Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 87
________________ १४ सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ [१, ३३३ - ३६१ दोहग्गं जं रइयं इंदुमईनामियाएँ अन्नभवे । तं तुमए बहुभुत्तं एवं पुण पुच्छवाडं तु ॥ ३३३ तम्हा कीरउ धम्मो समणाणं अहव सावयाणं च । पडिपुन्नो खलु पढमो बीओ जहसत्तिओ एत्थं ॥३४ पियमेलियाएँ भणियं पढमं काऊण मज्झ नै हुँ सत्ती । अणुदियहं भुंजामी जेणाहं पाविया निचं ॥ ३५ उन्हेण जलेण जओ पाए धोएइ जो ण वि भएणं । सो कह पविसइ कीवो कहेसुं जलणजुत्तेसु?॥ ३६ तो जंपइ सा समणी दक्खण विणा न पत्ति! सोक्खाई। जेण न पावइ को वि हु इंदियसोक्खं च मोक्खं" च ॥ आईए सुहयाई पच्छा दुयाइँ पुत्ति ! दुसहाई । तुमए चिय रयणीए अणुहूयं एरिसं जेण ॥ ३८ पियमेलियाएँ भणियं सामिणि ! एमेव नत्थि संदेहो । किंतु न सक्केमि अहं किं पि वि काऊण तवचरणं ॥ ३९ अहं तं" भणेइ समणी जइ वि न सक्केसि तह वि कुण एवं । उभयाएँ" पंचमीए उववासं पंचमासं तु॥३४० चित्तट्टिए वि चरणे मोक्खं पावेइ सुद्धहियएणं । अंगीकए वि मरणे" जह तुमए पावियं सुयणु !॥ ४१ नूणं सच्चे" वयणं इमाएँ हियएण चिंतए कन्ना । सत्वं इमीऍ" नायं रयणीए जण महचरियं ॥ ४२ इय चिंतिऊण जंपइ सामिणि! इच्छामि तुज्झ आएसं । दिजउ एसो नियमो अजेव य पंचमी जेण ॥ ४३ नेउं जिणिदभवणे पोत्थयरैयणं च ठाविउं" पुरओ। दिन्नो इमो य नियमो समणीए सुद्धभावाए ॥ ४४ वीराईया वि तहिं पुणरवि गंतूण रुक्खमूलम्मि । दमयसरीरमदडे अच्छरियं सुद्द मन्नंति ॥ ४५ अह नीसरिया तत्तो दमयं दद्दूण हट्टमज्झम्मि । पुच्छंति कत्थ सुत्तो तं' गंतूणं च गेहाओ ॥ ४६ अह जंपइ सो दमओ सुत्तो हं नयरिदेवयांभवणे । तो दुक्खत्ता चलिया पियमेलियपिट्टओ सवे ॥ ४७ पियमेलिया वि भणिया समणीऍ पुत्ति ! पेच्छह नियमफलं । वीराइयों में जेणं तुह चेव गवेसया आया॥४८ अह पविसिऊण ते वि हु जिणिंदभवणम्मि वंदिउं देवे। पणमित्ता समणीओ" उवविहा महियले सब्वे ॥४९ पियमेलिया वि सहसा दह्णं वीरमाइयं लोयं । लज्जाअवणयवयणा महिवेढे मग्गए विवरं ॥ ३५० अलियम्मि वि सञ्चम्मि वि जाए वयणे सुनिदिएँ कह वि। लजालुया जणाणं दंसेइ न माणिणी वयणं ॥५१ पभणइ जेट्ठा वइणी पेच्छसु संसारविलसियं वीर! । पडिबंधछेयजणयं पलहुँयकम्माण जीवाणं ॥ ५२ इट्ठो होइ अणिट्ठो पुणरवि सो चेव होइ इट्टयरो। तुह चेव जहा एसा कन्ना पियमेलिया नाम ॥ ५३ एगा अबला पु(बु)न्नी लज्जा-कुलसंजुया गुणसमेया। तुम्हेहिँ कह णु एसा निच्छूढा निहरमणेहिं ? ॥ ५४ निदोसं पि हु लोओ निंदइ अन्नोन्नवयणपञ्चइओ । वन्नरहियं पि जेणं भणइ जणो नीलमायासं॥ ५५ जइ मारि चिय एसा ता नियमा तुम्ह नयरिलोयाणं । एत्तियकालेण जणे नामं पिपणद्वयं होज्जा ।। ५६ जं जं दीसइ लोए तं तं जइ अवितहं तह चेव । ता मयरूवो दमओ कह जीवइ भणह मह एयं ॥ ५७ हरिचंदउरी माइण्हिया य तह इंदयालमाईया। पयर्ड पि हु दीसंता तह वि न साहिति"नियकजं ॥५८ दिदं सुयं च तम्हा सुचिरं परिभाविऊण हियएणं कायवं मणुएणं दोण्ह वि जम्माण हियजणयं ॥ ५९ इय एयं नाऊणं कीरउ धम्मम्मि निच्चलं चित्तं । तस्स फलं अजं चिय तुम्हाणं दंसिमो पयडं ॥ ३६० पियमेलियाएँ माया जा आसी सुंदरि ति नामेणं । सा तवचरणं काउं चंदप्पहसुरवरो जाओ ॥ ३६१ 1A पुत्थवारं; C पुंछवाडं। 2 A तत्थ । 3A पियमेलइयाए; C पियमेलिया य। 4 C भणिया। 5 BC क6 BC ह। 7 A भुंजामि । 8 A किह। 9 AC मणी। 10 B मुक्खं । 11 A पुण। 12A रवि। 13 A. सुहयाएँ। 14 B सुट्ट। 15A मरणं । 16 B.सव्वं । 17 Bइमाए। 18 B पुस्थय । 19 BCठावियं । 20 B अंतो। 21C गंतूणं त। 22 CD तो। 23Cनयर। 24 A वेवया। 25 Bईया। 26 B य is not found. 27 BC समणीणं। 28 AC महिवेढं। 29 C सुनिंदए। 30 A सा वि निय। 31 C अलहुय। 32 A चुन्ना। 33 BD लोए। 3.1 B पुन्न। 35 B°कालेय। 36 A नट्टयं । 37 A चेय। 38 A एवं। 39 A मायण्हिया। 40 Aइंदियाल°। 41 B साहेति । 42 C हियएण। 43 A जम्हाण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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