Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 88
________________ १५ १, ३६२ - ३९० ] नाणपंचमीकहाओ- १. जयसेणकहा मरमाणिं दट्टणं ओहिन्नाणेण नेह-दयकलिओ। एत्थाहं संपत्तो एयाए बोहणढाए॥ ३६२ काऊण तं' पवंचं विविहं मरणाओं रक्खिया एसा । निच्छूढा तुम्हेहिं समणीरूवेण पडिरुद्धा ॥ ६३ पडिबोहिया य एसा गहियं एयाएँपंचमिवयं च । इय जंपिऊण तेणं नियरूवं दंसियं तेसिं ॥ ६४ रम्मविमाणं विभवं गीयं वजं च अच्छरानÉ । एयाइँ वि" दंसेई भवाणं बोहणहाए॥ दटुं अदिट्ठपुवं तं सवं वीरमाइया मुइया । अच्छरियं मन्नता धम्मपहावं पसंसंति ॥ उत्तत्तकणयवन्नो अणमिसनैयणो अलग्गमहिचलणो। अह जंपइ सो देवो तेसिं वयणं इमं सुहयं ॥ ६७ देवाणं नियरूवं दहुँ पारंति जेण न हु मणुया। लेसेणं चिय एयं तुम्हाणं दंसियं तेण ॥ ६८ मह रूवाईयाओ उवरिसुराणं तु रूवमाईयं । वढतं वडतं जाव य सव्वट्ठसिद्धि" त्ति ॥ ६९ तं पि हुनाससमेयं तम्हा कम्मक्खयम्मि जइयत्वं । जेण न पेच्छहँ नासं सोक्खाणं हंत ! कइया वि ॥ ३७० इय एवं सो देवो धम्मे दाऊण ताण अणुसहिं । पियमेलियं भलाविय सोहम्मे पाविओ कप्पे ॥ ७१ एत्थंतरम्मि लोओ हरिस-विसाएहिँ पूरिओ संतो । पविसइ नियनयरीए पियमेलियसंजुओ सबो ॥ ७२ बहुजणसंघसमेयं दटुं पियमेलियं च पविसंतिं । जंपइ सव्वो वि जणो पेच्छह एयाएँ माहप्पं ॥ ७३ सम्माणिया जणणं पविसइ गेहम्मि सयणपरियरिया । मन्नंती नियमफलं पच्चक्खं चेव हियएणं ॥ ७४ सो चेव इमो लोओ अहं पि सा चेव पट्टणं तं च । तह वि पसंसइ लोओ तम्हा नियमस्स फलमेयं ॥७५ इय चिंतिऊण हियए जिणधम्मे सुङ निच्छिया जाया। अह निंदइ अप्पाणं सद्धा-संवेयमावन्नी ॥ ७६ वंदइ जिणवरचंदे साहूण य कुणइ वंदणाईयं । दाणाइधम्मनिरया सज्झाय झाणसंजुत्ता ॥ ७७ पुन्ने वयम्मि तम्मि उ उज्जवणं" कुणइ जं जहाँभिहियं । मन्नंती अप्पाणं कयकिचं सुद्धभावेणं ॥ ७८ अह सा कालकमेणं पत्ते मरणम्मि चिंतए एयं । लद्धे वि हु मणुयत्ते दोहग्गं दारुणं मज्झ ॥ ७९ कुल-रूव-सील-विनाण-तारुन्न-विहवगुणनियरा । सवे वि कया विहला दोहग्गेणं महं जेण ॥ ३८० दोहग्गेणं कलिओ पुरिसो वि न पावए जएं सोहं । किं पुण अबला बाला तुच्छा तह मंदसत्ता य? ॥ ८१ ता पंचमीबलेणं अणण्णतुलं हवेज सोहग्गं । जम्मंतरम्मि मज्झ वि जिणवयणं नन्नहा जेणं ॥ ८२ अह मरिऊणं तत्तो उववन्ना चंपनामनयरीए । गुणसेणभारियाए गुणवइएँ पुर्तभावेणं"॥ ८३ उच्चत्थेहिँ गहेहिं संजाए अंसयम्मि पंचमए । जाओ कमेण पुत्तो सवाण वि तोससंजणओ ॥ ८४ काऊण पूयमउलं देव-गुरूणं पराएँ भत्तीए । सयणाईणं च तहा दाणं दाऊण जहजोग्गं ॥ ८५ वत्थाइएहिं तत्तो भूसेउं नयरियं च सव्वत्तो। पंचमहासद्देहिं वद्धावणयं पवत्तेइ ॥ नचंति के वि हिट्ठा अन्ने गायति महुरझुणिकलिया। घुसिणाइएहिँ अन्ने सिंचंति परोप्परं मुइया ॥ ८७ तंबोलं फुल्लाई वत्था-ऽऽहरणाइँ लेंति अन्नोन्नं । एमाइबहुवियप्पं चिट्ठइ लोओ मणे तुहो॥ ८८ वित्ते वद्धावणए जाए लोयाण सुट्ठ परिओसे । गुणसेणो पियवयणो लोयं च विसजए कमसो ॥ ८९ कइवयदियहेहिँ तओ काऊणं सत्वमेव करणिज । जयसेण इई पसत्थं नाम पि पइढ़ियं तस्स ॥ ३९० 1C ओहीनाणेण। C मोह। 3 A it is missing in this Ms. 4 A बहुविहं च । 5 A परिरुद्धा; Cपडिबुद्धा। 6 Cएयाओ। 7 CD तु। 8A विहवं। 9 A it is missing in this Ms. 10 BC भणिमिस। 11B नो। 12 Bit is missing in this Ms. 13 A दरिसियं । 14 B भह; C महु। 15 B "सिद्ध। 16A पिच्छह । 17 C भलावद। 18 C °समेओ। 19 A °संवेग । 20 A. °संपत्ता। 21B उजमणं। 22AC हहा। 23 Cभणियं । 24 Cसुट्ट। 25AC वित्राण। 26A तेण। 27 A. it is missing in this Ms. 28 A जम्मतरे वि। 29 A गुणवइ । 30A "पुत्तत्त। 31 CD भावेण । 32 B °जोगं। 33C सहेणं व। 34 A सिंचिंति । 35 B लेन्ति । 36 Aपरिओसो। 37 Cजयसेणो। 38Cइय। 39 Cसत्थं । mS CM Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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