Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 36
________________ आदि : - नायुं छे." अंत : " आदि जिणवर ( २ ) सयल जगजंत वंछिअ सुहंकर पयकमल नमवि देव सारदा समरिअ, तिम निअ सहगुरु नामनई मुझ मन्त्रि कजि करिअ भमरिअ, वि. सं. १७३१ लगभग खरतरगच्छीय जिनरंगे 'सौभाग्य पंचमी' उपर सज्झाय लख्यानुं वि. सं. १७४८ (?) कार्त्तिक सुद ५ सोमवारे आग्रामां तपागच्छीय चारित्रसागर - कल्याणसागर - ऋद्धिसागर शिष्य ऋषभसागरे 'गुणमंजरी वरदत्त चोपाई' जूनी गूजरातीमां लख्यानुं उल्लेखायुं छे" : आदि : - प्रस्तावना कहिस्युं सोहग पंचमी नाणपंचमी तिम्म आराहत दूरि होई नाणावरणी कम्म". १ Jain Education International "भाविक जिव उपकार भणि, ज्यूं कह्यो पूरवसूरि, काति सूदि पंचमि तणो, कहिस्युं महिमा पूर. " ६ X X 66 . X ऋषभसागर निजमति अनुसारें, ए कही इण प्रकारें, गुणै चरित पवित ई, आनंद हुवें तस चित्तइंजी " ॥ २० ॥ वि. सं. १७९९ ना श्रावणसुद ५ रविवारे पालणपुरमां तपागच्छीय विजयप्रभसूरि - प्रेमविजय शिष्य कांतिविजये जूनी गुजरातीमां सौभाग्य पंचमी माहात्म्य - गर्भित श्री ' नेमिजिन स्तवन' रच्युं": आदि : "पणमूं पवयण देवी रे सूर बहु सेवित पास, पंचमी तप महीमा कहुं, देज्यो वचन प्रकाश. १ जे सुतां दुःख निकसें रे विकसे संपद हेज, आतम साखि आराधतां साधतां वाघे तेज." २ ७ आ सिवाय ज्ञान पंचमी उपर अथवा तेने लगतां विषय उपर गूजरातीमां बणारसी कृत 'ज्ञान पंचमी चैत्यवंदन,' 'ज्ञान पंचमी उद्यापन विधि स्वाध्याय' विजयलक्ष्मी सूरि कृत ' ज्ञान पंचमी देववंदन,' 'ज्ञान पंचमी खाध्याय ' अने गुणविजय कृत 'ज्ञान पंचमी स्तवन' वगेरे वगेरे लखाया छे. ४२ महेश्वर सूरिओ " ज्ञान पंचमी कथा' अथवा 'पंचमी माहात्म्य' ना रचनार सज्जन उपाध्यायना शिष्य महेश्वर सूरि वि. सं. १९०९ पछी तो नथी ज थया ए वात निर्विवाद छे कारण के ज्ञान पंचमी कथानी जूनामां ३९ जुओ उपर्युक्त जै. गू. क. बीजो भाग, पृ. २७३. ४० जुओ उपर्युक्त जै. गू. क. बीजो भाग, पृ. ३८०. ४१ जुओ उपर्युक्त जे. गू. क. बीजो भाग, पृ. ५३१. ४२ जुभो उपर्युक्त लीं. भा. प्र. सू. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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