं विरूवं पि । अत्ताणं अइंनिंदइ हीणाण वि हीणओ अहियं ॥ १६ सरिसे वि हु मणुयत्ते तुल्ले वि हु अवयवाण संखेत्ते। चोक्खा-ऽचोक्खविभागो केण कओ एस लोयाणं?॥१७ सरिसाण वि वंचणयं दुक्खं माणुण्णयाण संजणइ । एगम्मिं मंचएँ वि हु दुहसेज्जा कन्न दूमेइ ? ॥ १८ एवं दुहसंपत्तो पइदियहं इंदसम्मगेहम्मि । गायंतो दारठिओ भोयणजायं विमग्गेइ ॥ १९ अइसयणाणी चंदो तीसे नयरीऍ बाहिरुज्जाणे । अहिणवसीससमेओ कारणओ आगओ तइया ॥ २० तस्स समीवे एगो रायसुतो थोवदिवसंपवइओ । कुलमयमुव्वहमाणो न कुणइ साहूण पडिवत्तिं ॥ २१ तस्स मयणासणत्थं बोहत्थं पुप्फदंतमाईणं । सिक्खगजुत्तो चंदो गोयरचरियं पविहो उ ॥ २२ अह सो कमेण पत्तो विहरंतो इंदसम्मगेहम्मि । पेच्छइ य पुप्फदंतं हीलिजंतं गिहिजणेणं ॥ २३ अवसरसु रड्डपाविय! मग्गं"वज्जेसु सुहृदूरेणं । अप्पाणस्स परस्स य किं न वि जाणेसि रे ! भेयं?॥ २४ जेसुयं महुसम्म जंपतं एरिसं खरं वयणं । वारेइ मुणिवरिंदो पियवयणो उच्चसद्देणं ॥ २५ जम्मं नाणं लच्छि जस्स पसाएण पाविओ तं सि । एयं तं नियजणयं मा ! एवं" निंद महुसम्म !॥ २६ अह जंपइ महुसम्मो भयवं तुह वयणयं अईविरुद्धं । जाणइ सव्वो वि जणो मह जणयं इंदसम्मं ति ॥ २७ पचक्खेण विरुद्धं जपतो तं मुणिंद ! लोयम्मि । होहिसि अइहसणिज्जो बालाण वि मंदबुद्धीणं ॥ २८ अह जंपइ मुणिपवरो जइ तुह मेलेज एत्थ अहिनाणं । ता एस तुज्झ जणओ सुव्बउ एयस्स वयणं तु॥२९ सोऊण मुणिपलत्तं" कह एवं हवई चिंतमाणस्स । जायं जाईसरणं झत्ति तओ पुप्फदंतस्स ॥ ३० नियघराण" महुसम्म एगते ठाविऊण अइगूढं । सव्वं पुवणुहूयं फुडकहियं पुप्फदंतेण ॥ ३१ अह जंपइ महुसम्मो मुणिवइ ! मह एत्थ सु? अच्छरियं । मह ताओ सुइभूओ कह हीणकुलम्मि उववैनो? ३२ अन्नं च जणे सुब्बइ विप्पाईओ य इथि पुरिसो वा । जम्मतरे तह चियं न हु बीयं अन्नहा जेणं ॥३३ तो जंपइ मुणिचंदो सुबउ महुसम्म ! मह इमं वयणं । न हु बाहिरदवेणं जायइ सूइत्तणं एत्थें ॥ ३४ खम-दम-णाण-तवेहिं सुज्झइ जीवो दयाएँ" झाणेणं । तेणं चिय विउसजणो तेसिं चिय आयरं कुणइ॥३५ जइ पुण अवडिओ चिय जाईभावो हवेज जीवाणं । ता दुट्ठबंभणाणं खरमाइसु कह हुँ उववाओ?॥३६ समिईसें जओ भणियं अंगोवंगाइँ पढियवेयाइं । गहिऊण सुद्ददाणं होइ खरो बंभणो दुट्ठो ॥ ३७ बारस जम्मा खरो सहि जम्मा सूयरो होई। तह सत्तीरं च सुणओ कहमेवैमवट्ठियाँ जाई ? ॥ ३८ बीयं च एत्थ जीवो सबगईणं च सव्वजाईणं । कम्मसमेओ दियवर ! जह नडो विविहपत्ताणं ॥ ३९ कम्मेण भमइ जीवो चउरासीलक्खैजोणिभैवगहणे । कम्मेण विणा सिज्झइ तेण सकम्मो य सो बीयं ॥४० अहियं कुलमयमत्तो तुझं पिया बंधिऊण बहुकम्मं । एसो सो हीणकुले उववन्नो पुप्फदंतो ति ॥ ४१ एवं सोऊण मणे सव्वाण वि विम्हओ दढं जाओ।पेच्छह जीवाण गई कम्माण य परिणई चित्ता॥ ४२ लोयाण वंदणिज्जो दियवरकुलमंडणो गुणनिहाणो । मरिऊण सो महप्पा कह जाओ इंबैगेहम्मि?॥ ४३ अह निश्चिन्नमणेहिं गहिओ बहुएहिँ जिणमयो धम्मो। जहसत्तीऍ वयाई वि गुरुकम्मा भवए मोतुं॥ ४४ 1A B अप्पं तेओ। 2A सो। 3AD अहयं । 4 AC उल्ले। 5A एक्कम्मि। 6 Bमुंचए। 7A दुहसेजं । 8 A 'मेत्तं । 9A °दियह । 10 A य। 11 B दिट्ठी। 12 B मग्गाओं। 13 A अप्पाण य। 14 A एयं । 15 B निर। 16 AC मोलेज । 17 CD एस। 18 AD सहिनाणं । 19 B°पलितं । 20 B भवह। 21 BCघरणी। 22 AC फुड । 23 BC उप्पन्नो। 24 . 26 A तत्थ। 27 B दयाइ। 28 A व। 29 C समईसु। 30 B सही; D सुही। 31 A °मेस। 32 B°मवहिया। 33 A नाडो। 34A जोणि। 35A लक्ख। 36A बीय। 37 A तुम्ह। 88 BC दुह। 39 A एयं। 40 B बुम्ब'; D डोम्ब। 41 A वयाई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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