Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 52
________________ प्रस्तावना स्थळनां नामो भविष्यदत्त आख्यान अने भविष्यदत्त कथा ए बन्नेमा स्थळनां नामो लगभग एक सरखां छे. कुरुदेश, गजपुर, सुवर्णभूमि, मैनाकद्वीप, चंद्रप्रभ जिनालय, द्वीपतिलकनगर, कांपिल्यपुर, सिंहलद्वीप अने अरिपुर वगेरे वगेरे. तिलकने बदले द्वीपतिलक, कांचनभूमिने बदले सुवर्णभूमि, कुरुजंगळने बदले कुरुदेश एवा नहि जेवा शाब्दिक फेरफारो सिवाय स्थळनां नामो बन्नेमां लगभग सरखां ज छे. प्रसंगो बन्ने कृतिओमां प्रसंगो लगभग सरखा ज छे. परंतु आगळ कयुं तेम भविष्यदत्त कथा प्रमाणमा घणी मोटी होई खाभाविक रीते एमां वर्णन विस्तार जरूर वधारे छे. एमां आवता चार प्रसंगो (नाना, मोटा मळी छ प्रसंगो; बंधुदत्त साथेनो विवाद तथा क्षुल्लक ज्योतिषिवाळो बनाव ए बे बनावो मळी छ बनाव) विषे अहिंआ खास नोंध लेवी आवश्यक छे. नाममुद्रा, जयलक्ष्मी अने चंद्रलेखाए करेली भविष्यानुरूपाना पातिव्रत्यनी कसोटी, कांचनमालानो धनपति तरफनो उपालंभ अने पोतनपुरना राजाए भूपाळ राजा पासे चित्रांगने मोकलीने करेली मागणीओ अने तेमांथी उद्भवेलुं युद्ध. आमांनो प्रथम तो बन्ने कृतिओमां छे. भविष्यदत्त आख्यानमां "नाममुद्रा" शब्दनो प्रयोग थयो छे ज्यारे भविष्यदत्त कथामां "नागमुद्रा" शब्द प्रयोग थयेलो छे. भविष्य पोतानी एंधाणीरूपे पोतानी माता कमलश्री साथे भविष्यानुरूपा उपर "नागमुद्रा" मोकलावे छे. मारी दृष्टिए भविष्यदत्त कथागत "नागमुद्रा" शब्द करतां "नाममुद्रा" शब्दनु सार्थक्य विशेष छे. छेल्ला त्रण प्रसंगो कवि धनपाळे मूळ वस्तुने एमने एम राखी मात्र कळानी दृष्टिए उमेर्या होय एम लागे छे अने ए एकमात्र घटना उपरथी कवि धनपाळने हुं महेश्वर सूरिना अनुवर्ती तरीके कहेवा प्रेरायो छु. महेश्वर सूरि कहे छे के "लेसेण मए एयं पंचमिफलसंजुयं दसमं" ॥ १० । ४८६ ॥. एटले एमणे संक्षेपमा बधुं कर्तुं छे. तेम ज धनपाळ पण कहे छे के "पारंपरकबहं लहिवि भेउ मइ झंखिउ सरसइवसिण एउ” ( चौदमी संधिने अंते ). महेश्वरसूरिए कथावस्तु गमे त्यांथी लीधी होय अगर तो नवीन ज कल्पी होय अगर सुधारा वधारा करी रची होय - गमे ते हो - पण धनपाळे तो भविष्यदत्त आख्यान उपरथी ज पोतानी कथा रची होय एम देखाय छे. कारण के बन्नेमां तद्दन साम्य छे. उपर्युक्त त्रण प्रसंगो नवा छे; अने ए नवा छे एटले ज भविष्यदत्त कथामां वधारे विशेष नामो आवे छे. बाकी बधां नामो-विशेष नामो अने स्थळनां नामो- आपणे उपर जोई गया तेम - लगभग सरखां छे; कोई ठेकाणे पर्यायो मुक्या छे तो कोई ठेकाणे पूर्व पदने बदले उत्तर पद अने उत्तर पदने बदले पूर्व पद एम आडा अवळा गोठववामां आव्या छे. ए सिवाय खास कशो फेरफार नथी. धनपाळनी भविष्यदत्त कथा उपरथी महेश्वर सूरिए भविष्यदत्त आख्यान रच्यु होत तो बीजा प्रसंगोनी जेम त्रणेय प्रसंगोने पोते ख़ुशीथी एकाद बे गाथामा टुंकावी मुकी शकत, पण तेम नथी. एटले महेश्वर सूरि रचित "नाणपंचमी" करतां प्राचीन, पंचमीविषयक कोई कथाग्रन्थ आपणने उपलब्ध न थाय त्यांसुधी आपणे एम ज मानवु रह्यं के धनपाल कवि पासे महेश्वर सूरि रचित "नाणपंचमी" आदर्श रूपे होवू जोईए; अने एमां दसमा आख्यानने मूळ तरीके नजर समक्ष राखतां कळानी दृष्टिए ज्यां ज्यां एने योग्य लाग्युं त्यां त्या मूळने अन्याय कर्या विना प्रसंगो योजी वर्णन विस्तार कर्यो. एकला पोतनपुरना राजानी लडाईना प्रसंग माटे तेरमी अने चौदगी संधि रोकवामां आवी छे. भूपाळ राजाने अधु राज्य अने पोतानी पुत्री भविष्यने आपवा हता; तेना औचित्य माटे अने पोतानी कवित्वशक्ति बताववा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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