Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 82
________________ १, १९९-२२६ ] नाणपंचमीकहाओ- १. जयसेणकहा ता सई पि हु कहिमोजंतुह चित्तम्मि संठियं सुयणु! चित्तगयं पि हु जेणं केवलनाणीण पञ्चक्खं ॥१९९ अज्जेव तुज्झ पसवो होही कन्ना उ तत्थ नियमेणं । दिक्खा वि तुज्झ सुंदरि! जाणेज्जसु मासमेत्तेण ॥२०० जलहिं मं जाण तुमं रयणाई तिन्नि मुणसु एयाइं । नाणं दंसणमेव य चारित्तं होइ तइयं तु ॥ १ एयाइँ तिन्नि सुंदर ! लद्धिसि रयणाइ मह सयासाओं। ताणं च पहावणं लहिहिसि सोक्खं निराबाहं २ गन्मस्स पुज्वचरियं सव्व पि हु अक्खिऊण सविसेसं । आगामियं पि अक्खइ सुंदरिमाईण धम्ममुणी ॥ ३ तुह अंगाणं होही धूयाजम्मेण ताव परिहाणी । चित्तंमि य उव्वेओ दिट्ठाए तक्खणं चेव ॥ ४ अन्नाण वि तं दई होही अइसुट्ठ चित्तसंतावो । बाहिं च नेई वाओ घरलहुयं नत्थि संदेहो ॥५ तुह वयणपहावेणं थोवं काऊण किं पि तव चरणं । जम्मंतरम्मि सोक्खं सा धूया पाविही नियमा ॥ ६ कुलचंदो वि हु एही पंचमदियहम्मि एत्थ नयरीए । तुह अयसपंकमेयं अवणेही अच्छ वीसत्थों ॥ ७ इयं जंपियम्मि मुणिणा केहिँ" वि गहिया 3 सव्वविरइ ति। अन्नेहिँ देसविरई सम्मत्तं चेव इयरेहि ॥८ अन्ने मिच्छादिट्टी" के वि" अभव्वा य तत्थ उवविट्ठौं । जति वयणमेयं कह एए वंचिया इमिणा ॥ ९ संभासिऊण लोयं सविसेसं सुंदरीऍ" पियरं च । एगागी उप्पइओ नहमग्गे सिद्धजीवो व ॥ २१० सुंदरिपिया वि वीरो' गंतूणं सुंदरीएँ" पासंमि । जंपइ सदुक्खहियओ पुत्ति ! कहं एगिया तं सि ॥ ११ सबम्मि तीऍ सिढे गहिऊणं तं गिहं गओ सो उ । मायाईपरियणेणं रुन्नं कंठम्मि लग्गेउं ॥ १२ न्हाणं भोयणमाई काऊणं जाव अच्छए तत्थ । ताव य वियालसमए संजाया दारिया तीसे ॥ १३ दणं तं कन्नं उव्वेओ सुहु सुंदरिमणम्मि । अंगाणमसुहभावो अन्नाण वि चित्तसंतावो ॥ १४ खलसंगमेल्लणेणं जह सुयणो सुहु वलहो होइ । गब्भविमोक्खे" तह सुंदरी वि कुलचंदनामस्स ॥ १५ एगा सुकुमालतणू सुहु विणीया निरावराहा य" गब्भालसा रसंती निच्छूढा सा मए कह णु१ ॥ १६ पयडम्मि वि अवराहे अवहीलणमेव कुणसु नारीणं । निस्सारिया य जम्हा अहिययरं होइ विक्खायौं ॥१७ मलिणा भूसणरहिया भूसयणा पिंडमेत्तकयवित्ती । अणुदियहरक्खणेणं धारिजइ दुट्ठमहिला ॥ १८ दोसविहूणं तु तइं(जुवई) जो नरु मेल्लेइ दारुणसहावो। सो तं पावइ पावं जन्नवि जम्मे वि फिट्टेइ ॥ १९ पंडिच्चं कुलजम्मो पुरिसवयं लोयजत्तमाईयं । सत्वं पि मह पणटं सुंदरिवयणम्मि पावस्स ॥ २२० जइ सा कह वि विवन्नी गच्छंती एगिया वि गयआसा । ती मज्झ वि मरणं चिय होही नियमेण पावस्स ॥२१ सेणाए नयरीए जइ होजा कह वि सुंदरी पत्ता । ता मह जीवियहेऊ सा होज्जा अमयधार व ॥ २२ गुण-दोसमचिंतेउं जं कर्ज कीरई उ सहस त्ति । तं दहई हिययनिहियं विवत्तिसमयम्मि लोयाणं ॥ २३ इय चिंतिऊण बहुयं संपत्तो सेण यरियं कमसो। उवलहिय पियावत्तं पविसइ सो नयरिमज्झम्मि ॥ २४ अह जीवइ ति नाउं तुट्ठो हियएण वोलिङ हट्टं। पविसइ लज्जियहियओ ससुरघरं धरणिगयनयणो ॥२५ दहणं कुलचंदं सबो वि हु परियणो दढं मुइओ । वयणाइएहि सहसा सम्माणं कुणइ जहजोग्गं ॥२२६ 1A य। 2 A तुज्झ । 3 A य । 4 A जालहिं । 5 B सुयणु। 6 A एयाइ। 7 BC()वि तए। 8 A लद्धा; B लडाई। 9 B सगासाओ। 10 A मोक्खं । 11 A अणाबाहं। 12 Cबाहे। 13 A हर; Cहिरई। 14 A °पभावेणं । 15 A वीसरथो। 16 A इयं । 17 B केहि । 18 AD य । 19 A इयरेहिं। 20 A सम्मत्तं । 21A मिच्छहिटी। 22 Aइ। 23 A उविग्गा। 24 B सुंदरीय । 25 Bधीरो। 26 B सुंदरीय। 27 BC मायाएँ। 28 B वेला। 29 CD सुमणो। 30 B विमुक्खो। 31 B वि 132 BC रुयंती। 33 B पयदंसिय । 34 A अहिययरा। 35 B विच्छाया । 36 A ओ; B विं । । नर । 39 A मेल्हेइ । 40 A. विविन्ना। 41 A तो। 42 A. कीरह। 43 A सहसति । 44C डहा। 45A संतितो। 46 C सेणि। 47 A 'नयरिय। 48 C वोलियं। 49 BCoभीओ। 50 BC कुलं। 51 B जहजोगं । नाणपं० २ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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