Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 80
________________ ४९ १, १४८-१७२ ] नाणपंचमीकहाओ- १. जयसेणकहा मुणिणो ये पसाएणं नायं कायच्वयं च लेसेणं । एयं चिय तवचरणं मज्झ वि सरणं किमन्नेणं १ ॥ १४८ गब्भेण सह विओओ चरणस्स विघाइणी कया होजा? । केत्तिर्यदिवसेहिँ पुणो दिक्खा वि हु पावियव त्ति ? ॥ सुविणस ये किंचि फलं कस्स व कम्मस्स परिणई गम्भे? । सव्वं पुच्छामि मुणिं अह लज्जा वारिया जाया ॥ १५० तो झूरइ हियएणं वयणं ठविऊण मउयकरकमले । जणतुल्लं पिहु वयणं लज्जा कह वारए पावा? ॥ ५१ बोलंती निल्लज्जा अहव न बोलेइ कज्जपरिहाणी । कुलपुत्तियाणं कजे छुरिया दोधारियो होइ॥ ५२ परहियनिरओ य मुणी नाऊणं सुंदरीऍ" चित्तगयं । बहुजणबोहिनिमित्तं एयं वयणं पयंपेइ ॥ ५३ तुह पिउणो इह सुंदरि मज्झ पिया आसि वलहो मित्तो। नामेणं गुणचंदो तस्स य भज्जा पियाणेदा“॥ ५४ ताण य पुत्तो अहयं धम्मो नामेण वल्लहो सुट्ठ । दसवरिसो कीलंतो अवहरिओ सीहखयरेण ॥ ५५ नेऊण कुंभनयरे तुह पुत्तो एस जंपियं" एयं"। दिन्नो नियमहिलाए नेहेणं चंदकंताए ॥ ५६ पिउ-जणणीण यं मरणं मह विरहे दुक्खपुव्वयं जायं । अहवा अवच्चदुक्खं मारेइ न एत्थ संदेहो ॥ ५७ सीहेण वि विजाओ दिन्नाओ मज्झ सुहु तुट्टेण । नहयलगमणाईया बहुविहकजाण साहणिया ॥ ५८ जम्मंतरं वै पच्छा वीसरियं पुवयं तु मह सव्वं । पायं लच्छिगयाणं वीसरइ जणमि(पि)अप्पाणं ॥ ५९ इंदउरे" वरनयरे भीमो नामेण खेयरनरिंदो" । तस्स य रइसारिच्छा धूया नामेण गुणमाला ॥ १६० तं कन्नं मज्झ कए तुट्ठो मग्गेइ खेयरो सीहो । भीमो वि कोववसओ एयं वयणं पयंपेइ ॥ ६१ भन्नायकुलस्स कए कन्नारयणं वि" मग्गमाणस्स । सयखंडं कह न गया जीहा तुहे पावकलियस्स?॥६२ अप्पाणस्स परस्स य जो न वि जाणेइ अंतरं मूढो । सो खलु पावइ निहणं जह मयणो रुद्दकोवाओ॥ ६३ जह जीएणं"कअं ता ओसर झत्ति दिट्ठिमग्गाओ। जाव न निवडइ कंठे मह खग्गो दारुणो एसो॥ ६४ मह सीहो वि हु जंपइ पाव! न जाणेसि लोयपरिवाडिं। कन्नं मग्गइ सबो दिजइ पुण जस्स इट्ठत्ति॥ ६५ जह विन कीरइ कजं आसाऍ घरागयस्स लोयस्स ।महरक्खरेहि तह विहु दिज्जइपरिहारयं किं पि॥६६ दूरडिओ वि आवइ कजेण घरम्मि पुन्नवंताण । एगग्गामे वि घरं इयराण न जाणए को वि" ॥ ६७ तं चेव घरं जाणसुजत्थ य कन्जेहिँ विविहजणनियहो। आगच्छइ पइदियहं वयणामयपाणपरितुट्ठो॥ ६८ जह कह वि न संपज्जइ दाणं घरमागयाण लोयाणं । ती किं वयणे वि पिए दालिदं दडलोयस्स?॥ ६९ एसो चिय गिहिधम्मो कीरइ घरमागयाण पडिवत्ती। तं पुण निग्घिण! पाविय! जंपसि कह निडुरं वयणं? ॥ ता उहे(हि)हिंई लहुँ चिय रे रे फेडेमि तुज्झ भडवायं । ताव च्चिय हणइ गओ जाव न सीहं पलोएइ ॥ ७१ अह उहिऊण भीमो खग्गं गहिऊण भीडइ सीहस्स । अहवा रणम्मि भीमो सीहं पि न मन्नए किं पि ॥१७२ 1AI 2 BC नायब्व। 3 A लेसेण । 4 A किमन्नेण । 5 B विघायणा । GA कित्तिय। 7 BCसुणस्त । 8 AC it is not found in these Mss. 9AC किंवि। 10 B पोत्तियाण। 11 Aदोहारिया। 12 BC संदरीय। 13C बोह। 14 BC पियानंदा। 15 Cजंपिओ। 16A भहयं। 17 A°जणणीए। 18 Ait is not found in this Ms. 19 B तुठेणं । 20 BC च । 21AC इंदउखे। 22 BC यर । 23 Bखयर'; D खेयरो। 24 BC() वरचंदो; D चंदो। 25C इ। 26 B °रयणम्मि। 27 BC it is not found in these Mss. 28 Cखंडा। 29 BC किं । 10 BC तव। 31B जीविएण। 32 A न। 33 A वि। 34 C क्खरे वि। 35 C ठियओ। 36 C पुन मंताणं । 37 A इ। 38 A. व। 39 B°माझ्याण। 40 A तो। 41 A चिय। 42 A उठेल। 43A रयंमि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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