Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 75
________________ २८ सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ [१, २३-४५ अह पंचहिँ हारेहिं पंचहिँ रयणेहिँ तह विभूसे । संघस्स कुणइ पूयं जहसत्तीए महासत्तो॥ २३ संघो महाणुभावो नाणाइतियस्स जेण आहारो । पूइज्जते तम्मि उ नाणाई पूइयं होइ॥ २४ तह उवयारपरो वि हु संघो जीवस्स होइ भवस्स । वच्छलं अणुसद्धिं उववूहणमाइ कुणमाणो ॥ २५ अन्नं च तियसनमिओ केवललच्छीइ संजुओ विमलो । तित्थयरो वि हु भयवं आईए वंदए संघं ॥ २६ तम्हा सइ सामत्थे संघं पूएह सव्वकज्जेसु । पाविह तओ उ मोक्खं भोत्तूणं विसयसोक्खाई ॥ २७ सोहग्गं कुलजम्मो वाहिविमोक्खो पिएण संजोगो । बंधण-मुयणं विहवो कर-चरण-च्छीण तहभावो ॥ दीवंतरम्मि सोक्खं विम्हयहे समत्थलोयाण"। मणुय-सुरा-ऽसुरसोक्खं फलं च तीसे तओ मोक्खो ॥ -दार गाहा" २९ एए य जहा जाया जेसि जीवाण तीऍ करणेणं । तं तह भणिमो अहयं नियमइविहवाणुसारेण ॥३० जयसेण नंद भदा वीरो कमला गुणाणुराओ य । विमलो धरणो देवी भविस्सदत्तो य दाराई॥ एएसु अंतरत्था अन्ने वि हु इस्थि-पुरिस नायवा । पंचमिफलं विचित्तं बहुभेयं पावियं जेहिं ॥ ३२ १. जयसेणकहा। जयसेणकहा पढमा अक्खिजइ पुव्वजम्मपरिकलिया । सोहग्गदारविसया भवियजणाणुग्गहट्ठाए ॥ ३३ इत्थेव" भरहवासे दाहिणदेसम्मि जलहितीराए । खलचित्तं व दुगेज्झो रम्मो तह सुयणचेढ व ॥ ३४ संसारो व विसालो संकर इव गणसएहिं संजुत्तो।धणउ व दविणभरिओ कुच्छियराया व बहुभंडो॥ ३५ सिंघलदीवो रम्मो तत्थे य राया नराहिवो नाम । तस्स य निवतणयाणं होइ सयं महिलियाणं च ॥ ३६ ताण य मज्झे एगा ईसा-कामेहिँ पीडिया पावा । नामेण इंदुमइयों एवं" हियएण चिंतेइ ॥ ३७ तिण्हं मासाण नवाहियाणे मह एत्थ पाडियाँ होइ । तत्थ य सोक्खं तुच्छं गलतालुयनायओ विरसं ॥ ३८ वरि हलिओ वि हु भत्ता अनन्नभजो गुणेहिँ रहिओ वि।मा सगुणो बहुभजो जइ राया चक्कवट्टी" वि॥ ३९ वरि गब्भम्मि विलीणा वरि जाया कंत-पुत्तपरिहीणा ।मा ससवत्ता महिला हविज जम्मे वि जम्मे वि ॥ ४० जइ विहुभता सरिसो होइ कलत्तेसु सबकज्जेसु । तह विह ताण मणेसुं अत्ताणे थोवपरिहावो"॥ ४१ संकर-हरि-बंभाणं गउरी-लच्छी जहेव बंभाणी। तह जइ पइणो इट्ठा तो महिलौ इयरहा छेली ॥ ४२ पावणे सवत्तिजणो दुहा सासू-नणंदमाईया । धम्मेण य निकंटो घरवासो होइ महिलाणं ॥ ४३ धण्णा ता महिलाओ जाण न जोएई को विखोजाई। सासू(सु)नणं९ सवत्ती"ससुरोजिहोय दियरो ये ४४ जेण तहिं विलसिजइ निचं इत्थीहिँ निययइच्छाए। इयरह वरि वणवासो मा घरवासो जहा पासो॥४५ 1C पंचहि वण्णेहिं । : A दूसेढे । 3 A C जयं । 4 B°लच्छीए; C°लच्छीय । 5A तिस्थगरो । 6 A तंह । 7 A. मोक्खो। 8 A विमुक्खो । 9 B विभवो। 10 A °जणणं। 11 B °लोयाणं । 12 C दार; B none of the two is found. 13 A तेसिं। 14 A तीह। 15 B°सारेणं। 16 A "कम्म। 17 C पत्थेव। 18 A सुयणुचिट्ठ व्य। 19 B नामं। 20 A °कामेण । 21 A नामेणं इंदुमई। 22 A एयं । 23 Cमासाणं । 24 B पवाहियाण; C साहियाण। 25 A पीडिया। 26 A तालय। 28A विर। 29 A चक्कवही। 30B अत्ताणं। 31 C परिभावो । 32 A°वम्हाणं । 33 B महिली। 34 B C पावेण य। 35BC सवई। 36 B C °माईओ। 37 A. नव्वंटो। 38 A. चाएइ B चाहेइ। 39 ACखोज्झाई। 40.Cन is missing in this Ms. 41 A सव is missing in this Ms. 42 A वा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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