Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 96
________________ २, ७३ - १०२] नाणपंचमीकहाओ-२. नंदकहा २३ वडति वड्डमाणे हय-गय-देसा तहेव दविणं च । नंदे लोयाणंदे तह गुणनियरो य तस्सेव ॥ ७३ विहुरिव बुहसंजुत्तो सहइ वि हु नंद तणयपरिकलिओ। वियरंतो पइदियहं सिंघाडय-तिय-चउक्केसु ॥ ७४ सिक्खइ य सिक्खणीयं विणयजुओ गुरुजणाओं गयगयो । वंदइ य वंदणिजे नंदो निचं पि पियवयणो॥७५ अह परिणेइ कमेणं कन्नाणं रूव-जोवणेजुयाणं । बत्तीसं सगुणाणं सो मुइओ अइविभूईए ॥ ७६ ताहि समं अणुदियहं भुंजतो विसयसोक्खमणुकूलं। रइसागरम्मि पडिओ गयं पि कालं न याणेइ॥ ७७ महुसम्मो वि हु काउं धम्मं जिणदेसियं सुहमणेणं । मरिऊणं उववन्नो अट्ठमकप्पम्मि सुरपवरो ॥७८ सो य तहिं दहणं देवविहूई मणोरमं पवरं । चिंतइ विम्हियहियओ कस्स फलं मह इमं जायं? ॥७९ पेच्छइ ओहीऍ तओ सव्वं पि हु पुव्वजम्ममणुभूयं । जिणधम्मस्स फलेणं विहवो विहु मह इमो जाओ॥८० चिंतइ इमं च हियए पिउणो नेहेण मोहिओ सुट्ठ । मरिऊण पुप्फदंतो न य नजइ कत्थ उववन्नो ॥ ८१ दिह्रो कंचीऍ तओ नंदो विसएहिँ सुट्ठ वामूढो । परलोयनिप्पिवासो निचं काम-त्थगयचित्तो ॥ ८२ तप्पडिबोहनिमित्तं सव्वं मोत्तूण कंचिनयरीए । सो सहसा संपत्तो पाहाउयरूवयं काउं॥ ८३ नंदसयणीयनियडे रयणीए मज्झिमम्मि भायम्मि । आलविय महुरझुणिणां एयं तब्बोहयं पढइ ॥ ८४ जहे वोलीणा रयणी तह चेव य आउयं पि वोलेइ । जीवाणं पइदियहं तह वि न धम्मे मइं कुणई। ८५ विसयासत्तो लोओ धम्मं दूरेण वजए सु? । न वि जाणेइ वराओ विसया धम्मेण जायंति ॥ ८६ पुचिलं उवभुंजई विढविज्जइ अन्नयं पि जह दविणं । तह पुवधम्मसोक्खे भुंजते जुज्जए धम्मो ॥ ८७ अबावारो दुक्खं पावइ जह पुत्ववित्तछेयम्मि । तह जीवो वि अहम्मो पुव्वक्कयधम्मभोएणं ॥ ८८ धम्मपसाएण नरो लहिऊणं उत्तमा सोक्खाइं । तं चेव चयइ दूरे जह व खलो कजसिद्धीए ॥ ८९ महुसम्मपिया वि पुरा कुलमयदोसेण पक्कणकुलम्मि । वाणारिसिनयरीए उप्पन्नो" पुप्फदंतो त्ति ॥९० चंपपसंगेण तहिं लहिऊणं जिणमयं सुहावासं । काऊण पंचमिवयं लहिऊणं पुन्नपन्भारं ॥ ९१ तस्स पहावेण इमो नंदो नामेण इह सुहं पत्तो । अच्छइ विसयासत्तो निल्लज्जो धम्मनिरवेक्खो ॥ ९२ वीसरइ जस्स बुद्धी विभवमएणं जणस्स इह लोए । सो होइ अदवो पावो पावाण संजणओ ॥ ९३ जो न सरइ अप्पाणं सो कह संभरउँ अन्नलोयाणं? । इय नाऊणं एयं मा रूसंह विहवभुल्लाणं ॥ ९४ विहवेण जो न भुल्लइ जो न वियारं करेइ तारुन्ने । सो देवाण वि पुज्जो किमंग पुण मणुयलोयस्स १॥ ९५ जइ इच्छसि नंद ! तुमं नंदि आगामियम्मि जम्मम्मि। ता मोत्तूणं विसए जिणधम्मं कुणहँ भावेणं ॥९६ सम्मि सुए कमसो सहसा नंदस्स रंजियमणस्स । उप्पन्नं लहुकम्मत्तणेण जाईऍ सरणं तु ॥ ९७ तक्खणमेत्तेण तओ जाओ भजाणमुवरि निरवेक्खो। जंपइ जोडियहत्थो को सि तुमं कहसु मह एयं ॥९८ अह जंपइ सुरकेली महुसम्मो इंदसम्मपुत्तो हं । वाणारसिनयरीए पडिबुद्धो चंदवयणेणं ॥९९ काऊण सावयत्तं पत्तो हं अट्ठमम्मि कप्पम्मि । तुह नेहनडियहियओ एत्थाहं आगओ सिग्धं ॥१०० दूरमसज्झमकजं दुक्खं हाणी तहेव मरणं च । नेहाबद्धो लोओ मणयं पि न मन्नए हियए ॥१ जुत्ता-ऽजुत्तवियारो कीरइ जत्थेह हिययइट्ठम्मि । नियकज्जरएण फुडं दिन्नो सलिलंजली नेहे ॥१०२ 1 B "रिय। 2 A तुह°। 3 B°जुब्बण'। 4 A ताहि। 5 BD विभूई। 6A "मणुहूयं । 7 B कंचिद। 8 A पच्छिमम्मि । 9 B झुणिणो। 10 A तक्खोभयं; B तच्छोभयं । 11C अह । 12 B आउगं। 13 A.C कुणह। 14 A उवभुजइ। 15 B°वुत्त। 16 A °कय। 17 A उत्तिमाई। 18 AD उववन्नो। 19 A पभावेण। 20 A संभरओ। 21A रूसह। 22 BC मेत्तस्स । 23 A Cकुणसु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162