Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 86
________________ नाणपंचमीकहाओ - १. जयसेणकहा धण-कण - रयणसमेयं सयणा - ऽऽसणसंजुयं जणसमिद्धं' । गेहं च इमं सामिणि ! मह तणयं जाणसु विचित्तं ॥ ३०७ १, ३०७ - ३३२ ] गहिऊण तं करेणं पविसेउं गेहमज्झयारम्मि । दंसेइ तोसजणयं सवं पि हु तत्थ उवगरणं ॥ अह किंकरिजुवईओ हाणुवगरणेण संजुया सिग्घं । दाऊणमासणाई कुणंति उधट्टणं ताणं ॥ उट्टितं तं दहूणं दिवतरुणिजुवलेणं' । पियमेलिया मणेणं ईसं अइदारुणं वहइ ॥ वेव ससइ वियंभइ भिउडिं काऊण जोयएं वंकं । हंतुं इच्छइ गंतुं सा उ जुवाणं च दुक्खत्ता ॥ ११ महिलाणाहिविसहिओ पुरिसो बैहुइत्थिरूवओ दुहओ । ३१० जइ पुण जउली महिला ता दुक्खं ताण मरणंतं ॥ 13 १३ Jain Education International १४ १५ १६ १७ १८ १२ तो हाऊणं दोन्निवि" वत्था - ऽऽभरणेहिं भूसियसरीरा । अट्ठारसभेयजुयं " भोयणजायं पर्भुजंति ॥ १३ घुसिव देह सुगंधकुसुमेहिँ राइयसि य । तंबोलपुन्नवयणा महरिहसयणे ठिया दो वि ॥ गेयं वज्रं कवं" सोऊणं बहुविहं च अइरम्मं । दहुं नट्टं " चं सुहं एगंतसुहाइँ भुंजंति ॥ बहुरयखेय निसन्ना निद्दं अइनिब्भरं लहेऊ । पेच्छइ पहायसमए सहसा पियमेलिया तत्थ ॥ तत्थेव रुक्खमूले लत्तपहारेण मारियं दमयं । अप्पाणं च विसन्नं पासम्मि परिट्टियं संतं ॥ तं गेहं सो विहवो" सा लीला सो य वल्लहो कंतो । सव्वं खणेण नहं जह दाणं सीलरहियम्मि ॥ किं इंदयामेयं जम्मंतरमहंवं सुविणयं होजा । अज्ज वि संगवियारो दीसंईं तेणेह सङ्घ" पि ॥ १९ अह भइ सबलोओ हा हा ! पावे ! किमेयमायरियं । जइ मोत्तूण पलाओ ता कीस विवाइओ एसो ? ३२० नू मारी एसा पढमं चिय अक्खिया इमेणेव । ता जाहि तत्थ सिग्धं जत्थ न नयणाइँ पासंति ॥ २१ महिला भणाणवईण बालाण अइविदुट्ठाणं" । नियदेसाओ सहसा जुज्जइ निस्सारणं चेव ॥ २२ जा निच्छूढा तत्तो वच्चइ नयरीऍ बाहिरुद्देसे । ताव तहिं सा पेच्छइ सेयंबरिजुवलयं सहसीं ॥ सा भणिया समणीहिं पुत्ति ! तुमं चल्लिया कहिं कहसु । एगागिणी रुयंती" राईए जह व वणिया ॥ २४ पियमेलिया वि चिंतइ कह नाओ रयणिवइयरो मज्झें । एयाहिँ अहव सवो जाणइ अन्नोन्नवयणाओ ॥ २५ हिययट्ठियं मुणिजइ केहि वि काणं पि चेट्ठमाईहि । किज्जंतं वै कथं वा नज्जइ किं एत्थ अच्छरियं १ ॥ २६ इय चिंति सा पणया जंपइ अइघग्घरेण सद्देण । नत्थि जए तं ठाणं जत्थाहं वच्चिमो पावा ॥ एगागित्तं रुजं" दोन्निवि कज्ज्रेण सङ्घकालं पि । मह पावाए जाणह तुम्ह मए अक्खियं सर्व्वं ॥ समणीहि तओ भणिया गम्मिज्जउ उवसयम्मि अम्हच्चे । सवं कमेण होही सोहणयं मा तुमं तम्म ॥२९ तं गिण्हिऊण ताओ पत्ताओ उवसयम्मि अइरम्मे । उवविसिय आसणेसुं वीसमिया थेववेलं तु ॥ ३३० अह भणइ जे समणी सुबउ पियमेलिए ! इमं वयणं । पइवहपावं फिट्टइ जइप (व) वम्मेण तु सुयणु ! ॥ २३ २७ २८ ३१ तेणं चिय नासेज्जा दोहग्गं एत्थ नत्थि संदेहो । लोयपवायपणासो एत्थ य तुह पच्चओ एस ॥ ३३२ सिद्धं । 2 C विवित्तं । 3 A आसणाई | 4 B ताण । 5 AD 'जुयलेणं । 6 B जोवए; C जोए । 7 C जुयाणं । 8 A महिलाण वसयहिओ; C महिलाणाहि वसिहिओ । 9BC वि | 10 B महिला । 11 B जउला। 12 AC दोनवि । 13 A° हरणेहिं । 14 B जुतं; C जुतं । 1 B 18B नह । 19 B व 16 C (5) रद्दयचिहरा । 17 B कजं । 22 A B इंदियाळ° । 23 B C °य 24 B दीसंते; C दीसंतो । 25 27 B किमेव | 28 B दुट्ठाण | 29 A एसा 30 C स्वंती | 34B गग्गरेण । 35 A रोजं; B देजो। 36 B जेठ । 15 A देहो । 20 B लहेऊणं । 21 B विभवो । B नाह ! C नेह | 26 C सम्बम्मि । 31 A धणियाए । 32 B मज्झं । 37 C वरि । 38 B पवासो । 33B For Private & Personal Use Only . ९ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162